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जिन सूत्र भाग: 2
कभी-कभी क्रोध होता है। कुछ लोग हैं, क्रोध जिनका स्वभाव कर लेते हैं। है। जिनसे तुम अक्रोध की आशा ही नहीं कर सकते। जिनके | महावीर कहते हैं ऐसा व्यक्ति, जिसने क्रोध को अपनी सहज संबंध में तुम निश्चित रह सकते हो कि वे कोई न कोई कारण | आदत बना लिया हो, कृष्ण लेश्या में दबा रहेगा-क्रोध, क्रोध करने का खोज ही लेंगे। देखनेवाले चकित होते हैं कि जहां | रौद्रता, दुष्टता! कोई कारण नहीं दिखाई पड़ता था, वहां भी लोग कारण खोज | राह से तुम चले जा रहे हो, एक कुत्ता दिखाई पड़ जाता है, तुम लेते हैं।
उठाकर पत्थर ही मार देते हो। कुछ लेना-देना न था। कुत्ता मैंने सुना है, एक पति-पत्नी में निरंतर झगड़ा होता रहता था। अपनी राह जाता, तुम अपनी राह जाते थे। तुम राह से निकल रहे | पत्नी मनोवैज्ञानिक के पास गई और मनोवैज्ञानिक ने कहा कि हो, वृक्ष फूले हैं, तुम फूल ही तोड़ते चले जाते हो। क्षणभर बाद | कुछ झगड़े को हटाने के उपाय करो। बनाया है तो बन गया है। तुम उनको फेंक देते हो रास्ते पर; लेकिन जैसे दुष्टता तुम्हारे अब पति का जन्मदिन आता हो-कब आता है? । भीतर है।
उसने कहा, कल ही उनका जन्मदिन है। तो उसने कहा, इस और ध्यान रखना, जो दुष्टता आदत का हिस्सा है, वही मौके को अवसर समझो। कुछ उनके लिए खरीदकर लाओ, असली खतरनाक बात है। जो दुष्टता कभी-कभार हो जाती है, कुछ भेंट करो। कुछ प्रेम की तरफ हाथ बढ़ाओ। प्रेम की ताली वह कोई बहुत बड़ा प्रश्न नहीं है, मानवीय है। कोई किसी क्षण में एक हाथ से तो बजती नहीं। तुम्हारा हाथ बढ़े तो शायद पति भी नाराज हो जाता है, क्रुद्ध हो जाता है, कभी किसी क्षण में दुष्ट भी उत्सुक हो।
हो जाता है। वह क्षम्य है। उससे कृष्ण लेश्या नहीं बनती। कृष्ण पत्नी को बात जंची। बाजार से दो टाई खरीद लायी। दूसरे लेश्या बनती है, गलत वृत्तियों का ऐसा अभ्यास हो गया हो, कि दिन पति को भेंट की। पति बड़ा प्रसन्न हुआ। ऐसा कभी हुआ न जहां कोई भी कारण न हो वहां भी वृत्ति अपने ही अभ्यास के था। पत्नी कुछ लायी हो खरीदकर, इसकी कल्पना भी नहीं कर कारण, कारण खोज लेती हो। तो फिर तुम अपने अंधेरे को पानी सकता था। मनोवैज्ञानिक का सत्संग लाभ कर रहा है। प्रसन्न | सींच रहे हो, खाद दे रहे हो। फिर यह अंधेरा और बड़ा होता हुआ। इतना प्रसन्न हुआ कि उसने कहा कि आज अब भोजन चला जाएगा। मत बना। आज हम नगर के श्रेष्ठतम होटल में चलते हैं। मैं | 'स्वभाव की प्रचंडता...।' अभी तैयार हुआ।
इसे थोड़ा खयाल रखना। ऐसी कोई वृत्ति आदत मत बनने वह भागा। स्नान किया, कपड़े बदले, पत्नी दो टाई ले आयी देना। कभी क्रोध आ जाए तो बहत परेशान होने की जरूरत नहीं थी, उसमें से एक टाई पहनकर बाहर आया। पत्नी ने देखा और है। मनुष्य कमजोर है। असली प्रश्न तो तब है, जब कि क्रोध कहा, अच्छा, तो दूसरी टाई पसंद नहीं आयी!
तुम्हारे घर में बस जाए; नीड़ बसाकर बस जाए। अब आदमी एक ही टाई पहन सकता है एक समय में। दो ही क्रोधी आदमी अकेला भी बैठा हो तो भी क्रोधी होता है। तुम टाई तो एक साथ नहीं बांधे जा सकते। अब कोई भी टाई उसकी आंख में क्रोध देखोगे। चलेगा तो क्रोध से चलेगा। पहनकर आता पति...विवाद शुरू हो गया। यह बात पत्नी को बैठेगा तो क्रोध से बैठेगा। क्रोध उसकी छाया है, उसका सत्संग नाराज कर गई कि दूसरी टाई पसंद नहीं आयी। मैं इतनी मेहनत है। वह जो भी करेगा, क्रोध से करेगा। दरवाजा खोलेगा तो से, इतने भाव से, इतने प्रेम से खरीदकर लायी हूं। | क्रोध से खोलेगा। जूते उतारेगा तो क्रोध से उतारेगा।
कुछ लोग हैं जिनके लिए क्रोध एक भावावेश होता | सूफी फकीर बोकोजू से कोई मिलने आया। उसने जोर से है-अधिक लोग। किसी ने गाली दी, क्रुद्ध हो गए। दरवाजे को धक्का दिया। क्रोधी आदमी रहा होगा, कृष्ण लेश्या
लेकिन कुछ लोग हैं, जो क्रुद्ध ही रहते हैं। किसी के गाली देने का आदमी रहा होगा। फिर जूते उतारकर फेंके। बोकोजू के पास न देने का सवाल नहीं है। वे गालियां खोज लेते हैं। जहां न हो | आकर बोला, शांति की आकांक्षा करता हूं। कोई ध्यान का मार्ग गाली, वहां भी खोज लेते हैं। जहां न हो गाली, वहां भी व्याख्या | दें। बोकोजू ने कहा, यह बकवास पीछे। पहले जाकर दरवाजे से
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