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________________ हला सूत्र क्योंकि उसका मूल्य तो लाभ का था। ईमानदारी से मिलता था 1 'चारित्रहीन पुरुष का विपुल शास्त्र-अध्ययन भी | तो ईमानदारी ठीक थी, बेईमानी से मिलता है तो बेईमानी ठीक व्यर्थ ही है. जैसे कि अंधे के आगे लाखों-करोडों है। ऐसे आदमी के बेईमान होने में जरा-भी अडचन न । दीपक जलाना व्यर्थ है।' ऐसे आदमी की ईमानदारी उपकरण है, साधन है, साध्य नहीं। सुवहुं पि सुयमहीयं किं काहिइ चरणविप्पहीणस्स। ऐसे आदमी के चरित्र का कोई भरोसा नहीं। अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडी वि ।। अगर एक आदमी इसलिए शुभ कार्य करता है कि इससे स्वर्ग महावीर ने चरित्र और चारित्र में बड़ा भेद किया है। एक चरित्र मिलेगा, तो ऐसे आदमी के चरित्र का कोई भरोसा नहीं। क्योंकि है, जो हम ऊपर से आरोपित करते हैं। एक चरित्र है, जो भीतर कल अगर इसे पता चल जाए कि बेईमान भी रिश्वत देकर और से आविर्भूत होता है। एक चरित्र है, जिसका हम अभ्यास करते स्वर्ग पहुंच रहे हैं, कल इसे पता चल जाए कि ईमानदार नर्क में हैं। और एक चरित्र है, जो सहज खिलता है। सहज खिलनेवाले पड़े हैं और सड़ रहे हैं, तो यह ईमानदारी छोड़ देगा। यह बेईमानी को ही उन्होंने चारित्र कहा है। वही धार्मिक है। जो आरोपित है, पर उतर जाएगा। स्वाभाविक है। क्योंकि साध्य तो ईमानदारी | अभ्यासजन्य है. चेष्टा से बांधा गया है. वह चरित्र नैतिक है। नहीं थी। , महावीर की भाषा में, वास्तविक चरित्र को उन्होंने | मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को समझा रहा था, निश्चय-चरित्र कहा है। अवास्तविक चरित्र को व्यवहार-चरित्र दुकान पर। सभी बातें समझा रहा था धीरे-धीरे, बेटा बड़ा हो कहा है। एक तो चेहरा है दूसरों को दिखाने के लिए। और एक गया, दुकान संभाले। एक दिन उसने कहा कि सुन, देख, यहां स्वयं का मौलिक चेहरा है। एक तो व्यवहार है। सच बोलते हो, व्यवसाय की नैतिकता का प्रश्न है। यह जो आदमी अभी-अभी ईमानदारी से जीते हो, लेकिन वह भी व्यवहार है। सारी दुनिया गया, दस रुपये का नोट इसे देना था, लेकिन भूल से यह के दुकानदार कहते हैं, 'आनेस्टी इज़ दि बेस्ट पालिसी।' दस-दस के दो नोट दे गया है, एक-दूसरे में जुड़े थे। अब यह ईमानदारी श्रेष्ठतम नीति है। लेकिन पालिसी' होशियारी है सवाल उठता है व्यावसायिक नीति का कि मैं अपने साझीदार को उसमें। नीति, धर्म नहीं। ईमानदार इसलिए होना उचित है कि यह दस रुपये का दूसरा नोट बताऊं कि न बताऊं? वह यह नहीं ईमानदारी में लाभ है। ईमानदारी स्वयं बहुमूल्य नहीं है, लाभ के | कह रहा है कि नीति का सवाल उठता है कि मैं इस आदमी को कारण बहुमूल्य है। बुलाऊं जो बीस रुपये दे गया है। यह तो बात खतम हुई। इससे अगर ईमानदारी लाभ के कारण बहुमूल्य है, और किसी दिन | तो कुछ लेना-देना नहीं। अब मैं अपने पार्टनर' को बताऊं या बेईमानी से लाभ मिलता हो, तो ऐसा आदमी बेईमानी करेगा। न बताऊ? Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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