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वरांग चरितम्
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विचित्रसंकल्पिततीव्रबन्धैर्दण्डाङ्कुशैस्तोत्रकशाप्रहारैः । प्रपीडनोत्ताडनवाहबन्धैर्दु :खान्यनेकानि समश्नुवन्ति ॥ १६ ॥ केचित्पुनः पाशनिबद्धकण्ठाः केचिन्महापञ्जररुद्धकायाः। पदेषु केचिदृडरज्जुबद्धा विनष्टसौख्या गमयन्ति कालम् ॥ १७ ॥ कपिज्जला लावकवर्तकाश्च मयूरपारावतटिट्टिभाद्याः।। नभश्चराः पादविलग्नपाशा नश्यन्ति पापैरभिहन्यमानाः ॥१८॥ बका बलाका जलकुक्कुटाश्च क्रौञ्चाः सकोरण्डवचक्रवाकाः।
जलाश्रयोपाश्रयजीविनस्ते भृशं सहस्तेषु वधं प्रयान्ति ॥ १९ ॥ -मार वजन लादा जाता है, उनको खाने, पीने आदि कष्टों के सिवा सब तरहसे बड़ी कड़ाईसे रोका जाता है। उन्हें यदि
इन्हीं क्लेशों और परिश्रमोंको सहना पड़ता तब भी दुर्दशा अन्तिम मर्यादा तक न पहुँचती। लेकिन उन्हें तो भूख प्यास और । अन्तमें अकाल मृत्यु भी सहनी पड़ती है ॥ १५ ॥
वे विचित्र, विचित्र प्रकारके कड़े बन्धनोंसे कसे जाते हैं, उन पर डंडों, अंकुशों, चावुकों, रस्सियों आदिकी धड़ाधड़ मार पड़ती है, तरह-तरहसे उन्हें पीड़ा दी जाती है, उन्हें मारने पीटनेके ढंग भी निराले ही होते हैं, भार लादते समय उनकी शक्तिका ख्याल भी नहीं किया जाता है और बन्धनके दुखोंको तो बात ही क्या है, इस प्रकार विचारे अनेक दुःख भरते हैं॥१६॥
किन्हीं भोले भाले तिर्यञ्चोंके गले में मोटी रस्सीकी फांस बाँध दी जाती है, दूसरे निरपराध पशु-पक्षी अत्यन्त दृढ़ और विशाल पिंजड़ोंके भीतर डाल दिये जाते हैं और अन्य अनेक पशुओंके पैरोंको अकाट्य रज्जुसे बाँध दिया जाता है। तब ये सबके सब प्राणी अपने इन्द्रिय सुखोंसे वञ्चित होकर किसी तरह जीवनके दिन व्यतीत करते हैं ।। १७ ।।
नभचर तियंञ्च आकाशमें स्वैर विहार करनेवाले कबूतर, लावक, वर्तक, मोर, कपिञ्जल, टिटिभ आदि पक्षी कुछ दानोंके लोभसे जालपर बैठते हैं और अपने पैरोंमें पाश लगने देते हैं, अन्तमें ये सब निर्दोष तिर्यञ्च पापाचारो आखेटकोंसे निर्दयतापूर्वक मारे जाते हैं और जीवनसे हाथ धोते हैं ।। १८॥
___ नदी, नाला, तालाब आदि जलाशयों या उनके आस-पासके स्थानोंमें सुखसे जीनेवाले बगुला, सारस, पानोकी मुर्गियां, क्रौञ्च, कारण्डव तथा चक्रवाक पक्षी भी किसी अपराध या इन्द्रिय लोलुपताके बिना ही निर्दय पापाचारी लोगोंके हाथ मारे जाते हैं ।। १९ ॥ १. म कोरण्डक°, [कारण्डब]। २. [ नृशंस॰] ।
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