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________________ बराङ्ग चरितम् यदुःखं त्रिषु लोकेषु शारोरं वाथ मानसम् । समस्तं तदसातस्य कर्मणः पाक उच्यते ॥ ५९॥ यत्सुखं त्रिषु लोकेषु शारीरं वाथ मानसम् । तत्सर्व सातवेद्यस्य कर्मणः पाक उच्यते ॥ ६०॥ केवलिश्रुतधर्माणां' गुरूणामहतां सदा। चातुर्वर्णस्य संघस्य अवर्णाबद्धवादिनः ।। ६१॥ मार्गसंदूषणं कृत्वा अमार्ग देशयन्ति ये। दृष्टिमोहं प्रबध्नन्ति जीवाः संसारभागिनः॥६२॥ उपस्थितिमें भी शान्त रहना, भोतर बाहर पवित्र रहना, तपस्याके अभ्यासके साथ व्रतोंका आचरण, ब्रह्मचर्य, शीलधारण, संयम पालन और मन, वचन तथा कायपर नियन्त्रण रखना जीवको सातावेदनीयका बन्ध कराते हैं ॥ ५८ ।। ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और नरकलोकमें जितने भी ताड़न, भेदन आदि शारीरिक और शोक, चिन्ता आदि मानसिक दुःख होते हैं वे सबके सब जीवके साथ बँधे असातावेदनीय कर्मके ही परिपाक हैं ।। ५९ ॥ इसी प्रकार तीनों लोकोंमें प्राप्त होनेवाले स्वास्थ्य, सेवकादि शारीरिक सुख अथवा प्रेम, प्रसन्नता आदि मानसिक सुख भी उक्त दान, आदि शुभकर्मोके द्वारा वाँधे गये सातावेदनीयके फलोन्मुख होनेपर ही प्राप्त होते हैं ॥ ६ ॥ दर्शनमोहनीय बन्धविमर्ष जो लोग कवलाहारी, आदि कहकर केवली भगवानकी (केवली-अवर्णवाद), 'है भी नहीं भी है इसलिए सब संशयात्मक है' रूपसे स्याद्वादमय सत्य शास्त्रकी ( श्रुत अवर्णवाद ), 'अहिंसापर ही जोर देकर राष्ट्रको सण्ढ बना दिया है' आदि मिथ्या लाँछनों द्वारा धर्मकी (धर्मावर्णवाद ), 'कमंडलुमें रुपया पैसा भरे रहते हैं' आदि भ्रांतियोंसे सद्गुरुओंको ( गुरु अवर्णवाद ) 'प्रथम अर्हन्त ऋषभदेव मलमें पड़े रहते थे' इत्यादि लिखकर वीतराग प्रभुकी ( देवावर्णवाद), श्रावक, श्राविका, मुनि और आर्यिकाओंके चतुर्विध संघका, नग्नमुनि तथा आयिकाओंका आमने सामने आना भी वासनाको जाग्रत कर देता होगा' के समान अपने मानसिक पतनको प्रकट करके जो बिना सिर-पैरकी निन्दा करते ( संघअवर्णवाद ) हैं ।। ६१ ॥ वीतराग केवली प्रभुके द्वारा उपदिष्ट स्वैराचार विरोधी सन्मार्गका विरोध करके जो धर्माचरणकी आड़में वासना पूतिमें सहायक मिथ्यामार्गका उपदेश देते हैं उन लोगोंका संसार भ्रमण बढ़ता ही जाता है, कारण वे जीव निश्चयसे दर्शनमोहनीय कर्मका बन्ध करते हैं ।। ६२ ।। [७०] १.म.श्रुति । २. क संसारमोगिनः । www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education international
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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