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________________ जिन सूत्र भागः2 लिए हो। महावीर को सभी ने थोड़े ही तीर्थंकर स्वीकार कर में क्यों ले जाना? अगर समाधि बार-बार चूक जाती है तो भूल लिया था। बहुत थोड़े-से लोगों ने स्वीकार किया था। अधिक ने खोजो। कहीं चूक कर रहे हो, उसे खोजो। कुछ रूपांतरण तो यही कहा कि सब बकवास है। बुद्ध को सभी ने थोड़े ही | करो। मार्ग खोजो, अगर बीहड़ में खो गए हो। स्वीकार किया था। अधिक तो हंसे और अधिक ने कहा कि सब । लेकिन जो आदमी जंगल में खो गया हो, वह कहने लगे, इस बातचीत है, सब कल्पना का जाल है, कविता है। पंचम काल में कहीं मार्ग मिलता है ? बैठ जाए। तो शायद मार्ग इस समय में भी घटना घट सकती है। इस समय में भी मोक्ष दो वक्षों के पार ही हो. जरा-सी झाडी की ओट में पडा हो तो भी को उपलब्ध व्यक्ति हैं। ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि मोक्ष को चूक जाएगा। उपलब्ध व्यक्ति न हों। कभी कम, कभी ज्यादा, यह बात सच और इस तरह के खतरनाक तर्क स्वयंसिद्ध हो जाते हैं। जब है। कभी हजारों की संख्या में भी एक साथ, कभी उंगलियों पर वह बैठ जाएगा और चलेगा नहीं, मार्ग खोजेगा नहीं, कहेगा कि गिने जा सकें। पंचम काल में कहीं हो सकता है? कलियुग में कोई मोक्ष को आज उंगलियों पर गिने जा सकें इतने ही व्यक्ति मोक्ष को गया है? ये बातें होती थीं पहले, सतयुग में। अब कहां? यह उपलब्ध हैं। लेकिन मार्ग रुका नहीं। संकरा भला हो, चलने में तो अंधेरे का समय है। अब कहां? यह तो भटकने का, पाप का थोड़ा दुर्गम भी हो। युग है। अब कहां? लेकिन जिसने पूछा है, उसके पूछने का क्या कारण होगा? ऐसा सोचकर बैठ गया तो फिर होगा नहीं। और जब होगा | पूछा है : 'जैन दर्शन कहता है इस आरे में मोक्ष संभव नहीं है।' | नहीं तो वह सोचेगा, निश्चित ही जो मैं सोचता था, जो मैंने सुना अगर मोक्ष भी समय पर निर्भर हो तो क्या खाक मोक्ष रहा। था कि इस आरे में मोक्ष नहीं होता, बिलकुल ठीक है। शत मोक्ष का मतलब है स्वतंत्रता। अगर स्वतंत्रता भी शर्तबंद हो कि प्रतिशत ठीक है। जैसे-जैसे वह यह सोचता जाएगा, वैसे-वैसे कभी हो सकती है और कभी नहीं हो सकती तो मोक्ष भी बंधन ही | मिलना असंभव होता जाएगा। यह तो दुष्टचक्र हो जाएगा। हो गया। मोक्ष का तो अर्थ ही इतना है कि जब भी जो पाना चाहे, | नहीं, मैं तुमसे कहता हूं ऐसा कोई काल नहीं है, ऐसा कोई उसे मिलेगा। पाना चाहनेवाला होना चाहिए। पाने की अदम्य | समय नहीं है, जब मोक्ष संभव न हो। हां, ऐसा हो सकता है चाह होनी चाहिए। कभी कठिन, कभी सरल। कठिन और सरल भी मोक्ष के कारण 'बार-बार मेरी समकीत का उपशम या वमन होने का क्या नहीं, लोगों की मनोदशाओं के कारण।। यही तो कारण नहीं है?' कोई युग होता है, बड़ा आत्यंतिक रूप से भौतिकवादी होता जरा भी नहीं। जिसने पछा है वह कह रहा है कि मेरा ध्यान है। लोग मानते ही नहीं कि जीवन के बाद कोई जीवन है। लोग बार-बार चूक जाता है, मेरी समाधि बार-बार छूट जाती है, मानते ही नहीं कि आत्मा जैसी कोई वस्तु है। लोग मानते ही नहीं इसका कारण यही तो नहीं? तो तरकीब खोज रहे हो तुम, कि कि परमात्मा है। तो स्वभावतः कठिन हो जाता है। आरे में तरकीब मिल जाए, समय में तरकीब मिल जाए। यह जब लोग मानते हैं और श्रद्धा का वातावरण होता है कि आत्मा पंचम काल, कलियुग, इसमें कहीं मोक्ष हुआ है? तो तुमको है, परमात्मा है और खोजना है...। तुम्हारे घर में अगर तुम मान राहत मिल गई। तुमने कहा, तो फिर हमारी कोई गलती नहीं है। ही लो कि खजाना नहीं है तो खोज बंद हो जाती है। मिलने की हम तो ध्यान ठीक ही साध रहे थे। अब समय ही प्रतिकूल है तो संभावना कम हो जाती है। खजाना अपने आप ही निकल आए हम क्या कर सकते हैं? तो बात अलग; अन्यथा मिलेगा कैसे? कभी भूल-चूक से गिर नहीं, इस तरह अपना दायित्व समय पर मत छोड़ो। क्योंकि पड़ो खजाने पर, बात अलग, अन्यथा मिलेगा कैसे? लेकिन जो अगर समय पर तुमने दायित्व छोड़ दिया तो जो संभव था वह | मानता है कि खजाना है, वह खोजता है। मान्यता से खोज फिर निश्चित ही असंभव हो जाएगा। अगर समाधि चूक-चूक निकल आती है। खोज से संभावना सुगम हो जाती है। जाती है तो कहीं तुम्हारी भूल है। सीधी-सी बात को इतने जाल | मैं तुमसे कहता हूं, मोक्ष संभव है। क्योंकि मोक्ष तुम्हारी 450 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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