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________________ वरांग चरितम् क्षुधाभिभूतास्तु तिमिनिलाद्या ग्रसन्त्यथान्योन्यमनल्पकायाः। खगा खगांश्चापि मृगा मृगांश्च परस्परं नन्त्यबलान्बलस्थाः ॥ २० ॥ अहो बराका हरिणाः शशाश्च वृका बराहा रुरवः कुरङ्गाः । यह वीलिकाद्याः(?) परिपुष्टकाया त्वङमांसहेतोविलयं प्रयान्ति ॥ २१ ॥ केचित्पुनः शुष्कगलोष्ठजिलास्तृषाग्निनान्ताः प्रविदह्यमानाः। संशष्कपर्णोपनिपातभीता विश्वस्तचित्ता न तुणं चरन्ति ॥ २२ ॥ निपातदेशेष्वभिलीनकार्याधः समुत्त्रासितचेतसोऽन्ये । छायां विदेहस्य विशङ्कमानाः सुखेन पातुं न पयो लभन्ते ॥ २३ ॥ rateeIResomemadeepesameep-speeRESTRamespense- anus जीवो जीवस्य मक्षणम् भूखसे आकुल हो कर मछली, मगर आदि जलचर जीव अपनेसे छोटे मछली, कच्छप आदिको आपसमें ही निगल जाते हैं । आकाशचारो प्रबल पक्षी भी अपनेसे कमजोर पक्षियोंको मार डालते हैं। वनविहारी अधिक बलिष्ठ हिरण दुर्बल हिरणोंकी भी इहलीला समाप्त कर देते हैं ॥ २० ॥ कितने दुःखका विषय है कि विचारे हिरण, सियार, सुअर, वृक, रूरुव, हिरण, न्यह, वोलक आदिके वर्गके कितने हो पशु जिनके शरीर अत्यन्त स्वस्थ और सुन्दर होते हैं, वे केवल खानेके लिए उत्तम मांस और सुन्दर चमड़ेके लिए ही इस पृथ्वीपरसे लुप्त कर दिये जाते हैं ॥ २१ ।। भयपूर्ण तिर्यञ्च योनि यह पशु, पक्षी इतने भयभीत हो जाते हैं कि प्यासरूपी अग्निसे उनका शरीर भीतरसे जलने-सा लगता है, बाहर भी उनके गले, जीभ और ओठ सूखकर लकड़ीसे हो जाते हैं, तो भी वे शान्त चित्तसे न पानी ही पीते हैं और न घास चरते हैं। वृक्षपरसे गिरते हुए सूखे पत्ते का शब्द भी उन्हें डरा देता है ।। २२ ।। .पहाड़ी झरनों या अन्य जलाशयोंके आसपास अपने शरीरको पूर्णरूपसे छिपाकर शिकारी बैठ जाते हैं तथा पानी पीने आये पशु पक्षियोंको अचानक मार डालते हैं, इन बहेलियोंसे वन्य पशु इतने डर जाते हैं कि वे अपनी परछांयीको भी बहेलिया समझ लेते हैं इसीलिए निश्चिन्त होकर वे पानी भी नहीं पी सकते हैं ।। २३ ॥ SHIPesmerememessprenestreemememe-spreapanesameapaapanesmeenawe IRE 7 १. [बलिष्ठाः]। २. कन्यहेलिकाद्याः। ३. [ स्वदेहस्य ] । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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