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________________ 440 जिन सूत्र भाग: 2 तरु ने कुछ मांगा नहीं । जो उसे मैंने कहा, उसने किया है। कहा, गीता पढ़ तो गीता पढ़ी। कहा, उपनिषद पढ़ तो उपनिषद पढ़ा। कहा, चल जिन सूत्र पढ़ तो जिन सूत्र पढ़े। कहा, धम्मपद पढ़ तो धम्मपद पढ़ा। कहा, भजन गा भजन गाए। जो उसे कहा, उसने किया है। मांगा उसने कुछ नहीं । जो करने को कहा है, उसे इंकार नहीं किया। उसने सरलता से मेरे हाथों में अपने को छोड़ा। उसके परिणाम होने स्वाभाविक हैं। उसके महत परिणाम होते हैं। तो यह संभव हो सका कि जिसका उसे खयाल भी नहीं रहा होगा, जो वह कभी सपने में भी मांग नहीं सकती थी, उस तरफ यात्रा शुरू हुई। जब तुम अपने अतीत से कुछ भी दोहराना नहीं चाहते, तो अभिनव का पदार्पण होता है। परमात्मा सदा नया है। सत्य सदा नया है। सत्य इतना नया है कि उसकी कोई धारणा भी नहीं की जा सकती। और एक बार तुम्हें सत्य के इस नयेपन का अनुभव हो जाए तो तुम सब मांग छोड़ देते हो। तब एक नई प्रतीति होनी शुरू होती है कि इतना मिल रहा है और हम याचक बने हैं ! हमने यह भूल हो गई। फिर तुम जो मांगते हो, अगर मिल जाए तो भी धन्यवाद पैदा नहीं होता। क्योंकि जो तुमने मांगा है, तुम सोचते हो, तुमने अर्जित किया। लोग मांगने में भी अगर कई दिन तक मांगते रहें तो धीरे-धीरे अधिकारी हो जाते हैं। वे सोचने लगते हैं, हमने इतनी प्रार्थना की इसलिए मिला। प्रार्थना की इसलिए ! भिखमंगा भी जब सड़क पर आधा घंटे मांगता रहता है और तुम देते हो तो धन्यवाद थोड़े ही देता है ! वह जानता है कि आधा घंटे चीखे - चिल्लाए, श्रम किया। और अगर तुम रोज-रोज देने गो तो धन्यवाद देना तो दूर, अगर तुम किसी दिन न दोगे तो वह नाराज होगा। रथचाइल्ड के संबंध में मैंने सुना है - यहूदी धनपति — एक भिखमंगे को वह रोज हर महीने पहली तारीख को सौ डालर देता था। वह भिखमंगा उसे जंच गया। एक दिन बगीचे में उसी बेंच पर आकर बैठ गया था। दया आ गई। कोई रथचाइल्ड के पास कमी न थी । उसने कहा कि तू सौ डालर हर महीने एक तारीख को आकर ले जाया कर । वह भिखमंगा इस तरह से उसके दफ्तर में आने लगा, जैसे लोग अपनी तनख्वाह लेने जाते हैं। अगर Jain Education International 2010_03 दस-पांच मिनट भी उसको रुकना पड़ता तो वह नाराज हो जाता, चीख-पुकार मचाने लगता । कोई दस साल तक ऐसा चला । एक दिन आया लेने तो जो क्लर्क उसे देता था - और भी भिखमंगों को रथचाइल्ड बांटता था। बहुत धन उसने बांटा — उसने कहा कि इस तारीख से अब तुम्हें पचास डालर ही मिल सकेंगे। उसने पूछा, क्यों? सदा मुझे सौ मिलते रहे। सालों से मिलते रहे। यह फर्क कैसा ! उस क्लर्क ने कहा कि ऐसा करें, मालिक का धंधा बहुत लाभ में नहीं चल रहा है। और उनकी लड़की की शादी हो रही है। और उस लड़की की शादी में बहुत खर्च है। तो उन्होंने सभी दान आधा कर दिया है। वह तो एकदम टेबल पीटने लगा। उसने कहा बुलाओ रथचाइल्ड को, कहां है ! मेरे पैसे पर अपनी लड़की की शादी? एक गरीब आदमी का पैसा काटकर लड़की की शादी में मजा, गुलछर्रे उड़ाएगा? बुलाओ, कहां है! रथचाइल्ड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैं गया और मुझे बड़ी हंसी आयी। लेकिन मुझे एक बात समझ में आयी कि यही तो मैं परमात्मा के साथ करता रहा हूं। यही तो हम सबने परमात्मा के साथ किया है। जो मिला है उसका हम धन्यवाद नहीं देते। उस दस साल में उसने कभी एक दिन धन्यवाद न दिया। लेकिन पचास डालर कम हुए वह नाराज था, शिकायत थी। और आगबबूला हो गया। उसके पचास डालर काटे जा रहे हैं? अगर तुमने मांगा तो पहली तो बात, मिलेगा नहीं । और शुभ है कि नहीं मिलता क्योंकि तुम जो भी मांगते हो, गलत मांगते हो। तुम सही मांग ही नहीं सकते। तुम गलत हो । गलत से गलत मांग ही उठ सकती है। नीम में केवल नीम की निबोरियां ही लग सकती हैं, आम के सुस्वादु फलों के लगने की कोई संभावना नहीं है । जो तुम्हारी जड़ में नहीं है, वह तुम्हारे फल में न हो सकेगा। तुम गलत हो तो तुम जो मांगोगे वह गलत होगा। तो पहली तो बात – मिलेगा नहीं। और शुभ है कि नहीं मिलता । परमात्मा की बड़ी अनुकंपा है कि तुम जो मांगते हो, वह नहीं मिलता। इसे कभी सोचना बैठकर कि तुमने जो-जो मांगा था अगर मिल जाता तो कैसी मुसीबत में पड़ते ! लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि मिल जाता है । तो जो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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