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________________ म नुष्य जैसा है, अपने ही कारण है। मनुष्य जैसा है, बुद्ध ने धम्मपद के वचनों का प्रारंभ किया है: तम जो हो वह 1 वह अपने ही निर्माण से वैसा है। अतीत में सोचे हुए विचारों का परिणाम है। तुम जो होओगे, वह महावीर की दृष्टि में मनुष्य का उत्तरदायित्व चरम | आज सोचे गए विचारों का फल होगा। मनुष्य जैसा सोचता है, है। दख है तो तम कारण हो। सख है तो तम कारण हो। बंधे हो वैसा हो जाता है। तो तुमने बंधना चाहा है। मुक्त होना चाहो, मुक्त हो जाओगे। संसार विचार की एक प्रक्रिया है; मोक्ष, निर्विचार की शांति कोई मनुष्य को बांधता नहीं, कोई मनुष्य को मुक्त नहीं करता। है। संसार गांठ है विचारों की। तुम सोचना बंद कर दो-गांठ मनुष्य की अपनी वृत्तियां ही बांधती हैं, अपने राग-द्वेष ही बांधते | अपने-आप पिघल जाती है, बह जाती है। तुम सहयोग न दो, हैं, अपने विचार ही बांधते हैं। तुम्हारा साथ न रहे, तो जंजीरें अपने-आप स्वप्नवत विलीन हो एक अर्थ में गहन दायित्व है मनुष्य का, क्योंकि जिम्मेवारी | जाती हैं। किसी और पर फेंकी नहीं जा सकती। इन सूत्रों में इसी तरफ इंगित है। जैसा पहले कहा कि मनुष्य के महावीर के विचार में परमात्मा की कोई जगह नहीं है। इसलिए ऊपर सात पर्दे हैं। अब महावीर एक-एक पर्दे की तुम किसी और पर दोष न फेंक सकोगे। महावीर ने दोष फेंकने विचार-शंखला के संबंध में इशारे करते हैं। के सारे उपाय छीन लिए हैं। सारा दोष तुम्हारा है। लेकिन इससे 'स्वभाव की प्रचंडता, रौद्रता, वैर की मजबूत गांठ, झगड़ालू हताश होने का कोई कारण नहीं है। इससे निराश हो जाने की | वृत्ति, धर्म और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं कोई वजह नहीं है। मानना, ये कृष्ण लेश्या के लक्षण हैं।' । चूंकि सारा दोष तुम्हारा है, इसलिए तुम्हारी मालकियत की इन तानों-बानों से बना है पहला पर्दा : अंधेरे का पर्दा। अंधेरा उदघोषणा हो रही है। तुम चाहो तो इसी क्षण जंजीरें गिर सकती | अगर तुम्हारे बाहर होता तो कोई बाहर से रोशनी भी ला सकता हैं। तुम उन्हें पकड़े हो, जंजीरों ने तुम्हें नहीं पकड़ा है। और था। तुम घर में बैठे हो अंधेरे में, पड़ोसी भी दीया ला सकता है। किसी और ने तुम्हें कारागृह में नहीं डाला है, तुम अपनी मर्जी से लेकिन जीवन में जो अंधेरा है, वह कुछ ऐसा है कि तुम उसे प्रविष्ट हुए हो। तुमने कारागृह को घर समझा है। तुमने कांटों निर्मित कर रहे हो। वह तुम्हारे बाहर नहीं तुम्हारे भीतर उसकी को फूल समझा है। जड़ें हैं; इसलिए कोई भी दीया लाकर तुम्हें दे नहीं सकता, जब ओल्ड टेस्टामेंट में, पुरानी बाइबिल में सोलोमन का प्रसिद्ध | तक कि तुम अंधेरे की जड़ों को न तोड़ डालो। . वचन है : 'ऐज ए मैन थिंकेथ सो ही बिकम्स।' जैसा आदमी | जड़ें हैं: स्वभाव की प्रचंडता। सोचता, वैसा हो जाता है। बहुत लोग हैं, जो क्रुद्ध ही जीते हैं। कुछ लोग हैं, जिन्हें 459 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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