SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प हला प्रश्न: आप एक ही बात कहते हैं अनेक-अनेक ढंगों से। पर जब आपको सुनता हूं तो उस समय यही लगता है कि पहली बार सुन रहा हूं। और इतना आनंद मिलता है कि वापिस घर लौटकर जाने का जी नहीं करता। क्या करूं, मैं क्या करूं कि आपको सुनता ही रहूं ! एक बात है कहने को । क्योंकि एक ही सत्य है जानने को । सच पूछो तो एक बात भी कहने को नहीं है । जानने को है कुछ, कहने को नहीं । जागने को है कुछ, सुनने को नहीं । कुछ है, जो कहा नहीं जा सकता। उसी को कहना है। ढंग | बदल जाते हैं। और अच्छा है कि तुम्हें याद रहे कि मैं एक ही | बात कह रहा हूं । ढंगों में बहुत मत उलझ जाना । बहुत लोग उलझ गये हैं । कोई हिंदू में, कोई मुसलमान में, कोई जैन में, वे सब ढंग हैं। कहने के भेद हैं। अभिव्यंजनाएं हैं अलग-अलग। अभिव्यक्तियां हैं अलग-अलग। जो कहा गया है, वह एक है। और जो कहा गया है, वह कुछ ऐसा है कि कहा नहीं जा सकता है। इसीलिए बहुत ढंगों से कहना पड़ता है कि शायद एक ढंग चूक जाए, तो दूसरे ढंग से पकड़ में आ जाए। दूसरा चूके, तो तीसरे से पकड़ आ जाए। इसलिए मैं रोज नये-नये इशारे करता हूं। अंगुलियां अलग-अलग हों भला । जिस तरफ इशारा है, वह निश्चित ही एक है। अगर तुम कल चूक गये, तो आज मत चूक जाना। यह निरंतर एक ही तरफ सतत इशारा ऐसे ही है जैसे जलधार गिरती है पहाड़ Jain Education International 2010_03 से सख्त चट्टानों पर । जल तो बहुत कोमल है, चट्टान बड़ी सख्त है पर धार गिरती ही रहती है, गिरती ही रहती है, गिरती ही रहती है, एक दिन चट्टान टूट जाती है, रेत होकर बह जाती है। कोमल जीत जाता है सख्त पर । निर्बल जीत जाता बलशाली पर। पहाड़ से गिरते हुए झरने को देखकर तुम्हें कभी याद आया या नहीं - निर्बल के बल राम । नहीं आया, तो फिर तुमने पहाड़ से गिरता झरना नहीं देखा। झरना जीत जाता है, जिसका कोई भी बल नहीं। चट्टान हार जाती है, जिसका सब बल है। आदमी का मन तो है चट्टान की भांति । बड़ा सख्त । सदियों पुराना | बड़ा प्राचीन । सनातन । सदा से चला आया । और चैतन्य की धार है जल, जलधार की भांति । अभी-अभी । अभी-अभी फूटी। अभी बूंद-बूंद टपकी। लेकिन जीत जाएगी चैतन्य की धार । तो रोज-रोज तुमसे एक ही बात कहता हूं, वही जलधार है, वही जलधार है। पहले दिन न टूटेगी चट्टान, दूसरे दिन टूटेगी। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, चट्टान को टूटना ही पड़ेगा। चट्टान पुरानी है, पर निष्प्राण है। जलधार नयी है, पर सप्राण है । ढंग बदल लेता हूं, शब्द बदल लेता हूं। और इसीलिए मैंने सभी शास्त्रों के शब्द ले लिये हैं। क्योंकि जब मुझे यह दिखायी पड़ गया कि एक ही है, तो सभी शास्त्र मेरे हो गये । अब मुझे कोई फर्क नहीं है महावीर और मुहम्मद में, कृष्ण में और क्राइस्ट में | ढंग का फर्क है। दोनों ढंग प्यारे हैं। जिस ढंग से तुम्हें समझ में आ जाए वही ढंग प्यारा है। ढंग पर मत जाना। वह जो ढंग के भीतर छिपा है, उस पर ही ध्यान For Private & Personal Use Only 65 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy