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________________ पड़े रहते हैं कि पुरुष की बड़ी आकांक्षा होती है अपनी प्रेयसी के शरीर को नग्न, उसके पूरे सौंदर्य में अनढंका देख लेने की । लेकिन स्त्री कभी चेष्टा नहीं करती पुरुष के शरीर को नग्न देखने की। उसकी कोई उत्सुकता ही नहीं होती। इसीलिए तो नंगी स्त्रियों की तस्वीरें बहुत बिकती हैं, नंगे पुरुषों की नहीं बिकतीं। नहीं तो स्त्रियां भी उतनी ही हैं, वे भी तस्वीरें खरीदतीं । इसलिए फिल्मों में नग्न स्त्री का नृत्य तो खूब दिखाई पड़ता है; नंगा पुरुष नाचे तो लोग कहेंगे, बंद करो, यह क्या बकवास लगा रखी है? नग्न पुरुष में स्त्री की कोई आकांक्षा नहीं है। जब तुम किसी स्त्री को प्रेम से आलिंगन में भरोगे तो तुम चकित होओगे, तुम्हारी आंख खुली होगी, स्त्री की आंख बंद हो जाती है। गहरे प्रेम के क्षण में स्त्री सदा आंख बंद कर लेती है। स्त्रैण | चित्त चाहता है कि उसका प्रेमी उसे देख ले, बस काफी । गोपी काही अर्थ होता है कि परमात्मा मुझे देख ले, बस काफी है। तुझे देख सकूं मैं तो कुछ मलाल नहीं यही बहुत है कि तू मुझको देख सकता है परमात्मा के प्रेम में स्त्रैण - चित्तता की जरूरत है। प्रेम में ही स्त्रैण-चित्तता की जरूरत है। पुरुष का प्रेम नाममात्र को प्रेम है। प्रेम तो स्त्री का ही होता है। पुरुष के लिए हजार कामों में प्रेम एक कम है। स्त्री के लिए प्रेम ही बस एकमात्र काम है। स्त्री के सब काम प्रेम से निकलते हैं। वह खाना पकाएगी, बुहारी लगाएगी, तुम्हारे कपड़े पर बटन टांक देगी, तुम्हारी प्रतीक्षा करेगी। उसका सारा काम.. .. तुम्हारे बच्चे, उनकी देखभाल करेगी। तुम्हारे घर, तुम्हारे बगीचे को संवारेगी। उसकी सारी चिंता उसके प्रेम से निकलती है । उसका सारा काम उसके प्रेम से निकलता है। पुरुष को और हजार काम हैं। अक्सर पुरुष को ऐसा लगता है कि प्रेम के कारण मेरे काम में बाधा पड़ती है। इसलिए बहुत कामी- धामी जो पुरुष होते हैं, वे प्रेम में पड़ते ही नहीं। जिनको दुकान ठीक से चलानी है, वे प्रेम को हटा देते हैं कि हटाओ, बंद करो। दुकान में बाधा पड़ती है। जिसको राजनीति में उतरना है, वह प्रेम को हटा देता है— हटाओ ! प्रेम से बाधा पड़ती है। जिसको वैज्ञानिक बनना है वह प्रेम को हटा देता है - हटाओ ! जिसको ध्यानी बनना है वह प्रेम को हटा देता है - हटाओ, ध्यान में बाधा पड़ती है। Jain Education International 2010_03 आज लहरों में निमंत्रण ऐसा लगता है कि पुरुष को और हजार काम हैं, जो प्रेम से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वह प्रेम को हटा देता है और काम करने को । स्त्री के लिए और कोई काम ही नहीं है। अगर प्रेम न हो तो स्त्री एकदम अकेली रह जाती है। कुछ काम नहीं सूझता, क्या करे! काम निकलता ही नहीं । स्त्रैण-चित्त का इतना ही अर्थ है कि तुम्हारे लिए प्रेम ही ध्यान हो । गोपी बनने का यही अर्थ है कि तुम्हारी दृष्टि में प्रेम ही एकमात्र काम रह जाए। और सब प्रेम से निकले। फिर तुम्हें हर तरफ परमात्मा दिखाई पड़ने लगेगा। तुम पहले... परमात्मा तुम्हें देखने लगे, इस आकांक्षा को जगाओ। फिर तुम्हें परमात्मा हर तरफ दिखाई पड़ने लगेगा। जिस दिन परमात्मा ने तुम्हें देख लिया उसी दिन तुम उसे देख पाओगे। भक्त और ज्ञानी के रास्तों का यही फर्क है। भक्त कहता है प्रभु, मैं नाच रहा हूं, तू देख ले। कोई बात नहीं कि मैं तुझे देखूं, मगर मैं नाच रहा हूं, तेरी आंख इधर पड़ जाए। बस, जरा तेरी आंख पड़ जाए, पर्याप्त पुरस्कार हो गया। तूने देख लिया, जीत गए हम; सार्थक हो गए। बला-ए-जां हैं गालिब उसकी हर बात इबारत क्या, इशारत क्या, अदा क्या बात, संकेत, भावभंगिमा... बांकेबिहारी की बात-बात बड़ी प्यारी है। बात-बात बला मेरी जान की लेकिन इसका सूत्र खुलता है तुम्हारे नृत्य से, गीत से, तुम्हारे हृदय को खोलने से । तुम पुकारो परमात्मा को कि तू मुझे देख ले; बस पर्याप्त है। जिस दिन उसकी आंख तुम पर पड़ी उसी दिन तुम्हारी आंख पैदा हो जाएगी। उसकी आंख की चोट तुम्हारी आंख को खोल देगी। ज्ञानी कहता है, पहले हम परमात्मा को देखेंगे। उसकी यात्रा भिन्न है। वह कहता है, पहले हम आंख पैदा करेंगे जिससे परमात्मा दिख जाए। जब हम परमात्मा को देखेंगे तभी वह हमारी तरफ देखेगा। भक्त कहता है पहले वह हमारी तरफ देख ले, फिर हमने न भी देखा तो भी हर्ज क्या है? उसने देख लिया। दोनों हालत से घटना घट जाती है । मेरी बात सुनकर प्रश्नकर्ता को गोपीभाव जगा; तो इससे साफ समझ लेना चाहिए कि भक्ति उसके लिए मार्ग होगी। और यह For Private & Personal Use Only 501 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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