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________________ पिया का गांव आत्यंतिक दशा है। इसका समय से कुछ लेना-देना नहीं। मोक्ष ही नहीं; क्योंकि दूसरे पंडितों ने उनको समझाया है कि इस आरे तुम्हारा ही स्वभाव है, इसे उघाड़ने की जरूरत है। मोक्ष तुम में संभव ही नहीं है। लेकर ही आए हो। थोड़े पर्दे पड़े हैं। पर्दे हटाने हैं। यह तो बड़ा उपद्रव का जाल है। एक आदमी किनारे बैठा है तो इस तरह की झूठी बातों में मत पड़ना। हालांकि इस तरह और कहता है, यह नदी अथाह है। इसमें कोई थाह ले ही नहीं की झूठी बातें पकड़ने का बड़ा रस है मन को। क्योंकि तब झंझट | सकता। उससे तुम पूछोगे, तुमने ली? मिटी, श्रम मिटा, साधना गई। अब कोई जरूरत न रही। अब | तुमने कोशिश की? कम से कम तुम डुबकी लगाए? वह तुम जो करना है करो। इस आरे में मोक्ष होता नहीं। | कहता है, डुबकी लगाने से सार क्या है? हमसे पहले कोई बैठा तम्हारी समाधि अगर चक रही है तो तम्हारी समाधि में भल | था, वह कह गया यह अथाह है। उससे पछा था कि डबकी है। अगर दो और दो पांच हो रहे हैं तो फिर से गणित करो। या | लगाई थी? उसके गुरु उसको बता गए थे कि डुबकी व्यर्थ है। दो और दो तीन ही रह जाते हैं, फिर से जोड़ो। यह कहकर मत | मैं तुमसे कहता हूं, वही आदमी हकदार है कहने का जिसने बैठ जाओ कि होगा नहीं। | डुबकी लगाई हो। और बड़े मजे की बात यह है, जिसने भी तो जिनने भी तुम्हें ऐसा समझाया है कि होगा नहीं, वे धर्म के | डुबकी लगाई, उसने पा ही लिया। किनारे पर बैठनेवाले लोग दुश्मन हैं। क्योंकि धर्म की इससे बड़ी दुश्मनी क्या होगी कि कोई | पाने के श्रम से बचना चाहते हैं, लेकिन यह भी नहीं मानना समझा दे कि अब मोक्ष असंभव है? वह तो तुम्हें हताश कर चाहते कि हम काहिल हैं, सुस्त हैं, अलाल हैं, तामसी हैं। समय देगा। वह तो तुम्हारे भीतर से आशा का सारा दीया बुझा देगा। पर दोष टाल देते हैं। समय ही खराब है। इस समय में इस नदी वह तो तुमसे सारी किरण छीन लेगा, उत्साह छीन लेगा। की थाह नहीं मिल सकती। नदी की थाह है तो कभी भी मिल पूछा है : 'मोक्ष यहीं और अभी, इस धारणा को पकड़ लेना | सकती है। डुबकी लगानेवाला चाहिए। क्या एक आत्मवंचना नहीं है?' | मैं तुमसे कहता हूं, मिल सकता है; क्योंकि मिला है। अगर आत्मवंचना इस धारणा को पकड़ना है कि मोक्ष अभी नहीं हो चूक होती हो तो अपनी चूक सुधारो। सकता। अभी और यहीं हो सकता है, इससे तो कोई हानि | मैं तो तुमसे कहता हूं, ईश्वर अगर न भी हो तो भी फिक्र मत होनेवाली नहीं है। नहीं हुआ तो नहीं हुआ। हो गया तो द्वार खुले करो। खोजो। होना जरूरी नहीं है खोज के लिए, है ऐसी आस्था स्वर्ग के। भर जरूरी है। खोजो। अगर नहीं होगा तो पता चल जाएगा, अगर खजाना घर में दबा पड़ा है, मैं कहता हूं, खोजो। अगर नहीं है। लेकिन उस पता चलने में भी तुम्हारे जीवन में बड़ा नहीं मिला तो भी क्या खोया? खोजने में थोड़े हाथ-पैर मजबूत आविर्भाव हो जाएगा चैतन्य का। ही हो जाएंगे, और कुछ भी न होगा। अगर मिल गया तो मिला। खुदा न सही आदमी का ख्वाब सही लेकिन तम अगर बैठे रहे और न खोजा तो पड़ा भी रहे खजाना, कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए तो भी नहीं मिलेगा। क्या फिक्र करनी कि ईश्वर नहीं है। न सही। चलो, आदमी __ मैं तुमसे कहता हूं: जीवन को सदा विधायक दृष्टि से देखो, | का सपना सही। नकारात्मक दृष्टि से नहीं। खोजकर देखो। मुझे खोजकर मिला | कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए। है, इसीलिए तुम्हें भी मिल सकता है। मैं तुम्हारा समसामयिक कोई सुंदर सपना तो सही! उस सुंदर सपने के सहारे तुम सुंदर हूं। तुम्हारे सामने बैठा हूं। उसी समय में, उसी जगह में, जहां हो जाओगे-चाहे सपना हो या न हो। उस सुंदर सपने को तुम हो। | देखते-देखते तुम सुंदर हो जाओगे-चाहे कोई खुदा हो न हो। जो पंडित तुमसे कह रहे हैं कि इस आरे में संभव नहीं है, उनसे फूलों की तलाश करनेवाला फूलों जैसा हो जाता है। क्योंकि पूछो, क्या तुमने पूरी कोशिश कर ली? क्या तुमने आखिरी हम जो खोजते हैं वैसे हो जाते हैं। सुगंध का खोजी सुगंध से भर कोशिश कर ली? तो तुम अकसर पाओगे उन्होंने कोशिश की जाता है। सत्य का खोजी, सत्य हो या न हो, सत्य हो जाता है। 1451 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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