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________________ वरांग चरितम् प्रसन्नतोयेषु सरस्सु मत्स्याः संक्रोडमामा रसमप्रसक्ताः । ग्रस्तामिषास्त्रस्तशरीरचित्रास्सवेदनास्ते सहसा नियन्ते ॥ १२॥ वन्याः करीन्द्राः सुखमाप्तुकामाः करेणुगात्राभिरतिप्रसक्ताः । तोदप्रकारैरभिहन्यमाना विचेतसोऽरण्यसुखं स्मरन्ति ॥ १३ ॥ एते त्वथैकेन्द्रियसंगदोषादलब्धकामाः प्रलयं प्रयान्ति । सर्वेन्द्रियाणां वशमभ्युपेता नश्यन्ति जीवा इति कः प्रवादः ॥ १४ ॥ खरोष्ट्रहस्त्यश्वतराश्च गोणा भूमीश्वराणामिह वाहनार्थम् । अत्यर्थभारातिनिरोधखिन्नाः क्षत्तश्रमाः क्लेशवध भजन्ते ।। १५ ।। HORIPATHAawesomeHEESearestmensiderestmemesese-symments अपने प्रिय जीवनोंसे भी सहसा हाथ धो बैठते हैं । ११ ।। ___ जिह्वालौल्यका फल नदी, तालाब आदि जलाशयोंके निर्मल जलमें आनन्द विहार करनेवाले मछली, मगर आदि जलचर रसना इन्द्रियके वशमें होकर धीवरके जालमें बँधे मांसपर मुंह मारते हैं, किन्तु उसे मुखमें देते ही उनका रंग बिरंगा सुन्दर शरीर ही ढोला पड़ जाता है क्योंकि माँसकी जगह लोहेका काँटा उनके मुखमें फँस जाता है, तब वे असह्य वेदनाको सहते हुए अपनी जीवनलीला समाप्त करते हैं ॥ १२॥ कामपरायणताका कूफल जंगलमें विचरते मस्त हाथियोंको हथिनियोंके साथ कामलीला करनेकी उत्कट अभिलाषा रहती है अतएव काठ कपड़ेसे बनी हथिनीसे कामसुख प्राप्त करनेके प्रयत्नमें वे बन्धको प्राप्त होते हैं। किन्तु जब उनको नाना प्रकारसे अंकुश आदि शस्त्रों द्वारा कोंचा जाता है तब उनका चित्त दुखी हो उठता है और वे मन ही मन जंगलकी स्वतन्त्रता आदि सुखोंका ध्यान करते हैं ।। १३ ॥ इन्द्रिय विषय लोलुपताका फल पहिले कहे गये सब ही जीव केवल अपनी एक ही इन्द्रियके विषयमें अत्यन्त लम्पट होते हैं तो भी परिणाम यह होता। है कि अपने परम प्रिय विषयको विना पाये ही वे नष्ट हो जाते हैं। सब इन्द्रियोंके विषयोंमें आसक्त होनेपर जीवोंका समूल नाश हो जाता है। इसमें कौन-सी अतिशयोक्ति है, क्योंकि उक्त प्रकारकी सर्व-आसक्तिका नाश अवश्यंभावी फल है ।। १४ ।। वाहन तिर्यञ्च | पृथ्वीके पालक, राजा महाराजाओंकी सवारीके लिए पकड़े गये हाथी घोड़ा, ऊँट, गधे, खच्चर आदि पशुओंपर बेशु१. [°श्रमक्लेशवधान् । [१०२] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org. Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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