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________________ 510 जिन सूत्र भाग: 2 है। लेकिन यही तुम अपने बेटे से कह रहे हो कि बड़े हो जाओगे तब जानोगे । क्या जान लिया बड़े होकर ? कौन-सा सत्य, कौन-सी संपदा हाथ लगी ? लेकिन बाप का अहंकार कैसे मान ले कि बेटा भी ठीक कह सकता है? पति का अहंकार कैसे मान ले कि पत्नी ठीक कह सकती है ? पत्नी का अहंकार कैसे मान ले कि पति ठीक कह सकता है ? अहंकारों का संघर्ष है। सत्यों का कोई संघर्ष नहीं है। तो दुनिया में जो इतना धर्मों का विवाद है, शास्त्रार्थ है, यह सब अहंकारों का शास्त्रार्थ है, इससे धर्म का कोई लेना-देना नहीं । धर्म तो विनम्र आदमी की खोज है, जो कहता है मुझे पता नहीं । पता ही होता तो मैं खोजता क्या ? खोजने को क्या था? मुझे पता नहीं । अज्ञानी हूं। खोज पर निकला हूं। टटोलता हूं। कोई भी बता दे कि सत्य क्या है, तो सुनूंगा, समझंगा, सदभाव से ग्रहण करूंगा, जांचूंगा, परखूंगा। शायद हो, शायद न हो। अनुभव तय करेगा कि क्या है। सत्य का खोजी विवादी नहीं होता। सत्यार्थी संवादी होता है, सारा लाभ है, उसी में सारी प्रतिष्ठा है। विवादी नहीं । महावीर कहते हैं, - पहला गुणस्थान : मिथ्यात्व | जैसा है उसे वैसा न देखना। जैसा है वैसा दिखाई भी पड़े तो भी पर्दे डाल रखना । जैसा है वैसा अनुभव में भी आने लगे तो अनुभव को भी झुठलाना । न्यस्त स्वार्थ हैं हमारे । तुम अगर न्यस्त स्वार्थों की ओट से ही देख रहे हो तो फिर बड़ी अड़चन है। सत्य साईंबाबा ने कल बंगलोर विश्वविद्यालय के कुलपति और उनकी कमेटी को जो उत्तर दिया, उसमें उन्होंने कहा, कि कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे गिर नहीं जाते। अब थोड़ा सोचने जैसा जरूरी है कि कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे आकर ऐसा कहते भी नहीं कि भौंकते रहो, हम गिरेंगे नहीं। इतना कह दिया तो चांद-तारे भौंक गए। इतना कह दिया तो चांद-तारे गिर गए। फिर तय कौन करे कि चांद-तारे कौन हैं और कुत्ते कौन हैं ? सत्य साईंबाबा का यह वक्तव्य थोथे अहंकार का वक्तव्य है। एक तरफ चिल्लाए चले जाते हैं कि सभी के भीतर ब्रह्म का वास है। एक तरफ कहे चले जाते हैं कि सभी के भीतर भगवत्ता विराजमान है । और जहां चोट अहंकार पर पड़नी शुरू होती है वहां तत्क्षण कहने लगते हैं कि कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे नहीं गिरेंगे। ये कुत्तों में भगवान नहीं है? कुत्ते यानी कुलपति बंगलोर के! इनमें भगवान नहीं है ? Jain Education International 2010_03 यह उत्तर न हुआ। कुलपति ज्यादा साधु चरित्र मालूम होते हैं। सीधा-सा निवेदन किया है कि आप जो चमत्कार करते हैं, ये चमत्कार हैं या केवल मदारीगिरी है ? इसे हम जानने के लिए आपके निकट आना चाहते हैं। और आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमें सत्य को खोजने में सहयोगी बनें। इसमें कोई कुत्ता भौंका नहीं किसी पर। सत्य के खोजी को तत्क्षण स्वीकार करना चाहिए । अगर सत्य है तो भय क्या ? अगर कुलपति और उनके आठ-दस मित्र आकर सत्य साईंबाबा के चमत्कार देखने को उत्सुक हुए शुभ है । हर्ज कहां है? लेकिन हर्ज मालूम होगा क्योंकि न्यस्त स्वार्थ है, वेस्टेड इंटरेस्ट है। वह चमत्कार इत्यादि कुछ भी नहीं है, मदारीगिरी है। और मदारीगिरी भी अति साधारण कोटि की है। सड़क पर चलते मदारी जो करते हैं वैसी है। कोई भी मदारी कर सकता है, कोई भी व्यवसायी जादूगर कर सकता है; वैसी है। लेकिन उसी में अगर एक बार यह सिद्ध हो गया कि यह राख शून्य से नहीं उतरती । कहीं शरीर के किसी हिस्से में छिपी रहती है, वहां से उतरती है। एक बार यह सिद्ध हो गया कि ये स्विस घड़ियां जो प्रगट होती हैं, स्विजरलैंड से नहीं आतीं, स्मगलरों से खरीदी जाती हैं। एक बार यह सिद्ध हो गया तो सत्य साईंबाबा की कोई स्थिति नहीं रह जाती। उसी पर तो सारा बल है। तो नाराजगी पैदा होती है। अन्यथा निमंत्रण शुभ था । स्वीकार कर लेना था । धन्यवाद देना था कि उत्सुक हुए, चलो अच्छा है। विश्वविद्यालय में उत्सुक होते हैं तो बहुत अच्छा है। सुशिक्षित, सुसंस्कृत लोग धर्म की तरफ खोज करने निकलते हैं, बहुत अच्छा है। आओ, समझो। खोजें । सत्य का खोजी तो सहयोग देगा। लेकिन सत्य की यह खोज नहीं है। सत्य साईंबाबा का वक्तव्य असत्य साईंबाबा का वक्तव्य है। यह इसमें सत्यता बिलकुल नहीं है। और फिर इसमें छिपा क्रोध है, गाली-गलौज है। कुत्ते ... ! यह बात ही बेहूदी हो गई। अपने वक्तव्य में उन्होंने इसी तरह की बातें कही हैं, जो सब गाली-गलौज हैं - कि चींटी समुद्र की थाह लेने चली है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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