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________________ पंडितमरण सुमरण हे बेईमान रहे होंगे। अगर परमात्मा ऐसा धोखा खा जाता है तो फिर | जीवन के फूलों से—जो भी फूल रहे हों; सुगंध के कि दुर्गंध के, हद्द हो गई। तम भी न खाते धोखा जब वह 'नारायण, नारायण' उनका इत्र मरते क्षण में तम्हारे सामने होगा। बुला रहा था, तो किसी ने धोखा नहीं खाया। उसकी पत्नी ने तुमने यह बात सुनी होगी। लोग कहते हैं, मरते वक्त आदमी धोखा नहीं खाया, उसके लड़के ने धोखा नहीं खाया। और जब के सामने पूरे जीवन की तस्वीर आ जाती है। उसका मतलब वह नारायण को बला रहा था तो वे सभी जान रहे होंगे कि केवल इतना ही है कि परे जीवन का सार-निचोड, सारे अनभवों किसलिए बुला रहा है। कुछ न कुछ उपद्रव... । पुराना पापी का इत्र आदमी के हाथ होता है। वही इत्र लेकर आदमी चलता था। मरते वक्त कुछ और करवा जाना चाहता हो। है, दूसरी यात्रा पर निकलता है। मैंने सुना है, एक पापी मर रहा था। उसने अपने सब बेटों को ! पंडितमरण का अर्थ है, व्यक्ति पूरे जीवन मरने के लिए तैयारी इकट्ठा कर लिया, और कहा कि मेरी आखिरी बात मानोगे? वे करता रहा। जो अवश्यंभावी है उसके लिए तैयार होता रहा। सब डरे। बड़े तो बहुत डरे क्योंकि वे जानते थे बाप को, कि वह | बुद्ध के पास जब कोई संन्यासी पहली दफा दीक्षित होते थे तो आखिरी बात में कहीं उलझा न जाए। जिंदगीभर उलझाया अब वे उन्हें कहते थे, तीन महीने मरघट पर रहो। वे थोड़े चौंकते कि आखिरी बात...और जाते-जाते कोई ऐसा दंदफंद न खड़ा कर किसलिए? मरघट पर क्या सार है? बुद्ध कहते, पहले मृत्यु जाए। मगर छोटा बेटा जरा नया-नया था और बाप को जानता को ठीक से देखो। बैठे रहो मरघट पर। आती रहेंगी लाशें, नहीं था तो वह पास आ गया और उसने कहा, आप कहें। उसने जलती रहेंगी चिताएं, हड्डियां टूटती रहेंगी, सिर फोड़े जाते रहेंगे, कान में कहा कि ये सब तो लुच्चे-लफंगे हैं। इन्होंने कभी मेरी राख हो जाएगी। लोग राख को बीनने आ जाएंगे। तुम यह सुनी नहीं और आज भी नहीं सुन रहे हैं। में मर रहा हूँ; बाप मर देखते रहो तीन महीने। बस बैठे रहो मरघट पर। । कसम खाते हो कि करोगे? उसने कहा, कसम | तीन महीने अगर तुम भी मरघट पर बैठोगे, और कछ देखने न खाता हूं। आप बोलिए तो। मिलेगा तो मृत्यु अवश्यंभावी है यह सत्य तुम्हारा अनुभूत सत्य उसने कहा, तो ऐसा करना; जब मैं मर जाऊं तो मेरी लाश को हो जाएगा। टुकड़े करके पड़ोसियों के घर में डाल देना और पुलिस में रिपोर्ट और किसी न किसी दिन तीन महीनों में, जिस दिन ध्यान ठीक लिखा देना। उसने कहा, लेकिन किसलिए? उसने कहा कि से पकड़ लेगा और चित्त एकाग्र होगा, चिता जल रही होगी... मेरी आत्मा बड़ी प्रसन्न होगी, जब सब बंधे जाएंगे। मेरी आत्मा और रोज-रोज चिता जलते देखोगे तो किसी दिन तुम नहीं सोचते की प्रसन्नता के लिए इतना तो कर देना। फिर मैं तो मर ही गया, ऐसा नहीं होगा कि तुम देख लोगे, यह मैं ही जल रहा हूं! यह देह तो काटने में हर्जा क्या है? जिंदगीभर से यह एक आकांक्षा रही मेरी जैसी देह है। यह देह ठीक मेरी जैसी देह है और राख हुई जा है कि इन सबको बंधा हुआ देख लूं। अब मरते बाप की यह रही है। मैं राख हो रहा हूं, यह तुम नहीं देख पाओगे? आकांक्षा—इनकार मत करना। देख, तूने कसम भी खा ली। यह अगर प्रतीति सघन हो जाए कि मृत्यु अवश्यंभावी है तो तो वह जो अजामिल बुला रहा था बेटे को कि 'नारायण, तम फिर तत्क्षण उसकी तैयारी में लग जाओगे। अभी तो हम नारायण', पता नहीं कौन-सा उपद्रव करवाने के लिए बुला रहा। जीवन की तैयार में लगे हैं—जीवन, जो कि जाएगा। उसकी हो। कोई धोखे में नहीं था, लेकिन कथाकार कहते हैं कि ऊपर तैयारी कर रहे हैं, जो कि छीना जाएगा। मृत्यु जो कि आएगी ही, का नारायण धोखे में आ गया। ये आदमी की बेईमानियां हैं। इस उसकी कोई तैयारी नहीं है। इधर हम तैयारी कर रहे हैं; मकान धोखे में मत पड़ना। तुम इस धोखे में मत जीना। बनाते, धन जोड़ते, पद-प्रतिष्ठा-सारा आयोजन करते हैं कि मृत्यु के क्षण में तुम वही कर पाओगे, जो तुमने जीवनभर किया जीना है। मरने का आयोजन कब करोगे? और यह जीना सदा है। उसी का सार-निचोड़। उसी की निष्पत्ति। जैसे हजार-हजार रहनेवाला नहीं है। इंतजाम लोग ऐसा करते हैं, जैसे सदा रहना गुलाब के फूलों से इत्र निकाल लिया जाता है। इत्र तो बूंदभर है। और एक दिन अचानक इंतजाम के बीच में मौत आ धमकती होता है; हजार-हजार फूलों से निचुड़ता है। ऐसे ही तुम्हारे पूरे है। सब ठाठ पड़ा रह जाएगा। और किसी भी घड़ी संदेश आ 1555 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrar.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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