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प्रश्न-सार
SARAN
प्रश्नकर्ता के खयाल में, भगवान का एक ही बात अनेक-अनेक ढंगों से कहना,
__ पर सुनते समय उसे लगना जैसे पहली बार सुनता हो। और इतना आनंद मिलना कि वापिस घर लौटने का मन न होना।
प्रश्नकर्ता की विह्वलता-क्या करे, क्या करे वह कि भगवान को सुनता ही रहे!
घर से चले थे, अनेकों प्रश्न से घिरे थे। कल के प्रवचन से अचानक सारे प्रश्न गायब!
ऐसा क्यों और कैसे हुआ? भगवान का प्रवचन सुनते समय आंखों का बंद होने लगना, कानों का बहरा होने लगना और चेष्टा से भी स्थिति का न संभलना। इधर जी की चाह कि जब परमात्मा समक्ष है तो उसे निहारता रहे,
वचनामृत-रसपान करता रहे। कैसे होशपूर्वक सुनना हो-भक्त की पुकार... मैं क्या प्रश्न करूं और आप क्या उत्तर दें!
प्रश्न भी आप, उत्तर भी आप।
प्रेम में प्रश्न हो, उत्तर हो, या चुप्पी? कई बार भगवान का रंगीन दिखायी पड़ना-यद्यपि एक खालीपन की भांति
-और प्रश्नकर्ता का आनंद से भर उठना
यह सब क्या?
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