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________________ पिया का गांव मिल जाए तो भी धन्यवाद पैदा नहीं होता, कृतज्ञता पैदा नहीं आभा होती है। होती, और जिस प्रार्थना का परिणाम कृतज्ञता न हो, वह प्रार्थना भाषाकोश में तो दोनों शब्दों का एक ही अर्थ लिखा है, लेकिन प्रार्थना नहीं है। प्रार्थना का पहला स्वाद भी कृतज्ञता है और जीवन के कोश में बड़ा भेद है। इसलिए भाषाकोश पर बहुत मत अंतिम स्वाद भी कृतज्ञता है। एक गहरा अनुग्रह का भाव! जाना। भाषा को बहुत जाननेवाले लोग अक्सर जीवन से वंचित तो जिस प्रार्थना के पीछे अनुग्रह का स्वाद छूट जाए, समझ रह जाते हैं। अगर तुम भाषाकोश में देखोगे, डिक्शनरी में देखोगे लेना कि प्रार्थना ठीक थी; पहुंच गई परमात्मा के हृदय तक। पूरी तो एकांत, एकाकी, अकेला, सबका एक ही अर्थ है। भाषाकोश हुई या नहीं, यह सवाल नहीं है। अगर अनुग्रह का भाव पैदा कर की तो अंधेर नगरी है। वहां तो सभी चीज एक भाव बिक रही गई तो पूरी हो गई। | है। 'अंधेर नगरी बेबूझ राजा, टके सेर भाजी, टके सेर तो जो मेरे पास आए हैं, अगर उनकी कुछ मांग है, तो एक तो खाजा।' सभी एक भाव बिक रहा है। मांग बाधा बनेगी। मुझसे मिलन न हो पाएगा। अगर मिल भी जीवन का कोश बड़ा अलग है। फासले बड़े सूक्ष्म हैं। गए, उनकी मांग पूरी भी हो गई तो कृतज्ञता पैदा न होगी। महावीर एकांत में होते हैं; तुम जब होते हो, अकेले होते हो। तुम असंभव है। और अगर कृतज्ञता पैदा न हुई तो आस्तिकता पैदा | जब होते हो तब तुम सोचते होते हो कि दूसरे को कहां खोज लूं! नहीं होती। - पत्नी को, पति को, मित्र को, बेटे को, पिता को, भाई को, समाज परमात्मा को चाहे भूल जाओ, कृतज्ञता को मत भूलना। को-दूसरे को कैसे खोज लूं? सच तो यह है कि जब तक क्योंकि कृतज्ञता का संचित जोड़ ही परमात्मा है। जितने तुम दूसरा मौजूद होता है, तब तक तुम्हें दूसरे की याद ही नहीं आती। अनुग्रह के भाव से भरते जाते हो, उतना ही तुम्हारे परमात्मा का | दूसरे की याद ही तब आती है, जब तुम अकेले होते हो। मंदिर निर्मित होता चला जाता है। तुम्हारे अकेले में बड़ी भीड़ खड़ी होती है। भाषाकोश '...न मालूम आपने कहां से कहां चला दिया। एकांत अब बनानेवाले को वह भीड़ दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि वह भीड़ तो प्रीतिकर लगता है।' एकांत प्रीतिकर लगे तो प्रार्थना शुरू हुई। सूक्ष्म है और मन की है। तुम जाकर पहाड़ पर बैठ जाओ। तुम हमें एकांत प्रीतिकर क्यों नहीं लगता? एकांत को हम कहते अकेले न जाओगे। अकेले दिखाई पड़ोगे, तुम्हारे भीतर एक हैं, अकेलापन, लोनलीनेस। एकांत को हम एकांत थोड़े ही भीड़ चल रही है। कहत हैं! अलोननेस थोड़े ही कहते हैं! एकांत को हम कहते हैं, जब बायजीद अपने गुरु के पास पहली दफा गया और उसने अकेलापन। अकेलेपन में लगता है, दूसरे की कमी है। दूसरा जाकर चरणों में सिर झकाया और कहा कि मैं आ गया हं सब होना चाहिए था, और है नहीं। अकेलेपन का अर्थ है शिकायत। छोड़कर अकेला तुम्हारे चरणों में। गुरु ने कहा, बकवास बंद। अकेलेपन का अर्थ है कि अभाव अनुभव हो रहा है दूसरे की भीड़ को बाहर छोड़कर आ। उसने लौटकर पीछे दिखा कि कोई मौजूदगी का। जब तुम कहते हो अकेलापन लग रहा है, तो क्या आ तो नहीं गया पीछे? कोई भी न था। उस मस्जिद में गुरु अर्थ हुआ इसका? इसका अर्थ हुआ कि दूसरा अनुपस्थित है, अकेला बैठा था। उसने चारों तरफ देखा। गुरु ने कहा, उसकी अनुपस्थिति खल रही है। यहां-वहां मत देख। आंख बंद कर; वहां देख। अकेलापन नकारात्मक है: एकांत विधायक है। घबड़ाकर उसने आंख बंद की, निश्चित ही वहां भीड़ खड़ी एकांत का अर्थ है, अपने होने में आनंद आ रहा है। अकेलेपन | थी। जिस पत्नी को रोते छोड़ आया था, वह अभी भी रो रही का अर्थ है, दूसरे के न होने में दुख मालूम हो रहा है। दूसरे की थी। जिन बच्चों को विदा कर आया था, माफी मांग आया था अनपस्थिति चभ रही है। एकांत का अर्थ है, अपने होने में रस कि मझे जाने दो, वे अब भी बिसरते खड़े थे। जिन मित्रों से कह बह रहा है। आया था गांव के बाहर आकर कि अब मेरे पीछे मत आओ, जब अकेला आदमी कमरे में बैठा हो तो उदासी से घिरा होता अब मुझे अकेला छोड़ दो, वे साथ ही चले आए थे। बाहर से तो है। और जब एकांत में बैठा हो तो उसके चारों तरफ आनंद की नहीं, भीतर आ गए थे। भीतर भीड़ थी। बायजीद को दिखा कि 1441 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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