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________________ 452 जिन सूत्र भाग: 2 हम जो खोजते हैं वही हो जाते हैं। तुम कभी गौर से देखो। धन खोजनेवाले आदमी को तुम गौर से देखो। उसकी शक्ल पर वैसी ही भावदशा बन जाती है जैसी रुपयों पर होती है— वैसी ही घिसी-पिटी, चली चलाई, हजार हाथ में गुजरी, घिनौनी । कंजूस आदमी के चेहरे को देखो। वैसा ही चेहरा लगने लगता है। जैसा घिसा-पिसा रुपया । कई हाथों से चल-चलकर चिकना हो गया । तेल-सा बहता मालूम होता है चेहरे से । कामी आदमी को देखो। तो उसकी आंखों में एक कामना का ज्वर, एक बुखार, एक उत्ताप । परमात्मा के खोजी को देखो, परमात्मा है या नहीं छोड़ो। क्योंकि बिना खोजे पता भी कैसे चलेगा कि है या नहीं — छोड़ो। लेकिन परमात्मा के खोजी को देखो। परमात्मा न हो, परमात्मा खोजी तो हैं; उनको देखो । परमात्मा हो या न हो, वे धीरे-धीरे परमात्म-रूप हो जाते हैं। खुदा न सही आदमी का ख्वाब सही कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए और कल पर मत टालो क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं । जो करना है आज कर लो। जो करना है अभी कर लो। क्योंकि | अभी के तुम मालिक हो । कल के तुम मालिक नहीं। यही समय तुम्हें मिला है। बंधन चाहो तो हो सकता है। मोक्ष चाहो तो हो सकता है। अब यह बड़े मजे की बात है। बंधन तो पहले भी होता था, बंधन अब भी होता है। मोक्ष पहले ही होता था, मोक्ष अब नहीं होता । यह तर्क जरा जंचता नहीं। बीमारी पहले भी होती थी, स्वास्थ्य पहले भी होता था, बीमारी अब भी होती है, स्वास्थ्य अब नहीं होता। जो आदमी बीमार हो सकता है, वह स्वस्थ क्यों नहीं हो सकता? और जिस आदमी के हाथ में जंजीरें पड़ सकती हैं, वह जंजीरें क्यों नहीं तोड़ सकता ? जब कारागृह के भीतर आने का उपाय है तो जिस दरवाजे से भीतर आया जाता है, उसी से तो बाहर भी जाया जाता है। जब कारागृह के भीतर आ गए तो एक बात पक्की है कि बाहर भी जाया जा सकता है। मगर वे ही लोग जा पाएंगे, जो आज का उपयोग कर लेंगे। घूंघट में शर्मानेवाली यह निशिगंधा Jain Education International 2010_03 संभव है कल बोले भी तो स्वीकार न हो यह भी मुमकिन है, कल रूठने-मनाने को यह रात न हो, यह बात न हो, यह प्यार न हो हरेक भक्ति के साथ चल रही विरक्ति हरेक राग का आंचल पकड़े है विराग खिड़की पर ऐसे ही फिर न घटा अंगड़ाएगी करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो जिसने गाया है, शायद सांसारिक प्रेम के लिए गाया है, लेकिन परमात्मा के प्रेम के लिए भी बात इतनी ही सही है। करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो अभी के अतिरिक्त कोई और 'कभी' है भी नहीं। कभी पर टाला तो सदा के लिए टाला। कहा 'कल', तो फिर कभी संभव न हो सकेगा। यही समय है तुम्हारे पास । पंचम काल कहो, कलियुग कहो, भ्रष्ट, पतित, पापी — मगर यही समय है तुम्हारे पास। इससे अन्यथा तुम्हारे पास कोई काल है नहीं । कीचड़ में ही पड़े हो माना; लेकिन कमल कीचड़ में ही पैदा होते हैं। कीचड़ को दोष मत देते रहो, कमल होने की चेष्टा करो। और ध्यान रखो, महावीर के समय में सभी महावीर न थे। सभी कीचड़ कमल नहीं हो गए थे। और आज भी सभी कीचड़ कीचड़ नहीं हैं। आज भी कीचड़ में कोई कमल खिला है। लेकिन अगर तुमने एक बार यह मान लिया कि आज हो ही नहीं सकता तो महावीर भी तुम्हारे सामने खड़े हो जाएं, तुम कहोगे किसी ने स्वांग भरा है। महावीर हो ही नहीं सकते। मगर यह तुम्हारी दृष्टि महावीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती, तुम्हीं को नुकसान पहुंचाती है। अगर महावीर नहीं हो सकते तो फिर तुम गए । फिर तुम्हारा कोई भविष्य नहीं । फिर तुम किसलिए हो ? फिर तुम्हारा कोई अभिप्राय नहीं । जगत में मुक्ति संभव न हो, जिस समय में मुक्ति संभव न हो, उस समय में मरने के अतिरिक्त फिर और क्या होगा ? जीवन है तो दो ही संभावनाएं हैं: मौत या मोक्ष। अगर मोक्ष हो ही नहीं सकता तो फिर जीवन का एक ही अर्थ रह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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