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जिन सूत्र भाग : 2
भाव जगा है तो इसको लेकर मत बैठे रहना। इस निमंत्रण को उसी के आसपास तारे नाच रहे हैं। उसी के आसपास पृथ्वी, स्वीकार करो और चलो यात्रा पर।
ग्रह, उपग्रह नाच रहे हैं। उसका रास चल ही रहा है। इस सारे आज अपने स्वप्न को मैं सच बनाना चाहता हूं
जीवन-नृत्य का वही केंद्र है। दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूं
तुम भी रास में सम्मिलित हो जाओ। चाहता हूं तैर जाना सामने अम्बुधि पड़ा जो कुछ विभा उस पार की इस पार लाना चाहता हूं
आज इतना ही। स्वर्ग में भी स्वप्नभू पर देख उनसे दूर ही था किंतु पाऊंगा नहीं कर आज अपने पर नियंत्रण तीर पर कैसे रुकू मैं आज लहरों में निमंत्रण प्रभु की पुकार आयी तुम्हारी तरफ। तुममें जो गोपी का भाव जगा है यह बिना कृष्ण के पुकारे जग ही नहीं सकता है। तीर पर कैसे रुकू मैं आज लहरों में निमंत्रण अब रुको मत। अब नाचो। अब स्वयं ही लहर बनो। लहर का निमंत्रण मिल गया, अब नाचो। जमने दो रास। होओ उन्मत्त। होओ मदमत्त। पागल बनो। स्त्रैण बनो। छाया बनो उसकी। मंडल को करो छोटा। नाचते-नाचते-नाचते-नाचते एक दिन उसमें प्रवेश हो जाएगा। नृत्य करते-करते ही प्रवेश हो जाता है। इधर तुम मिटे कि उधर प्रवेश हुआ। शुभ घड़ी आयी; उसे खो मत जाने देना। मैं ब असद फक्र-ए-जुहाद से कहता हूं मजाज मुझको हासिल सफें-बेअते-खैयाम अभी
अत्यंत गौरव से, संयमियों से, योगियों से मैं कहता हूं कि मुझे खैयाम की शिष्यता की प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। मैं ब असद फक्र-ए-जुहाद से कहता हूं मजाज
संयमियों से. योगियों से. ज्ञान के खोजियों से मैं बड़े गौरव के साथ कहता हूंमुझको हासिल सफें-बेअते-खैयाम अभी मुझे खैयाम की मधुशाला में शिष्यता की प्रतिष्ठा मिल गई है। मुझे बेहोशी का, मदहोशी का, प्रभु की मदिरा पीने का निमंत्रण मिल गया है।
फिर संयमी बड़ा फीका है। भक्त के आगे संयमी बड़ा फीका है। फिर संयमी तो मरुस्थल जैसा है, भक्त वसंत में वृक्षों पर फूल खिल गए ऐसा। भक्त झरने जैसा है।
तो जिसको भक्ति की लहर उठ रही हो वह रुके न; चल पड़े। रास में सम्मिलित हो जाओ। और उसका रास चल ही रहा है।
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