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________________ षट पर्दो की ओट में - Maithi मैंने सुना है चार मेंढक, वर्षा में बाढ़-आयी एक नदी पर डूबने की गति तो सारी दुनिया को पता है। तीनों ही ठीक हो और तीनों को थे। एक लक्कड़ बहता आ गया, वे उस पर सवार हो गए। ही गलत भी। क्योंकि तुम छोटे-से सत्य को बहुत बड़ा करके बड़े प्रसन्न हुए। लक्कड़ बहने लगा। बाढ़ थी तेज, नदी भागी कह रहे हो। तुम खंड सत्य को अखंड करने की चेष्टा कर रहे जा रही है सागर की तरफ। पहले मेंढक ने कहा, यह लक्कड़ हो। अंश सत्य को सिद्ध कर रहे हो कि वही पूरा सत्य है। संसार का श्रेष्ठतम लक्कड़ है। देखो तो कितना जीवंत और | महावीर जैसा रहा होगा यह मेंढक–स्यातवादी। उसने कहा, गतिवान ! कैसा बहा जाता है। लक्कड़ तो बहुत देखे, मगर ऐसा | तुम तीनों ही ठीक हो। साधु-चरित्र रहा होगा यह मेंढक। श्वेत प्राणवान लक्कड़ कभी नहीं देखा। न कभी हुआ, न कभी | लेश्या को उपलब्ध रहा होगा यह मेंढक। उसने कहा तुम तीनों होगा। दूसरे ने कहा, लक्कड़ नहीं बह रहा है महानुभाव! नदी ही ठीक हो और तीनों गलत भी। गलत इसलिए कि तुम अंश वाद छिड़ गया। दूसरे ने कहा, लक्कड़ तो और | को पूरा सिद्ध कर रहे हो। और सही इसलिए कि तुम्हारी तीनों लक्कड़ों जैसा ही है। कुछ विशिष्टता इसमें नहीं है। जरा गौर से की बातों में सत्य की कोई झलक है। तो देखो। बह रही है नदी। नदी के बहने के कारण लक्कड़ भी तीनों बहुत नाराज हो गए। यह बात तो तीनों के बर्दाश्त के बह रहा है। | बाहर हो गई। क्योंकि उनमें से कोई भी यह मानने को राजी नहीं तीसरे ने कहा, न लक्कड़ बहता, न नदी; विवाद फिजूल है। था कि उसका वक्तव्य पूर्ण सत्य नहीं है। और न ही उनमें से कोई तुम दोनों अंधे हो। तुम आधा-आधा देख रहे हो। तुम अधूरा यह बात मानने को राजी था कि उसके विराधी के वक्तव्य में भी देख रहे हो। आंखें साफ चाहिए तो असली बात तुम्हें समझ में सत्य का अंश हो सकता है। आ जाए—जैसा कि सभी धर्मशास्त्रों ने कही है—कि सब | और तब एक चमत्कारों का चमत्कार घटित हुआ। मेंढकों में प्रवाह तो मनुष्य के मन में हैं। सब गति मन की है। सब शायद ऐसा न होता रहा हो, मनुष्य में सदा होता रहा है। लेकिन दौड़-धूप मन की है। ऐसा मैं देखता हूं कि न तो नदी का सवाल उस दिन मेंढकों में भी हुआ। वे तीनों इकट्ठे हो गए और चौथे को है, न लक्कड़ का, यह मन में बह रही विचारों की धारा है, धक्का देकर लक्कड़ से बाढ़ में गिरा दिया। उन्होंने कहा, बड़े जिससे जीवन में परिवर्तन दिखाई पड़ता है। मन ठहर जाए, सब आए साधु बने! बड़े ज्ञानी होने का दावा कर रहे हैं। वे तीनों ठहर जाता है। शास्त्रों में खोजो तो तुम्हें पता चलेगा। इकट्ठे हो गए। उन्होंने अपना विवाद छुड़ा दिया, छोड़ दिया विवाद चलने लगा। कोई निर्णय तो करीब आता दिखाई न विवाद क्योंकि यह उन तीनों को ही दुश्मन मालूम पड़ा। और पड़ा। आखिर तीनों को खयाल आया कि चौथा चुप बैठा है। एक बात में वे राजी हो गए कि यह तो कम से कम गलत है; चौथा मेंढक चुप बैठा था। कुछ बोला ही नहीं था। सबकी सुन बाकी निर्णय हम पीछे कर लेंगे। रहा था, गुन रहा था, लेकिन बोला कुछ भी नहीं था। उन तीनों ने यही अवस्था महावीर के साथ हुई। और सारे दर्शनों के दावे कहा कि अब कुछ निर्णय तो होता नहीं। निर्णय होने का उपाय हैं, महावीर का कोई दावा नहीं है। इसलिए महावीर किसी को भी नहीं। भी रुचे नहीं। महावीर ने कहा, वेदांत भी ठीक है, सांख्य भी इसलिए तो संसार में विवाद सदियों से चलते रहे हैं, सनातन ठीक है, वैशेषिक भी ठीक है, मीमांसा भी ठीक है, लेकिन सभी चलते रहे हैं। कुछ निर्णय नहीं होता। नास्तिक-आस्तिक के | अंश सत्य हैं। यह बात किसी को जंची नहीं। इसलिए एक बहुत बीच क्या निर्णय हुआ? जैन-हिंदू के बीच क्या निर्णय हुआ? महत्वपूर्ण विचार-दर्शन महावीर ने दिया, लेकिन अनुयायी वे | मुसलमान-ईसाई के बीच क्या निर्णय हुआ? निर्णय तो कभी ज्यादा न खोज पाए। क्योंकि सभी नाराज हो गए। वेदांती भी होते ही नहीं। नाराज हुआ। उसने कहा, अंश सत्य? हमारा और अंश तो उन तीनों ने कहा कि आप चुप हैं। आप कुछ कहें। उस सत्य? सांख्य भी नाराज हुआ कि हमारा और अंश सत्य? चौथे मेंढक ने कहा, विवाद का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि तम अहंकार को बड़ी चोटें लगीं। तीनों ही ठीक हो। नदी भी बह रही है, लक्कड़ भी बह रहा, मन | महावीर जैसा अंधेरे में फेंक दिया और कोई व्यक्तित्व इतिहास 467 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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