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________________ चौदह गुणस्थान कौन समुद्र है, कौन चींटी है? ज्ञानी तो कहते हैं, चींटी भी समुद्र है। दो कौड़ी के न रह जाएंगे। कुत्ते भी भौंकेंगे नहीं फिर। रास्ते है। क्योंकि ज्ञानी तो कहते हैं, बूंद में भी सागर छिपा है। लेकिन से निकल जाएंगे देखते कि कोई कुत्ता भौंके तो! लेकिन कुत्ते भी निर्णय कौन कर रहा है कि कौन चींटी और कौन समुद्र है? चलो | इधर-उधर मुंह कर लेंगे। कोई चींटी थाह लेने न आएगी। तो चींटी ही सही, समुद्र की थाह लेने चली तो साथ दो। बाधा क्या भय है। खड़ी करनी? सीढ़ियां लगाओ, नाव तैराओ। चींटी कम से मिथ्यात्व हम सबके भीतर संभव है। जहां भी अहंकार जुड़ा कम इतनी आकांक्षा से भरी यही बहत है। कि मिथ्यात्व संभव है। महावीर कहते हैं, मिथ्यात्व हमारी लेकिन समुद्र इतना भयभीत क्यों है? चींटी थाह लेने चली | सामान्य स्थिति है। जिसको हम अज्ञानी कहते हैं उसी को इससे समद्र डर क्यों रहा है? डर यही होगा कि चींटी थाह ले महावीर मिथ्यात्वी कहते हैं। सकती है। समुद्र बड़ा छिछला मालूम होता है। शायद समुद्र हो दूसरा चरण : जिस व्यक्ति ने मिथ्यात्व से थोड़ी ऊपर आंख ही न, केवल धोखा है। तो क्रोध उपजता है। उठाई, ठीक-ठीक श्रद्धान किया, यथार्थ धर्म में रुचि ली, अधर्म | मिथ्यात्व दृष्टि से भरा हआ आदमी, विवाद को तत्पर, लड़ने में अरुचि की। मिथ्यात्व से भरा व्यक्ति धर्म में अरुचि प्रगट को उत्सुक, क्रोध सहज, अभिशाप देने को तैयार। करता है, अधर्म में रुचि लेता है। हालांकि वह बहाने कई ये सत्य साईंबाबा कहते हैं कि शिरडी के साईंबाबा के अवतार खोजता है, तर्क कई खोजता है। ना तो नहीं चाहिए, दर्वासा मनि के होंगे। अवतार तो रामकष्ण ने कहा है कि एक आदमी काली का बड़ा भक्त था जरूर किसी के होंगे, क्योंकि यहां सभी अवतार हैं। लेकिन इनमें | और महीने-पंद्रह दिन में काली के द्वार में जाकर बकरे कटवा कौन कुत्ता है, कौन चींटी है, कौन सागर, कौन चांद-तारा है? देता था। फिर अचानक उसने पूजा बंद कर दी। तो रामकृष्ण ने हर एक सोच लेता है अपने को ही कि चांद-तारा है, बाकी सब उससे पूछा, क्या हुआ भक्ति का? तुम तो बड़े भक्त थे और कुत्ते हैं। बड़े बकरे कटवाते थे। उसने कहा, अब दांत ही न रहे। इसको भौंकने की तरह क्यों लिया? यह जरूरी तो नहीं है कि कोई काली के लिए थोड़े ही बकरे कटवाता है! काली तो बंगलोर का विश्वविद्यालय सत्य साईंबाबा को उखाडने के लिए बहाना है। उस आदमी के दांत गिर गए, खराब हो गए और दांत उत्सुक हो। और अगर सत्य है तो उखड़ेगा कैसे? सत्य है तो निकलवाने पड़े। तो अब मांसाहार करने की सुविधा न रही। तो प्रगट होगा। स्वीकार करो। बस पूजा-पत्री बंद! तम्हारी घबडाहट ही तम्हें असत्य किए दे रही है। बचाव क्या | खयाल करना, तुम जब मंदिर में पूजा करने बेठे हो तो पूजा कर करना है? उघाड़ दो। नग्न खड़े होकर चमत्कार दिखा दो। एक रहे हो या पूजा के बहाने कुछ और कर रहे हो? तुम अगर बार तय हो जाए तो लाभ ही होगा। साधु-सत्संग में भी गए हो तो सत्य की खोज में गए हो कि वहां एक तरफ सत्य साईबाबा कहते हैं कि मैं सत्य की सेवा करना भी संसार का ही कछ खोजने पहंच गए हो? तम अक्सर तो चाहता हूं। धर्म में लोगों की श्रद्धा बढ़ाना चाहता हूं। लेकिन पाओगे कि तुम्हारी रुचि धर्म में नहीं है, अधर्म में है। अधर्म से इससे और शुभ अवसर क्या मिलेगा कि लोग खुद कहते हैं कि मतलब है। जिससे तुम सत्य तक न पहुंचो और भटक जाओ। हम प्रमाण खोजने आते हैं। प्रमाणित करो। सिद्ध हो जाएगा कि | धर्म से अर्थ है जिससे तुम सत्य तक पहुंच जाओ। चमत्कार सच्चे हैं, झूठे नहीं हैं तो बड़ी श्रद्धा बढ़ेगी। ये बंगलोर चमत्कारी व्यक्ति के पास लोग इकट्ठे हो जाते हैं क्योंकि विश्वविद्यालय के कुलपति और उनकी कमेटी के लोग, ये भी चमत्कारी व्यक्ति के पास आशा बंधती है कि शायद मुकदमा तुम्हारे भक्त हो जाएंगे। इनसे इतने घबड़ा क्या गए हो? जीत जाएं, शायद जिस स्त्री को भगाने का सोच रहे हों, उसमें लेकिन असत्य में आग्रह होता है क्योंकि असत्य में न्यस्त | सफलता मिल जाए, शायद लाटरी खुल जाए, शायद स्वार्थ होते हैं। अगर यह बात खुल जाए, अगर यह पोल खल जाए, इलेक्शन जीत जाएं, प्रधानमंत्री हो जाएं। जाए तो सत्य साईंबाबा का सारा का सारा व्यक्तित्व गिर जाता । इसलिए दिल्ली में जितने राजनेता हैं, सबको सत्य साईंबाबा 1511 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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