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________________ Marauwarenewmomemagwwwomemamawesomeownewww जावन ही है गरु धीरे-धीरे ले जाओ। उसे अनुभव होने दो कि जैसे-जैसे आग के चाहेगा, हो सकेगा। लेकिन एक बात खयाल रखना कि जब मंत्र पास जाता है, वैसे-वैसे शरीर झुलसता है। और इसमें भी कोई को पढ़े तो बंदर की याद न आये। उस आदमी ने कहा, फिकिर हर्ज नहीं है अगर वह एक बार जलती हुई आग में अंगुली भी छोड़ो, बंदर की कभी याद आयी ही नहीं जिंदगी में, अब क्यों डाल ले और थोड़ा जल जाए और फफोला उठ आये, कोई हर्ज आयेगी। लेकिन बस वहीं झंझट हो गयी! नहीं। लेकिन यह जीवनभर के लिए सिखावन हो जाएगी। तुम | वह मंदिर से नीचे भी नहीं उतर पाया कि बंदर ही बंदर! उसने तो आकर्षण बढ़ेगा। जहां-जहां हम मन | बहत झिडका। उसने बार-बार मंत्र को याद करने की कोशिश को जाने से रोकते हैं, मन वहीं-वहीं उतावला होता है जाने को। की, लेकिन जैसे ही मंत्र आये कि उसके पहले बंदर मौजूद हो मन का नियम समझो। नियंत्रण निमंत्रण बन जाता है। निषेध जाए। रातभर उसने चेष्टा की कि पांच बार तो बिना बंदर के एक पुकार बन जाती है। रोको जाने से कहीं मन को और सब तरफ दफा कह लूं, लेकिन न कह पाया। आधी पागल हालत में सुबह भूलकर मन वहीं-वहीं जाने लगता है। कभी देखा है, दांत टूट आया। उसने उस गुरु को कहा कि तुम भी हद्द के आदमी हो! जाता है तो जीभ वहीं-वहीं जाती है। रोको उसे। फिर तुम भूले एक तो वर्षों की सेवा के बाद मंत्र दिया, यह बंदर क्यों साथ दे कि फिर जीभ वहीं गयी। कहां चौबीस घंटे याद रखोगे! तुम दिया! अगर बंदर ही शर्त थी, तो चुप रहते। मुझे बंदर कभी याद जानते हो दांत टूट गया, अब वहां कुछ जीभ को ले जाने जैसा भी आते ही न थे, जिंदगी बीत गयी। और आज रात, मंत्र को पांच नहीं है। लेकिन खाली जगह में जीभ जाती है। तुम रोकते हो तो | बार कहना तो मुश्किल, एक बार कहना मुश्किल है। गुरु ने और-और जाती है। कहा, मैं भी क्या कर सकता हूं! शर्त वही है। वह पूरी हो तो ही मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि एक बहुत गहरा नियम है-विपरीत मंत्र सार्थक होता है। परिणाम का नियम। तुम जो नहीं करना चाहते, वही होता है। तुम पक्का मान लो, वह मंत्र कभी सार्थक हुआ न होगा। नये सिक्खड़ को देखा है साइकिल सीखते हुए? साठ फीट चौड़े | जितनी चेष्टा होगी, उतना ही बंदर प्रगाढ़ होता जाएगा। रास्ते पर, रास्ते के किनारे लगे मील के पत्थर से उसकी साइकिल मन का एक नियम है। तुम जिस चीज को दबाओगे, उभरेगी। जाकर टकरा जाती है। साठ फीट चौड़ा रास्ता था, कोई रास्ते पर दबाने से कभी कोई मुक्त नहीं होता। मुक्ति दमन से नहीं आती। न था। सुनसान पड़ा था। लेकिन इसको हुआ क्या? यह लाल मुक्ति बोध से आती है। समझ से आती है। और एक बार समझ मील के पत्थर की तरफ क्यों आकर्षित हो गया? जैसे ही नया आ जाए, तो जीवनभर के लिए एक दीया जल जाता है भीतर। सिक्खड़ पत्थर देखता है, वह घबड़ाता है। वह घबड़ाता है कि मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की एक रात अपनी पत्नी से कुछ कहीं इस पत्थर से टकरा न जाऊं! साठ फीट चौड़ा रास्ता भूल | कहा-सुनी हो गयी। पत्नी बहुत चिल्लाने लगी, चीखने लगी। जाता है। इस पत्थर से टकरा न जाऊं, नजर पत्थर पर अटक | मुल्ला थरथर कांपने लगा। आखिर पत्नी ने कहा, कायर कहीं जाती है। और जैसे वह पत्थर से बचने लगता है, वैसे रास्ता तो | के, क्यों थरथर कांप रहे हो? तुम आदमी हो कि चूहे! मुल्ला ने बिलकुल ही भूल जाता है, पत्थर और वह, बस दो ही रह जाते कहा, देवी! आदमी ही होना चाहिए, क्योंकि अगर मैं चूहा हैं। फिर एक अदम्य आकर्षण घबड़ाहट में पैदा हुआ। उसे होता, तो तू थरथर कांपती। इस उपद्रव और झगड़े में पत्थर की तरफ खींचने लगता है। कोई पत्थर खींच रहा है, ऐसा मोहल्ले-पड़ोस के लोग भी आ गये। संयोग की बात एक चोर नहीं। खुद के ही निषेध से खिंचा जा रहा है। घर में घुसा था। वह पकड़ा गया। बड़ी प्रसिद्ध कथा है कि एक युवा एक साधु के पीछे पड़ा था। अदालत में मुकदमा चला। उस चोर से मजिस्ट्रेट ने पूछा, उसके पैर दबाता, सेवा करता, कहता कि कुछ चमत्कारी शक्ति तुम्हें कुछ कहना है? उसने कहा सिर्फ इतना ही कहना है हुजूर, दे दो। साधु उससे घबड़ा गया था, उसने कहा, अच्छा भई! यह कि मैं कभी शादी न करूंगा। और इतनी मेरी प्रार्थना है, और मंत्र है। छोटा-सा मंत्र है, इसे पांच बार पढ़ना है। बस पांच बार कोई भी सजा दे दो, शादी करने भर की आज्ञा मत देना। बस, पढ़ने से तुझे सिद्धि उपलब्ध हो जाएगी। तू जो भी करेगा, करना | बहुत देख लिया। रात जो मुझे दर्शन हुआ है! मैं भी आदमी हूं, 85 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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