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________________ बराङ्ग चरितम् निर्विण्णो दीर्घनिश्वासः सर्वत्रगतमानसः । क्षीण 'बुद्धीन्द्रियबल: शोककर्मोदयाद्भवेत् ॥ ८७ ॥ इन्द्रियाणां च पञ्चानां योऽर्यां लब्ध्वा मनोरमान् । जुगुप्सते विपुण्यात्मा जुगुप्साकर्म पीडितः ॥ ८८ ॥ स्त्री चेव पुंस्त्वसंदर्शात्पुमांसमभिलष्यति । लाक्षेवानलसंस्पर्शात्क्षिणेनैव विलीयते ॥ ८९ ॥ पुवेदः स्त्र्यभि संदर्शात्स्त्रियं यथाग्नेर्घृतकुम्भस्तु क्षणेनैव इष्टकापाकसंदर्श विफलं मदनाश्रितम् ( ? ) । दौरूप्यं गर्हितं याति स समभिलष्यति । विलीयते ॥ ९० ॥ Jain Education International नपुंसक वेदतः ।। ९१ ॥ जो प्राणी एकदम काँपने लगता है तथा बोली बन्द हो जाती है या हकला-हकला कर बोलने लगता है यह सब भय नोकषायका ही प्रभाव है ।। ८६ ।। जब प्राणी हरएक बातसे उदासीन हो जाता है, लम्बी-लम्बी साँस छोड़ता है, मनको नियन्त्रित नहीं कर पाता है। फलतः मन सब तरफ अव्यवस्थित होकर चक्कर काटता है, इन्द्रियाँ इतनी दुर्बल हो जाती हैं कि वे अपना कार्य भी नहीं कर पाती हैं तथा बुद्धि विचार नहीं सकती है, तब समझिये कि उसके शोक नोकषायका उदय है ॥ ८७ ॥ जो पुण्यहीन व्यक्ति पाँचों इन्द्रियोंके परमप्रिय भोगों और उपभोगोंकी प्राप्ति करके भी उनसे घृणा करता है या ग्लानिका अनुभव करता है, समझिये उसे जुगुप्सा नोकषायने जोरों से दबा रखा है ॥ ८८ ॥ पुरुषत्वके दर्शन होते ही जो जीव पुरुषको प्राप्त करनेके लिए आतुर हो उठता है उसे स्त्रोवेद कहते हैं । स्त्रीवेदधारी जीव पुरुषको देखते ही ऐसा द्रवित हो उठता है जैसे कि लाख आग छुआते ही बह पड़ती है ॥ ८९ ॥ स्त्रीका साक्षात्कार होते ही जो जीव स्त्रीको पानेके लिए आकाश पाताल एक कर देता है यह पुंवेदका ही कार्य है । पुरुषवेद युक्त प्राणी स्त्रीको देखते ही वैसा पिघल जाता है जैसे कि जमे घीका घड़ा अग्नि स्पर्श होते क्षणभर में ही पानी-पानी हो जाता है ।। ९० ॥ टोंके अवेके समान ( बाहर आगका नाम नहीं और भीतर भयंकर दाह ) किसी प्राणीमें जब काम उपभोग सम्बन्धी भयंकर विकलता होती है, तथा अत्यन्त निन्दनीय कुरूपपना होती है । समझिये यह सब नपुंसक वेदका ही परिपाक है ॥ ९१ ॥ १. म क्षण, २. [स्त्रीवेदः], For Private & Personal Use Only चतुर्थ: सर्गः [ ७६ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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