________________
कुक्कुटान्मेषमार्जारान्नकुलाल्लावकाशनः। उपभोगे त्वकर्मण्याननयोर्थान्घोषयन्ति ये॥६६॥ सर्वेषां भोगिनां यास्तु सर्वा द्रविणसंपदः । ता ममैव न चान्येभ्यो भवन्त्वित्यतिबद्धयः॥६७॥ आसामनर्थमलान्ये कुर्वन्ति स्पृहया नराः। दुःखस्यान्तं न पश्यन्ति चिरं श्वाभ्रयां वसन्ति ते ॥६८॥ कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते केचिदत्युष्णभस्मसु । भृज्यन्ते तिलवत्केचिच्चय॑न्ते तुषवत्परे ॥ ६९ ॥ क्रकचैस्तुल्यनिभिन्ना खण्ड्यन्ते मर्मसन्धिषु । निस्तुद्यन्ते पुनः शलैस्ताड्यन्ते मसलैः परे॥७०॥ पीड्यन्ते तिलयन्त्रेषु इक्षुयन्त्रे तथापरे । चक्रयन्त्रैरथोद्भ्राम्य पातयन्ति रसातले ॥७१ ॥ शतधा खण्ड खण्डानि भूत्वान्ते क्लेशभागिनः । पतन्ति चण्डवेगेन पातालेष्वथ मच्छिताः ॥७२॥
CHGUI
बराङ्ग चरितम्
पञ्चमः सर्गः
जो मनुष्य भोग उपभोगके किसी भी काममें न आनेवाले मुर्गा-मुर्गी, मेढे, विल्ला-विल्ली, नेवली-नेवला, लावक, कुत्ताकुत्ती आदि ऐसे पशु पक्षियोंको पालते हैं, जो कि मानसिक या शारीरिक जीवनके लिए सर्वथा निरर्थक हैं ।। ६६ ।।
व्यर्थ परिपका फल जिनकी संसार भरके सम्पत्ति और विभव शालियों का जितना धन और सामग्री है वह सबकी सब मुझे ही प्राप्त हो जाय, किसी दूसरेके पास थोड़ी सी भी शेष न रह जाय ऐसी उत्कट इच्छा होती है।। ६७ ।।
सांसारिक सम्पत्ति और भोग उपभोग सामग्रीको प्राप्त करनेके लिए आवश्यक सबही कुकर्मोको जो मनुष्य बड़े चाव और तत्परतासे करते हैं, वे जन्म-जन्मान्तरोंमें प्राप्त होनेवाले दुखोंका पार नहीं पाते है और बहुत लम्बे अरसेतक नरक-गतिमें ही सड़ते हैं ।। ६८॥
इनमेंसे कुछ लोगोंको नारकी घड़ेमें बन्द करके पकाते है, दूसरोंको अत्यन्त तपी बाल और राखमें उसी तरह भूजते हैं । जैसे धान्य भाड़में भुजते हैं तथा अन्य लोगोंको पीट पीटकर भूसेके समान चूर्ण कर देते हैं ।। ६९।।
कुछ नारकी आरियोंसे चीरकर दो बराबर टुकड़े कर डालते हैं अथवा शरीरके मर्म (कोमल तथा जिनको पीटनेसे मोत हो सकती है ) स्थलों तथा जोड़ोंको किसी यन्त्रसे काटते हैं । अन्य नारकियोंकी गति और भी बुरी होती है क्योंकि वे भालोंसे कोंचे जाते हैं और बादमें मूसलोंसे कूटे जाते हैं ।। ७० ।।
कुछ नारकी कोल्हुओंमें पेले जाते हैं तथा दूसरोंका दुर्दैव उन्हें गन्नेकी चरखीमें डाल देता है। अन्य लोग सदा घूमते हुए चक्रयन्त्रोंपर बैठा दिये जाते हैं, वहाँपर वे काफो देरतक तेजीसे घुमाये जाते हैं और अन्तमें बेगसे रसातलमें फेंक दिये जाते हैं ।।७१ ॥
शरीरके सैकड़ों टुकड़े हो जानेपर वे वेदनासे मूच्छितसे हो जाते हैं। इन अवस्थाओंको भरनेमें उन्हें दारुणसे दारुण । समस्त क्लेश सहने पड़ते हैं । यह सब हो जानेपर अन्तमें वे प्रचण्ड वेगसे खिसककर एक गत में गिर जाते हैं ।। ७२ ।। १. [अतश्रद्धया। २. म कृतजैस्तुल्य', [शल°] ३. म भूत्वा ते ।
For Private & Personal Use Only
EDIESEALTERIAL
[९२]
Jain Education interational
www.jainelibrary.org