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जिन सूत्र भाग: 2
रखना। और वह एक तुम्हें सुनायी पड़ने लगे तो फिर सुनने की पड़ी है कि शायद बात वही है, लेकिन शायद! अभी यह प्रगाढ़ भी जरूरत न रह जाएगी। वह एक तुम्हें दिखायी पड़ने लगे, तो | होकर तुम्हारा जीवंत अनुभव नहीं बना है। फिर दिखाने का कोई प्रयोजन न रह जाएगा। आंखवालों को तो | इसलिए जब भी तुम मुझे सुनोगे, लगेगा नया। नया कुछ भी कोई राह नहीं दिखाता। अंधों को दिखानी पड़ती है। स्वस्थ को | नहीं है। सत्य नया कैसे हो सकता है! सत्य न नया है, न पुराना तो कोई औषधि नहीं पिलाता, रोगी को पिलानी पड़ती है। है। सत्य तो बस है। नये-पुराने का कोई संबंध सत्य पर नहीं जागो! उस एक को जिसे मैं दिखाने की कोशिश कर रहा हूं, | लगता, क्योंकि सत्य समय के बाहर है। नये और पुराने तो देखने की कोशिश करो! तो जो मैं कह रहा हूं उसका बहुत मूल्य | समय के भीतर होते हैं। सत्य कुछ ऐसा थोड़े ही है कि कल था नहीं है। एक बार समझ में आ जाए, अंगुली व्यर्थ हो जाती है, और कल नहीं होगा। या आज हुआ है। सत्य तो बस है। फिर तो चांद पर नजर टिक जाती है। शास्त्र व्यर्थ हो जाते हैं, | आज-कल सत्य के भीतर हो रहे हैं। सत्य आज-कल के भीतर सत्य पर आंखें बंध जाती हैं। उसी दिन से फिर सुनने-सुनाने की नहीं हो रहा है। जिस क्षण तुम्हें यह बात प्रगाढ़ होने लगेगी, कोई बात न रही, पढ़ने पढ़ाने की कोई बात न रही।
टूटेगी तुम्हारी चट्टान और जलधार को जगह मिलेगी, फिर तुम्हें कबीर ने कहा है
याद भी न आयेगी क्या पुराना और क्या नया! फिर तो जो है, 'लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात।'
वस्तुतः वही तुम्हें घेर लेगा। वही तुम्हारे बाहर है, वही तुम्हारे पर बिना इशारों के आंख तम्हारी उस तरफ जाएगी न। तो | भीतर है। खयाल रखना, कहीं मेरी अभिव्यंजना ही बाधा न बन जाए। और जिस दिन यह घटना घट जाएगी, उसी दिन फिर कहीं भी कहीं ऐसा न हो कि तुम सुनने में ही रस लेने लगो। कहीं ऐसा न | जाओ, मुझसे दूर न जा सकोगे। घर लौटो, तो भी मुझमें ही हो कि सुनने का संगीत ही तुम्हें पकड़ ले। कहीं ऐसा न हो कि लौटोगे। यहां आओ, तो मेरे पास आओगे। न आओ, तो मेरे सुनना ही तुम्हारी बेहोशी हो जाए। कहीं यह मनोरंजन न बन पास आओगे। फिर एक संबंध बनेगा, जो समय और स्थान के जाए। जागरण बने तो ठीक, मनोरंजन बने तो चूक गये। तो तुम | बाहर है। फिर एक सेतु जुड़ जाएगा, जो देहातीत है। लेकिन मेरे पास भी आये और दूर ही रह गये। मेरे शब्दों को मत | जब तक नहीं सुना है, तब तक बार-बार आना होगा। आने की पकड़ना। उनका उपयोग कर लेना। और उपयोग होते ही उन्हें | तकलीफ उठानी होगी। अगर न उठानी हो तकलीफ तो जल्दी ऐसे ही फेंक देना जैसे खाली चली हुई कारतूस को फेंक देते हैं। | करो, चट्टान को टूटने दो। सुनो! सुनो ही मत, गुनो! हाथ ही फिर उसे रखने का कोई अर्थ नहीं। चली कारतूस को कौन ढोता | मत देखो मेरा, उस तरफ देखो जिस तरफ हाथ इशारा कर रहा है? और जो ढोयेगा, वह किसी दिन मुसीबत में पड़ेगा। वह | है। उस अदृश्य को पकड़ने की कोशिश करो। फिर तुम जहां भी काम नहीं आयेगी। जिस दिन तुम्हें जरा-सी झलक मिली, उसी | होओगे, जैसे भी होओगे, कोई भेद मेरे और तुम्हारे बीच संबंध दिन शब्द चली हुई कारतूस हो गये।
का न पड़ेगा। फिर मैं शरीर में रहं, तुम शरीर में रहो, या न रहो, पूछा है, “एक ही बात आप कहते हैं अनेक-अनेक ढंगों से।। यह जोड़ कुछ ऐसा है कि टूटता नहीं। पर जब भी आपको सुनता हूं तो उस समय यही लगता है कि अभी तो लौटने में तकलीफ होगी। क्योंकि लौटकर जब तुम पहली बार सुन रहा हूं।'
जाते हो, अकेले जाते हो, मुझे अपने साथ नहीं ले जाते। मैं ऐसा इसलिए लगता है कि जो मैं तुम्हें दिखा रहा हूं, वह तुम्हें | चलने को राजी हूं। तुम अपने घर में मेरे लिए जगह ही नहीं अब तक दिखायी नहीं पड़ा। जिस दिन दिखायी पड़ जाएगा, | बनाते। सुन लोगे मुझे, समझ लोगे मुझे, तो मैं साथ ही आ रहा उस दिन फिर ऐसा न लगेगा। फिर मेरे शब्द कितने ही नये हों, | हूं। मुझसे दूरी गयी, दुई गयी। फिर तुम मुझसे भरे हुए लौटोगे। महावीर के बहाने कहं कि मुहम्मद के बहाने कह, तम जल्दी ही जब तक ऐसा नहीं, तब तक तो बड़ी तकलीफ होगी। पहचान लोगे कि बात वही है। अभी तुम्हें दिखायी नहीं पड़ा है। अभी बज्मे-तरब से क्या उठू मैं तुमने सुना है बहुत बार, ऐसी तुम्हारे अंतस-चेतन में झांई भी | अभी तो आंख भी परनम नहीं है
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