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वराङ्ग
बरितम्
PAILIPARASHARAM
क्रव्यादवगैरनुवाच्यमानाः केचित्प्रधावन्त्यनवेक्ष्य शावान् । वित्रस्तनेत्राः प्रतिनष्टचेष्टाः केचिद्धयाश्चि मुखे पतन्ति ॥ २४ ॥ बृहत्पृषत्कः प्रविदारितासाः प्रविष्य केविद्गिरिगह्वराणि । सवेदनानिष्प्रतिकाररूपाः प्राणान्विषष्णा जहति क्षणेन ॥ २५॥ व्याघान्विनिघ्नन्त्यथ चहेतोलापदेशाच्चमरी वराकाम् । मांसापदेशाच्छशसूकरादीन् विषाणमुक्तासु करीन्द्रवर्गान् ॥ २६ ॥ अकारणक्रोधकषायिताक्षाः स्वभावनिवृत्तनिबद्धवैराः। नविषाणैर्दशनैः सूतीक्ष्णैरन्योन्यमर्मस्वभिताडयन्ति ॥ २७ ॥
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मांसाहारियोंके द्वारा जंगलमें शोर गुल मचाकर हकाई होनेपर ( अथवा हिंसक पशुओंकी आवाज सुनकर ही ) कुछ पशु भयसे इतने विह्वल हो जाते हैं कि अपने बच्चोंका ख्याल न करके प्राणरक्षाके लिए तेजीसे भागते हैं तथा दूसरोंको चेतना ही नष्ट हो जाती है फलतः उनमें कोई क्रिया ही नहीं नजर आती है, उनकी आँखों से भय टपकता रहता है और वे भयभीत होकर हिंसक पशुओंके मुखमें या शिकारीके सामने ही आ जाते हैं ।। २४ ।।
थोड़ेके लिए महापाप बड़े-बड़े वाणोंकी मारसे किन्हीं-किन्हीं पशुओंके अंग-अंग कट जाते हैं तो भी प्राणोंका मोह उन्हें पर्वतोंकी गुफाओंमें ले जाता है । वहाँपर उनको वेदना बढ़ती ही जाती है क्योंकि उसका वे कोई उपचार नहीं कर सकते हैं फलतः अत्यन्त दुखी । होकर वे तुरन्त ही प्राण छोड़ देते हैं ।। २५ ।।
विचारे सिंह, बाघ केवल चितकबरे चमड़ेके लिए ही मारे जाते हैं, घास फूस खानेवाले भोले-भाले चमरी मृगोंको शिकारी उनकी पूछके बालोंके वहानेसे मार डालते हैं, सियार, सुअर आदि स्वादिष्ट माँसको प्राप्त करनेके लिए नष्ट किये जाते हैं मदोन्मत्त विशालकाय हाथियोंके शरीरसे प्राण अलग किये जाते हैं सिर्फ उसके दाँतों और मस्तकमें पड़े मोतियोंके लिए ॥२६॥
अकारण कोप तिर्यञ्च योनिमें जन्मे जीवोंको बिना किसी कारणके ही क्रोध आ जाता है और उनकी आँखें कोपके आवेशसे तमतमा ( लाल ) उठती हैं । उनका स्वभाव ऐसा विचित्र होता है कि किसी प्रकारके अपकारके बिना ही वे दूसरोंसे गाढ़ वैर बाँध लेते हैं । परिणाम यह होता है कि वे अपने अपने तीक्ष्ण नखों, दाँतों और सींघोंसे आपसमें एक दूसरेके मर्मस्थलोंपर प्रहार करते हैं ।। २७॥
न्यायमचमान्चयाचमराHARRAIPान्यमान्यIHIGHLIGIR
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६. [ अनुव्रज्यमानाः ].
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