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________________ कि षट पर्दो की ओट में करता किसी को छोटा करने के कारण। है—विषय लोलुपता। वह कुछ न कुछ मांगता ही रहता है। सहायता करना, लेकिन इस तरह करना कि जिसकी तुम उसकी लोलुपता उसके पर्दे को मजबूत करती है। सहायता करो, उसे पता भी न चले कि सहायता की गई। इस 'अज्ञान, बुद्धिहीनता, मंदता...।' तरह करना कि उसे लगे कि देनेवाला वही है, लेनेवाले तुम हो। मंदता ः मिडियोक्रिटी, बड़े लोगों के ऊपर छाती पर पत्थर की इस तरह देना कि देनेवाले को देनेवाले की अकड़ न पकड़े और | तरह बैठी है। कोई भी मंद होने को पैदा नहीं हुआ है। परमात्मा लेनेवाले को पता ही न चले कि किसी ने उसे दिया है। तो असाधारण और अद्वितीय चेतनाएं ही पैदा करता है। अगर पश्चिम का एक बहुत बड़ा धनपति मारगन जब मरा, तो मरने मंद हो तो तुम अपने कारण हो। मंद हो तो तुमने अपने को के पहले उसे किसी ने पूछा कि तुमने इतनी अटूट धनराशि इकट्ठी निखारा नहीं। मंद हो तो तुम ऐसे हीरे हो जिसको साफ नहीं की है और तुम्हारे नीचे हजारों बड़ी प्रतिभा के और बुद्धिमान किया गया है, जिस पर पालिश नहीं किया गया। अनगढ़ पड़े लोग काम करते थे। तुमने इतने-इतने बुद्धिमानों का कैसे हो। और कोई और तो तुम पर निखार ला नहीं सकता, तुम्ही ला उपयोग किया? उसने कहा, राज छोटा-सा है। मैंने कभी उन्हें सकते हो। तो जो तुम हो उससे तृप्त मत हो जाना।। ऐसा अनुभव नहीं होने दिया कि मैं उन पर कोई अहसान कर रहा | अब खयाल रखना, लोग अतृप्त हैं, उससे जो उनके पास है; हूं। और मैंने कभी ऐसा भी अनुभव नहीं होने दिया कि वे मेरी | अपने से तो लोग बिलकुल तृप्त हैं। उनको बड़ी कार चाहिए, बात मानकर कोई काम कर रहे हैं। मेरी सदा यह चेष्टा रही कि यह अतृप्ति है, बड़ा मकान चाहिए, यह अतृप्ति है। तिजोड़ी में उनको सदा यह लगता रहे कि वे ही मुझ पर अहसान कर रहे हैं | और धन चाहिए, यह अप्ति है। लेकिन अपने से तप्त हैं कि जो और उनकी बातें मानकर मैं चल रहा है। | हैं, वह बिलकुल ठीक हैं। तो मंद ही रहेंगे। वह आदमी बडा कशल था। उसको अगर कोई काम भी अपने से अतप्त होना, और जो मिला है उससे तप्त होना। करवाना होता तो अपने बीस मित्रों को इकट्ठा कर लेता। उनसे छोटा मकान भी काम दे देगा। कार न हुई तो भी चल जाएगा। कहता कि यह समस्या आ गई है, अब हल खोजना है। खुद तिजोड़ी में बहुत न धन हुआ तो भी पर्याप्त है। वस्तुओं से तृप्त चुपचाप बैठा रहता। अब बीस आदमी जहां इकट्ठे हों, बीस हल होना और चैतन्य से तृप्त मत होना; नहीं तो तुम मंद रह आते। उनमें से जो हल उसका अपना होता, वह उसको स्वीकार जाओगे। चैतन्य को तो घिसते ही रहना। उसको किसी भी क्षण कर लेता। लेकिन अपनी तरफ से वह कभी न कहता कि यह, ऐसा मत सोचना कि आखिरी घड़ी आ गई। उसमें और निखार व है। वह चप बैठा रहता। वह सझाव को आने आ सकते हैं। उसमें बड़े अनंत निखार छिपे हैं। उसमें इतने देता। ठीक समय की प्रतीक्षा करता। कोई न कोई उस सुझाव निखार छिपे हैं कि तुम्हारा चैतन्य एक दिन सच्चिदानंद परमात्मा को देगा ही। या अगर ठीक सुझाव न आता, कुछ हेर-फेर से हो सकता है। आता, तो वह थोड़ी तरमीम करता, वह थोड़े संशोधन पेश मगर बड़ी चमत्कार की बात है। लोग अपने से बिलकुल तृप्त करता, लेकिन वह भी सुझाव की तरह; आज्ञा की तरह नहीं। हैं। इतने ज्यादा तृप्त हैं कि अगर तुम कहो भी उनसे तो वे कहेंगे, उसने बड़े-बड़े लोगों से काम लिया। क्या कह रहे हैं? मुझमें और परिष्कार! मैं तो परिष्कृत हूं ही, मरते वक्त वह कहकर गया कि मेरी कब्र पर एक पत्थर लगा अगर कुछ अड़चन है तो थोड़ी चीजें कम हैं, वे बढ़ जाएं। देना कि यहां एक आदमी सोता है, जिसने अपने से ज्यादा | लेकिन चीजें बढ़ने से तुम्हारा चैतन्य बढ़ेगा? तुम अगर बुद्ध हो बुद्धिमान लोगों से काम लेने की कुशलता दिखाई। उसने कहा तो गरीब होकर बुद्ध रहोगे, अमीर होकर बुद्धू रहोगे। तुम अगर कि मेरे सारे इतने विराट धन को इकट्ठा कर लेने का राज इतना है बुद्ध हो तो लंगोटी लगाकर बुद्ध रहोगे, सिंहासन पर बैठकर कि मैंने कभी किसी को अनुभव नहीं होने दिया कि वह मुझसे बुद्ध रहोगे। छोटा है। बुद्धिमान आदमी वस्तुओं में शक्ति व्यय नहीं करता। यह जो नील लेश्या से भरा हुआ आदमी है, याचक होता बुद्धिमान आदमी सारी शक्ति चैतन्य की जागृति में लगाता है। 1469 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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