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________________ जिन सूत्र भाग: 2 SERI व्यवसायी की बुद्धि तो नीति में से भी व्यवसाय ही खोजेगी। दूर पड़ गया, उसकी भूख-प्यास की भी याद नहीं आती। और जो इस ग्राहक को बुलाने को, देने को राजी नहीं है, वह महावीर ने ऐसे उपवास किये थे। तुम भी उपवास कर लेते साझीदार को भी बताने को राजी नहीं हो सकता। हो। लेकिन तुम्हारे उपवास में भोजन का इतना चिंतन चलता है नैतिक व्यक्ति बेशर्त नैतिक नहीं होता। धार्मिक व्यक्ति बेशर्त कि करीब-करीब भोजन पर ही ध्यान अटक जाता है। भोजन नैतिक होता है। उसकी कोई शर्त नहीं है। नीति कोई साधन नहीं करते हए तम भोजन के संबंध में इस भांति कभी नहीं सोचते. है, जिससे कहीं पहुंचना है। नीति ही उसका साध्य है। जैसा उपवास करके सोचते हो। भोजन कर लिया दो बार, तो शुभाचरण उसका आनंद है। भूल गये। लेकिन जिस दिन उपवास थोप लिया अपने ऊपर, इसे खयाल में लेना, क्योंकि यह सारे सूत्र इसी संबंध में हैं। चौबीस घंटे भोजन की ही याद आती-जाती है। यह तो उपवास कोई व्यक्ति नर्क के डर से नैतिक आचरण कर रहा है। कोई | न हुआ। यह तो उपवास के प्रतिकूल हो गया, विपरीत हो गया। व्यक्ति चौराहे पर खड़े पुलिसवाले के डर से नैतिक आचरण कर एक ब्रह्मचर्य है, जो कामवासना की व्यर्थता के बोध से जन्मता रहा है। कोई व्यक्ति अदालत के भय से नैतिक आचरण कर रहा है। उसे बांध-बांधकर लाना नहीं पड़ता। तुम्हारी समझ ही, है। भय से नीति का कैसे जन्म होगा! भय से थोथे आचरण का तुम्हारे जीवन का अनुभव ही तुम्हें उस जगह ले आता है कि ऊर्जा, जन्म हो सकता है। भय के कारण तुम ऊपर-ऊपर अपने को | का तुम व्यर्थ उपयोग बंद कर देते हो। बंद करने की चेष्टा नहीं संभालकर रख सकते हो। लेकिन भीतर की अग्नि का क्या करते, बंद हो जाता है। तुम्हारी समझ ने तुम्हें शरीर की व्यर्थता होगा? और इसलिए अकसर तुम पाओगे, जिनको हम समझा दी। तुम्हारी समझ ने तुम्हें शरीर के क्षणभंगुर-रस का साधारणतः नैतिक पुरुष कहते हैं, वे सभी पाखंडी होंगे। बोध करा दिया। तुम्हारी समझ ने, जागरूकता ने, तुम्हारे पाखंड का इतना ही अर्थ है, ऊपर नैतिक होंगे, भीतर अनीति अनभव ने तम्हारे भीतर एक नयी दिशा खोज ली। उसी दिशा में के सागर में लहरें उठ रही होंगी। जो उन्होंने बाहर से रोक लिया | ऊर्जा बहने लगी। ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन हुआ। तुम ऊर्ध्वरेतस है अपने को, न करने से, वही उनके भीतर चित्त में घाव की तरह बने। तब तो एक ब्रह्मचर्य है, जिसमें फूल-जैसी सरलता होगी, गहरा होता जाएगा। जिससे उन्होंने अपने को किसी तरह वंचित | सहजता होगी, कोमलता होगी। कर दिया है, वह उनके मन में बार-बार सपने उठायेगा। और एक ब्रह्मचर्य है, जो तुमने वासना की अदम्य पुकार से आकर्षित करेगा। अगर उपवास घटा हो, तो तुम्हें भोजन की घबड़ाकर, वासना के अदम्य प्रभाव से घबड़ाकर अपने ऊपर द न आयेगी। कभी-कभी घटता है उपवास। कभी तम आरोपित कर लिया। जबर्दस्ती थोप लिया। प्राण तो भागे जाते संगीत सुनने में ऐसे लीन हो गये कि याद ही न रही शरीर की। थे वासना की तरफ, तुमने लगाम खींच ली। लेकिन इससे तुम संगीत से ऐसे भर गये कि भीतर जगह ही न रही भोजन की। शांति को उपलब्ध न होओगे। इससे तुम्हारा चित्त और भी संगीत में ऐसे डूब गये कि शरीर और शरीर की भूख का विस्मरण | कामक हो जाएगा। इससे तुम्हारे चित्त में कामवासना ही हो गया। तो उपवास सहज घटित हुआ। ध्यान में डूब गये और | कामवासना भर जाएगी। इससे तुम मवाद ही मवाद से भर शरीर भूल गया, तो उपवास सहज घटित हुआ। लेकिन अगर जाओगे। इससे तुम्हारा उठना, बैठना, सोना, जागना, ध्यान, तुमने चेष्टा से उपवास किया–पर्युषण आया, व्रत के दिन पूजा, प्रार्थना, सभी पर कामवासना की छाप पड़ जाएगी। यह आये, तुमने उपवास किया तो तुम दिन-रात भोजन के संबंध तो रोग हो गया। स्वास्थ्य न हुआ। में ही विचार करोगे। यह उपवास अंतर्तम से नहीं आया। यह महावीर जिस ब्रह्मचर्य की बात करते हैं, वह जीवन के अनुभव उपवास नहीं है, अनशन है। उपवास शब्द का ही अर्थ होता है, से आये। जीवन के कडुवे-मीठे अनुभव तुम्हें कहीं पहुंचा दें; आत्मा के निकट आ जाना, आत्मा के पास आ जाना। आत्मा के हाथ जल जाए, फिर कौन डालता है आग में हाथ! वास में आ जाना। पास...और पास...और पास...। आत्मा मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अगर छोटा बच्चा आग की तरफ जा के इतने पास हो गये कि शरीर बहुत दूर पड़ गया, हजारों मील | रहा हो, तो बजाय उसे जबर्दस्ती रोकने के, उसे आग के पास 84 | JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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