SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 556 जिन सूत्र भाग: 2 | जाता है और बंजारे को अपना तंबू उखाड़ लेना पड़ता है । चल पड़ना पड़ता है। ‘पंडितमरण, ज्ञानपूर्वक मरण सैकड़ों जन्मों का नाश कर देता है, अतः इस तरह मरना चाहिए जिससे मरण सुमरण हो जाए।' अदभुत सदगुरु रहे होंगे महावीर । सिखाते हैं मरने की कला । कहते हैं, ऐसे मरो कि मरण सुमरण हो जाए। कैसे होगा मरण सुमरण? रोज-रोज मरो । प्रतिपल मरो । सुबह मरो, सांझ मरो। रात जब सोओ तो मर जाओ। जो दिन बीत गया उसके लिए मर जाओ। जो-जो बीतता जाता है उसके लिए मरते जाओ, उसको इकट्ठा मत करो। उसका बोझ मत ढोओ। बोझ की तरह अतीत को मत खींचो। जो गया, गया । उसे जाने दो। प्रतिपल नए हो जाओ! इधर मरे, उधर जन्म । इधर पुराने को छोड़ा, नए का आविर्भाव । तो मौत तुम्हें ऐसी जगह नहीं पाएगी, जहां तुम्हारे पास कुछ छीनने को हो । तुम्हारे पास कुछ होगा ही नहीं। किसी क्षण मौत आएगी तो तुम तो हर वक्त अतीत के लिए मरते जाते हो। अतीत के संबंध, आसक्तियां, राग, धन, पद, प्रतिष्ठा... तुम तो मरते जाते हो। सम्मान-अपमान, सफलता-विफलता... तुम तो मरते जाते हो । सुख-दुख, विषाद... तुम तो मरते जाते हो । मृत्यु एक दिन आएगी, तुम कोरे कागज की तरह पाए जाओगे। तुम्हारे पास पकड़ने को कुछ न होगा। तुम्हारे पास बुलाने को कुछ न होगा, चीखने-चिल्लाने को कुछ न होगा। तुम जानोगे, कोई मेरा नहीं । तुम जानोगे, कुछ मेरा नहीं । तुम खड़े हो जाओगे। तुम जूते पहनकर खड़े हो जाओगे। तुम मौत के हाथ में हाथ डाल लोगे। तुम कहोगे, मैं तैयार हूं। मैं तो सदा से तैयार था, इतनी देर क्यों लगाई ? इतनी देर कहां रही तू ? कबसे हम प्रतीक्षा करते। कबसे हम तैयार बैठे थे। बस, ऐसे आदमी से मौत हार जाती है। इसको महावीर फिर बिछुड़ जाएंगे। सुमरण कहते हैं। जीवन को, जो कि क्षणभंगुर है, उसे शाश्वत मत समझो। जो जाएगा वह जा ही चुका है। जो मिटेगा वह मिट ही रहा है। जो छूटेगा, वह तुम्हारे हाथ से छूट ही रहा है । व्यर्थ अटके मत रहो। व्यर्थ मुट्ठी मत बांधो, खोलो मुट्ठी । लेकिन हमारी तर्कदृष्टि और है। हम कहते हैं, जो छूटनेवाला है उसे जोर से पकड़ लो कि कहीं और जल्दी न छूट जाए। हम कहते हैं, जो क्षणभंगुर है उसे भोग लो। कहीं क्षण बीत न जाए। हम कहते हैं, इसके पहले मौत आए, जीवन को जी लो, निचोड़ लो रस । कहीं ऐसा न हो, कि मौत आ जाए और तुम रस ही न निचोड़ पाओ । चांदनी की डगर पर तुम साथ हो प्राण युग-युग तक अमर यह रात हो कल हलाहल ही पिला देना मुझे आज मधु की रात मधु की बात हो हाथ में रवि-चंद्र पग में फूल है नृत्यमय अस्तित्व उन्मद झूल है रिक्त भीतर से मगर यह जिंदगी बस बगूले- सी भटकती धूल है रात है, मधु है, समर्पित गात है आज तो यह पाप भी अवदात है सघन श्यामल केश लहराते रहें मैं हूं भ्रम में अभी तो रात है चांदनी की डगर पर तुम साथ हो प्राण युग-युग तक अमर यह रात हो -जो होना नहीं है उसकी हम आकांक्षा करते हैं। Jain Education International 2010_03 प्राण युग-युग तक अमर यह रात हो ! - कोई रात, कोई नींद, कोई सपना युग-युग तक होने को नहीं है। 1 चांदनी की डगर पर तुम साथ हो कौन किसके साथ है? चांदनी बड़ा झूठा सम्मोहन है। कौन किसके साथ है? लगते हैं कि लोग किसी के साथ हैं। राह पर अनजान मिल गए यात्री हैं। पलभर को साथ हो गया । नदी - नाव संयोग हैं। अभी नहीं थे साथ, अभी साथ हैं, अभी कल हलाहल ही पिला देना मुझे — कल मौत आए, ठीक। कल जहर पिलाओ, ठीक । आज मधु की रात मधु की बात हो। तो साधारणतः हम मृत्यु को टालते हैं कि कल होगी मृत्यु | आज तो जीवन है। आज क्यों मृत्यु की बात उठाएं? ऐसे विचारक भी हैं जगत में जो कहते हैं, मृत्यु की बात ही उठानी रुग्णता है। उनकी दृष्टि में महावीर तो मार्बिड, रुग्ण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy