SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 567
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंडितमरण सुमरण है MARATHI विचारक हैं। फ्रायड जैसे विचारक हैं। जो कहते हैं, मृत्यु की कल हलाहल ही पिला देना मुझे बात ही नहीं उठानी चाहिए। हालांकि फ्रायड खुद मृत्यु से बड़ा आज मधु की रात मधु की बात हो। भयभीत होता था। वह इतना भयभीत हो जाता था कि कभी फिर भी हम जानते हैं क्योंकि जो है, उसे हम कैसे झुठला अगर कोई मौत की ज्यादा बात करे तो दो दफे तो वह बेहोश हो सकते हैं? गया था। किसी ने मौत की चर्चा छेड़ दी और वह घबड़ाने हाथ में रवि-चंद्र पग में फूल है लगा। वह फेंट ही कर गया, गिर ही गया कुर्सी से। नृत्यमय अस्तित्व उन्मद झूल है उसका शिष्य जुंग अपने संस्मरणों में लिखता है कि फ्रायड के रिक्त भीतर से मगर यह जिंदगी साथ वह अमरीका जा रहा था जहाज पर। जुंग की बड़ी बहुत | बस बगले-सी भटकती धूल है। दिनों की रुचि थी, इजिप्त की ममी–ताबूतों में, मुर्दा लाशों में। जानते तो हैंउसको क्या पता कि यह फ्रायड इतना घबड़ा जाता है। सोच भी बस बगले-सी भटकती धल है नहीं सकता था। दोनों जहाज के डेक पर खड़े थे। कुछ बात चल रिक्त भीतर से मगर यह जिंदगी पड़ी, संस्मरण निकल आया, उसने इजिप्त की ममियों की बात | इस रिक्तता को, इस सूनेपन को भरने के लिए हम हजार उपाय की। उसने उनका वर्णन किया। वह तो वर्णन करता रहा, करते हैं जिंदगी में। एकदम फ्रायड कंपने लगा और वह तो चारों खाने चित्त हो गया। महावीर कहते हैं, इस सूनेपन को तुम भर न पाओगे। तुम ऐसे व्यक्तियों से यह सदी प्रभावित हुई है। ऐसे व्यक्तियों ने कितना ही ढांक लो, यह उघड़ेगा। यह उघड़कर रहेगा। इस सदी के मानस को रचा है। फ्रायड का मनोविज्ञान इस सदी मृत्यु अवश्यंभावी है। तुम्हें अपनी इस शुन्यता का साक्षात्कार की आधारभूत शिला बन गया है। और फ्रायड कहता है, जो करना ही होगा। तुम्हें अपने को मिटते हुए देखना ही होगा। मृत्यु की बात करते हैं, वे मार्बिड, वे रुग्णचित्त। इससे तुम बच न सकोगे। इससे कोई कभी बच नहीं पाया। तो मगर थोड़ा सोचो। अगर फ्रायड और महावीर में चुनना हो तो बजाय बचने के, भागने के, मृत्यु को हम शुभ घड़ी में क्यों न कौन रुग्णचित्त मालूम होगा? महावीर मृत्यु का इतना चिंतन बदल लें? और चर्चा और इतना ध्यान करने के बाद जैसे महाजीवित मालूम | रात है, मधु है, समर्पित गात है पड़ते हैं। इधर फ्रायड, कहता है मृत्यु का चिंतन रुग्ण है। लेकिन भीतर से हम जानते भी हैं, सब जा रहा, सब क्षणभंगुर। पानी लगता है यह रैशनलाइजेशन है। लगता है, वह इतना डरता है | का बबूला—अब फूटा, तब फूटा। मगर दोहराए जाते हैं ऊपर खुद, कि अपनी सुरक्षा कर रहा है। वह इतना भयभीत है मृत्यु से सेकि जो मृत्यु की बात करते हैं, उनको वह रोकने की चेष्टा कर रहा रात है, मधु है, समर्पित गात है है कि यह बात ही रुग्ण है। यह बात ही मत उठाओ। आज तो यह पाप भी अवदात है महावीर में जीवन का फूल खिला है मृत्यु के मध्य में। नहीं, | सघन श्यामल केश लहराते रहें महावीर रुग्ण नहीं हैं। महावीर से स्वस्थ आदमी और खोजना मैं रहूं भ्रम में अभी तो रात है। मुश्किल होगा। हम कितनी-कितनी भांति भ्रम को पोसते हैं। कितनी-कितनी लेकिन हम साधारणतः महावीर की बजाय फ्रायड से राजी हैं। भांति भ्रम को उखड़ने नहीं देते। एक तरफ से उखड़ता है तो ठोंक हम कहें कुछ, चाहे हम जैन ही क्यों न हों, और जाकर मंदिर में | लेते हैं। दूसरी तरफ से उखड़ता है, वहां ठोंक लेते हैं। इधर महावीर की पूजा ही क्यों न कर आते हों, लेकिन अगर हम मन | पलस्तर गिरा, चूना उखड़ गया, पोत लेते हैं। टीमटाम करते में टटोलेंगे तो हम फ्रायड के साथ राजी हैं, महावीर के साथ रहते हैं। और यह टीमटाम करते-करते एक दिन बीत जाते; नहीं। अगर कोई मृत्यु की चर्चा छेड़ दे तो हम भी कहते हैं, कहां व्यतीत हो जाते हैं। की दुखभरी बातें उठा रहे हो! छोड़ो भी। इसके पहले कि ऐसी घड़ी आए, अपने को व्यर्थ 557 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy