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________________ जिन सूत्र भाग: 2 में खोजना मुश्किल है। महावीर के विरोध में सभी इकट्ठे हो तो परमात्मा की है। अगर अंधेरा है तो मेरा है। ऐसा जिसने गए। यह बहुत चमत्कार की बात है। समझा, उसका कृष्ण लेश्या का पर्दा टिक नहीं सकता, अपने जैन शास्त्रों के खिलाफ भारत के सभी शास्त्र हैं। वे सभी | आप गिर जाता है। उसके आधार न रहे, सहारे न रहे। उनका खंडन करते हैं। क्योंकि यह जो बात है, यह बात किसी के | 'मंदता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषय लोलुपता, ये संक्षेप अहंकार को टिकने नहीं देती। आदमी कहता है या तो मैं पूरा में नील लेश्या के लक्षण हैं।' लत है। और पुरा गलत देखें कौन सिद्ध करता फिर कृष्ण लेश्या के पीछे छिपा हआ नीला पर्दा है। अंधेरे के है! मेरे रहते कोई सिद्ध न कर पाएगा। और जब तक तुम ही पार गहरी नीलिमा का पर्दा है। देखने को राजी न हो, सत्य तो दिखाया नहीं जा सकता। इसलिए | 'मंदता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषय लोलुपता...।' तुम विवाद में पड़े रह सकते हो। कुछ न कुछ हम मांग ही रहे हैं-लोलुप। हम बिना मांगे महावीर कहते हैं, समझने से भी, समझाने से भी न मानना, क्षणभर को नहीं हैं। हम बिना मांगे रहते ही नहीं हैं। हमारा दिखाई भी पड़ने लगे तो झुठलाना, आंख को भी झुठलाना, मांगना चलता है दिन-रात, अहर्निश। हम भिखमंगे हैं। हम अंतर्दष्टि खलने लगे तो भी पत्थर अटकाना, कृष्ण लेश्या को एक क्षण को भी अपने सम्राट होने में थिर नहीं होते। मजबूत करने के उपाय हैं। ठीक इनके विपरीत चलो, कृष्ण तुमने कभी देखा? कभी भी क्षणभर को अगर मांग बंद हो लेश्या अपने आप उखड़ जाती है। जड़ें टूट जाती हैं। पर्दा गिर जाए तो एक अपूर्व उल्लास आ जाता है। उस घड़ी में तुम याचक जाता है। नहीं होते। उस घड़ी में समाधि के करीब सरकने लगते हो। जैसे शिखरों से ऊपर उठने देती न हाय लघुता आपी ही मांग आयी कि फिर याचक हुए, फिर छोटे हुए। या तुमने यह मिट्टी पर झुकने देता है देव, नहीं अभिमान हमें देखा कि जब भी तुम किसी से कुछ मांगते हो तो भीतर कुछ तो न तो हम शिखरों के साथ एक होने का दावा कर पाते हैं। । | सिकुड़ जाता है? जब तुम किसी को कुछ देते हो, भीतर कुछ शिखरों से ऊपर उठने देती न हाय लघुता आपी फैल जाता है? देने का मजा, मांगने की पीड़ा तुम्हें अनुभव नहीं आदमी की सीमा है। आदमी लघु है, अंश है। विराट का बड़ा हुई? किसी से कुछ मांगकर देखो। तुम उस मांगने के खयाल से छोटा-सा आणविक कण है। ही छोटे होने लगते हो, संकीर्ण होने लगते हो। तुम्हारी सीमा शिखरों से ऊपर उठने देती न हाय लघुता आपी सिकड़ने लगती है। तम बंद होने लगते हो। भय पकड़ने लगता और अड़चन दूसरी है और भी, और भी बड़ी है। देगा, नहीं देगा? मिलेगा, नहीं मिलेगा? अगर मिला भी मिट्टी पर झुकने देता है देव, नहीं अभिमान हमें | तो भी मांगने में तुम छोटे और दीन तो हो ही गए। और अहंकार दे दिया है, झुक भी नहीं सकते। उठ भी नहीं | इसलिए एक और बहुत आश्चर्यजनक घटना है कि जिससे भी सकते क्योंकि सीमा है। झुक भी नहीं सकते क्योंकि अहंकार है। तुम्हें कुछ मिलता है, उसे तुम कभी क्षमा नहीं कर पाते। धन्यवाद इन दोनों के बिबूचन में जो पड़ा है, जो जीवन के सीधे-सीधे सत्य | तो दूर, तुम किसी से मांगने गए कि दस रुपये चाहिए अगर वह को स्वीकार नहीं करता कि अहंकार का दावा गलत है। आत्मा दे दे तो तुम उसे कभी क्षमा नहीं कर पाते। भीतर गहरे में तुम का दावा सही है, अहंकार का दावा गलत है। | नाराज रहते हो। उस आदमी ने तुम्हें छोटा कर दिया। उसने हाथ फर्क क्या है दावों में? अहंकार यह कह रहा है कि मैं पृथक ऊपर कर लिया, तुम्हारा हाथ नीचे हो गया। और अपने बल से सर्वशक्तिमान हूं। आत्मा यह कहती है इसलिए सूफी कहते हैं, नेकी कर और कुएं में डाल। अच्छा साथ-साथ, सबके संग, सबके साथ एक इस विराट की मैं भी करना लेकिन उसकी घोषणा मत होने देना। उसको जल्दी से कुएं एक छोटी तरंग हूं। अगर मुझमें कोई शक्ति है तो वह विराट की में डाल देना, नहीं तो तुम्हें कोई क्षमा न कर सकेगा। क्योंकि है। अगर मुझमें कोई निर्बलता है, वह मेरी है। अगर भूल-चूक जिसके साथ तुम अच्छा करोगे, वहीं साथ-साथ एक घटना और है, मेरी है। अगर कुछ सत्य है तो विराट का है। अगर रोशनी है घट रही है कि तुमने उसे छोटा कर दिया। और कोई क्षमा नहीं 468 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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