________________
512
जिन सूत्र भाग: 2
के भक्त पाओगे। जैसे ही कोई राजनेता पद से उतरता है कि तत्क्षण सत्संग में लग जाता है। तत्क्षण गुरुओं की खोज में निकल पड़ता है। फिर इलेक्शन जीतना, फिर चुनाव लड़ना फिर किसी का आशीर्वाद चाहिए। यह रुचि धर्म की रुचि नहीं है। यह रुचि मौलिक रूप से अधार्मिक हैं।
।
महावीर कहते हैं इससे उठो, तो पहला कदम उठा। दूसरा चरण, दूसरा गुणस्थान है : सासादन। महावीर कहते हैं इतनी जल्दी, एकदम से न उठ जाओगे। उठते-उठते उठोगे । बहुत बार तो निकल आओगे इसके बाहर, और फिर-फिर खींचने का मन हो जाएगा। फिर-फिर पुरानी आदतें वापस बुला लेंगी।
सासादन का अर्थ होता है, जो व्यक्ति मिथ्यात्व के बाहर निकलने की चेष्टा में संलग्न है लेकिन पुरानी आदतों के कारण, पुराने कर्मोदय के कारण वापस खींच लिया जाता है। फिर-फिर पुराने राग में रस आने लगता है। क्षणभर को भी सही, बार-बार फिर सोचने लगता है उन्हीं दिनों की बात; जब धन था, पद था, प्रतिष्ठा थी । दिवास्वप्न देखने लगता है।
सासादन का अर्थ है, व्यक्ति मिथ्यात्व के बाहर निकला तो; लेकिन अभी मिथ्यात्व की सूक्ष्म तरंगें उठती हैं । फिर-फिर मूर्च्छा के क्षण में वापस संसार के सपने देखने लगता है। मिथ्यात्व - अभिमुख हो जाता है, यद्यपि साक्षात मिथ्यात्व में प्रवेश नहीं करता ।
तो सासादन का अर्थ हुआ : सपने संसार के देखता है, यद्यपि बाहर से संसार से अपने को रोक लिया है।
जैसे कोई आदमी घर छोड़कर त्यागी हो गया। मंदिर में बैठा ध्यान कर रहा है, माला हाथ में है । और सब भूल गया मंदिर और माला, पत्नी की याद आ गई — तो सासादन। मिथ्यात्व से विरत होने की चेष्टा की है। श्रम किया है, मंदिर तक चला आया है, माला हाथ में ले ली, प्रार्थना में लीन है, लेकिन क्षणभर को | प्रार्थना खो गई, मंदिर खो गया, माला खो गई, पत्नी सामने खड़ी हो गई। किसी और को दिखाई न पड़ेगी यह स्थिति । यह प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही निरीक्षण करनी होगी। बहुत बार सासादन की घटना घटती है।
यहां भी तुम मेरे पास बैठे हो, सुनते-सुनते अचानक घड़ी देखने लगते हो - सासादन! घड़ी देखी, मतलब कि कहीं
Jain Education International 2010_03
अदालत जाना है, कि दफ्तर जाना है; कि संसार की याद आ गई। कई बार तो तुम घड़ी किसी कारण से भी नहीं देखते, सिर्फ पुरानी देखने की आदत देखते हो। कितना समय हो गया। कितना समय खो गया । इतनी देर संसार में कुछ कर लेते। इतनी देर गंवा दी।
एक लहर मन में आ गई। यह भी स्वाभाविक है। छूटते छूटते चीजें छूटती हैं। छोड़ते-छोड़ते घटना घटती है । बार-बार पुरानी आदतें पकड़ती हैं। पुराने राग, पुराने रंग, पुरानी स्मृतियां, पुराने सुख फिर-फिर आह्वान देते हैं, फिर-फिर बुलाते हैं, फिर-फिर निमंत्रण भेजते हैं।
सासादन दूसरा गुणस्थान है। जो हममें से मिथ्यात्व से ऊपर उठने की चेष्टा में लगते हैं उनकी दशा सासादन की है। पहले से बेहतर। कम कम चलो बाहर से ही सही, छोड़ा तो ! बाहर से छोड़ा तो भीतर से भी छूटेगा। इतना होश तो आया कि अहंकार का आग्रह न रखेंगे। लेकिन बेहोशी के क्षण आते हैं। उन बेहोशी के क्षणों का नाम सासादन है।
तुमने तय कर लिया, अब क्रोध न करेंगे। और किसी आदमी का पैर बाजार की भीड़ में तुम्हारे पैर पर पड़ गया। उसक में तुम भूल ही गए कि तुमने तय कर लिया था अब क्रोध न करेंगे । याद ही न आयी। क्रोध हो ही गया। या न भी हुआ, उस आदमी से तुमने कुछ न भी कहा, तो भी तुम्हारे भीतर क्रोध झलक गया। एक क्षण को भीतर लपट उठ गई ।
तो पहले मिथ्यात्व से मुक्त होना है, फिर सासादन के भी पार
जाना है।
तीसरी अवस्था है : मिश्र । सम्यकत्व एवं मिथ्यात्व की मिश्रित स्थिति । कुछ-कुछ सत्य की झलक बनने लगती है। कुछ-कुछ सत्य का अवतरण होने लगता है और कुछ-कुछ अतीत संस्कारों के कारण असत्य का अंधेरा भी घिरा रहता है।
जैसे दीया जलाते हो, छोटा-सा टिमटिमाता दीया । एक कोने में रोशनी भी हो जाती है, बाकी कमरा अंधेरा भी बना रहता है— मिश्र, खिचड़ी अवस्था ।
सम्यकत्व एवं मिथ्यात्व की मिश्रित अवस्था; दही और गुड़ के मिश्रित स्वाद जैसी। ऐसा जैन शास्त्र दृष्टांत लेते हैं- दही और गुड़ के मिश्रित स्वाद जैसी ।
जो सासादन के पार जाता है उसकी मिश्र अवस्था बनती है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org