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चौदह गुणस्थान
ONARRATE
सामने एक बड़ा बहुमूल्य हीरा पड़ा है रास्ते में। उठे नहीं, मन भर्तृहरि ने आंखें बंद कर लीं। वे मुस्कुराए होंगे कि हद्द हो गई! उठ गया। गए नहीं हीरा उठाने को, मन ने उठा लिया। एक हीरा अपनी जगह पड़ा है। दो आदमी आए और चले गए। झलक भीतर कौंध गई कि उठा लूं। ऐसा नहीं कि शब्द भी बने। सब हीरे पड़े रह जाते हैं। सब जो यहां मूल्यवान मालूम पड़ता ऐसा भी जरूरी नहीं है कि ऐसा सोचा कि उठा लेना चाहिए। | है, पड़ा रह जाता है। हम आते हैं और चले जाते हैं। और नहीं, बस एक झलक कौंध गई, एक कंपन भाव का हो गया, अक्सर हम एक-दूसरे की छाती में छुरे भोंक जाते हैं। हम उसके उठा लूं। सजग हो गए, झकझोर दिया अपने को कि अरे! इतना लिए बड़े दुख दे जाते हैं, बड़े दुख उठा जाते हैं, जो हमारा कभी सब छोड़कर आया, इससे बड़े बहुमूल्य हीरे छोड़कर आया तब नहीं हो पाता। जो हमारा हो नहीं सकता है। मन में यह वासना न उठी और आज अचानक यह उठ गई? सातवाः अप्रमत्तविरत। सप्तम भूमि, जहां किसी प्रकार का
चेतन से तम छोड़ दो, अचेतन इतनी जल्दी नहीं छट जाता। भी प्रमाद प्रगट नहीं होता। इतनी हलकी झलक भी जहां नहीं रह सम्हलकर बैठ गए, लेकिन एक बात तो खयाल में आ गई कि जाती। प्रगट नहीं होती। किसी तरह की अभिव्यक्ति नहीं अभी भीतर सूक्ष्म राग पड़े हैं। बड़े गहरे में होंगे। उनकी आवाज होती। सूक्ष्मतम अभिव्यक्ति भी शून्य हो जाती है मूर्छा की, भी अब मन तक नहीं पहुंचती, लेकिन मौजूद हैं, तलघरे में पड़े अहंकार की, प्रमाद की। हैं। ऊपर तुम्हारे बैठकखाने तक उनकी कोई खबर भी नहीं आती इसी अवस्था में कोई व्यक्ति साधु बनता है। इस अवस्था में
भी तुम्हारा ही तुम्हारे ही बैठकखाने के नीचे है। | आकर ही साधुता का आविर्भाव होता है। चौदह गुणस्थानों में जिसको मनोवैज्ञानिक अनकांशस कहते हैं, अचेतन मन कहते यह सातवां है। मध्य में आकर खड़े हो गए। आधी यात्रा पूरी हैं, महावीर उसी स्थिति की बात कर रहे हैं, प्रमत्तविरत। संयम हुई। जिसने सातवें को पा लिया हो वही साधु है। के साथ-साथ मंद रागादि के रूप में प्रमाद रहता है। अभी अक्सर जिनको तुम साधु कहते हो वे सातवें तक पहुंचे हुए बेहोशी है। होश ऊपर-ऊपर है। जैसे बर्फ की चट्टान पानी में लोग नहीं होते। उनमें से कुछ तो पहले में ही अटके होते हैं। तैरती है तो एक हिस्सा ऊपर होता है, नौ हिस्से नीचे पानी में डूबी उनमें से कुछ दूसरे में अटके होते हैं। सातवें तक पहुंचना भी होती है।
| कठिन मालूम होता है। क्योंकि सातवें का अर्थ है, भीतर दीया तो होश ऊपर-ऊपर है बर्फ की चट्टान की तरह। नौ हिस्सा | पूरी तरह जल गया, अब कोई अंधकार नहीं है। अब कोई बेहोशी नीचे है। दिखाई नहीं पड़ती किसी को, लेकिन स्वयं अभिव्यक्ति नहीं होती किसी राग की। व्यक्ति को समझ में आती है। और जितना होश बढ़ता है उतनी आठवांः अपूर्वकरण। साधक की अष्टम भूमि, जिसमें ही ज्यादा समझ में आती है। शायद तुम बैठे होते भर्तृहरि की प्रविष्ट होने पर जीवों के परिणाम प्रतिसमय अपूर्व-अपूर्व होते जगह तो तुम्हें पता भी न चलता। लेकिन बड़ी निर्मल आत्मा रही हैं। सातवें में व्यक्ति साधु बन जाता है। आठवें में घटनाएं होगी। शब्द भी न बना, और लहर पकड़ में आ गई कि भाव हो घटनी शुरू होती हैं। सातवें तक साधना है, आठवें से अनुभव गया। थोड़ा-सा मैं कंप गया हूं। कोई भी न पहचान पाता। आने शुरू होते हैं। सातवें तक तैयारी है, आठवें से प्रसाद सूक्ष्म से सूक्ष्म यंत्र भी शायद न पकड़ पाते कि कंपन हुआ है। बरसना शुरू होता है। क्योंकि कंपन बड़ा ना के बराबर था। जैसे शून्य में जरा-सी प्रतिपल अपूर्व-अपूर्व अनुभव होते हैं, जैसे कभी न हुए थे। लहर उठी। लेकिन भर्तहरि पहचान गए।
| ऐसी सुगंधे आसपास डोलने लगती हैं जैसी कभी जानी न थीं। वे जो दो घुड़सवार आए, उन दोनों की नजर भी एक साथ उस | ऐसी मधुरिमा कंठ में घुलने लगती है जैसी कभी जानी न थी।
सलवारें निकाली और दोनों ने कहा, पहले ऐसे जीवन की पुलक अनुभव होती है, जिसकी कोई मृत्यु नहीं हो नजर मेरी पड़ी है। भर्तृहरि बैठे देख रहे हैं। एक क्षण भी न लगा, सकती। अमृत का स्वाद मिलता। वे तलवारें एक-दूसरे की छाती में चुभ गईं। हीरा अपनी जगह सातवें तक तैयारी है। पात्र तैयार हुआ। आठवें में वर्षा शुरू | पड़ा रहा. जहां दो जिंदा आदमी थे वहां दो लाशें गिर गईं। होती है। कबीर कहते हैं, बादल गहन-गंभीर होकर घिर गए।
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