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________________ - पिया का गांव पिया का गांव घोषणा, कि मैं अज्ञानी हूं। है, थोड़ा सुधारकर मांग लोगे। जो सुख तुम्हें पहले मिले हैं, जब तुम अज्ञानी किसी के समक्ष अपने को स्वीकार कर लेते | थोड़ी तरमीम, संशोधन करके मांग लोगे। हो तो क्रांति के लिए तत्पर हो गए, तैयार हो गए। अहंकार तुमने अभिनव को कैसे मांगोगे? जो तुमने जाना ही नहीं, जीया ही हटाकर रख दिया। नहीं, उसे कैसे मांगोगे? प्रश्न पूछा है तरु ने। खतरा था; क्योंकि पंडितों का सत्संग इसलिए जो जानता है, थोड़ा-सा भी जानता है, थोड़ा-सा भी उसने किया है मुझसे पहले। साधु-संन्यासियों के पास गई है। समझता है, वह अड़चन में पड़ जाता है। उसकी प्रार्थना कलुषित स्वामियों के प्रवचन सुने हैं। खतरा था। ज्ञान उसके पास था। हो जाती है। उसकी पूजा में उसके ज्ञान की छाया पड़ जाती है। लेकिन उसने हिम्मत की और अज्ञानी होने के लिए राजी हुई। | उसकी पूजा की शुभ्रता उसके ज्ञान की कालिमा से दब जाती है। उसी हिम्मत से घटना घटी। __ तो जब तुम मंदिर जाओ, पूजा करो, प्रार्थना करो तो कुछ डर था कि वह अपने ज्ञान को पकड़ लेती। जो सुना-समझा मांगना मत। क्योंकि तुम जो मांगोगे, वह गलत होगा। तुम जो था उसे पकड़ लेती तो मुझसे मिलना न हो पाता।। मांगोगे वह गलत ही हो सकता है। काश! तुम्हें ठीक का ही पता मेरे पास भी रहकर बहुत हैं, जो मुझसे वंचित रह जाएंगे। होता तो मंदिर जाने की जरूरत ही न होती। अगर ज्ञान की जरा भी दीवाल रही तो मैं यहां चिल्लाता रहूंगा, तुम्हें ठीक का पता नहीं है। इसलिए तुम्हारी मांग में ही भूल आवाज तुम तक पहुंचेगी नहीं। मैं रोज-रोज तुम्हें समझाता होगी। तुम वही मांगोगे, जो तुम पहले मांगते रहे हो। तुम रहूंगा, तुम रोज-रोज चूकते रहोगे। मैं रोज-रोज दोहराता रहूंगा फिर-फिर दोहराकर उसी रास्ते से घूमते रहोगे, जिस पर तुम और तुम बहरे...और बहरे होते जाओगे। ज्ञान कान में भरा हो | पहले घूमते रहे हो। तुम कोल्हू के बैल की तरह चलते रहोगे। तो कान सनने में असमर्थ हो जाते हैं। ज्ञान आंख में भरा हो तो इसलिए अगर थोड़ी समझ हो तो मांगना मत। झोली फैलाकर आंख देखने में असमर्थ हो जाती है। खड़े हो जाना, मांगना मत। हृदय खोलकर खड़े हो जाना, अज्ञान को स्वीकार करने में एक निर्दोषता है। मांगना मत। यह मत कहना कि यह दे, वह दे। इतना ही कठिन था। तरु को पता था। बहुत-सी बातें पता थीं। और कहना : झोली खुली है। तू देगा तो हम स्वीकार करेंगे आनंद से, बहुत मुश्किल होता है कि जो तुम्हें पता है, उसे हटाकर रख अहोभाव से। तू नहीं देगा तो हम समझेंगे, यही तेरा देना है। तू देना। उसे ही मैं त्याग कहता हूं। धन, पद, प्रतिष्ठा, इनका झोली खाली रखेगा तो हम समझेंगे, यही हमारी झोली का भरा त्याग कुछ भी नहीं है, ज्ञान का त्याग ही वास्तविक त्याग है। होना है। खालीपन से ही तूने हमारी झोली भरी है। त चाहता है, क्योंकि ज्ञान से जितना अहंकार भरता है, उतना किसी चीज से हम खालीपन में जीएं। तो हम नाचेंगे, गुनगुनाएंगे, आनंदित नहीं भरता। ज्ञान जैसी अकड़ देता है, रीढ़ को जैसा सख्त, | होंगे; मांगेंगे नहीं।। पथरीला कर देता है, वैसी कोई चीज नहीं करती। ___ ध्यान रखना, जिसने प्रार्थना में मांगा, उसकी प्रार्थना तो खराब छोड़ सकी तो पाने का रास्ता बना। झक सकी तो भरने का ही हो गई। उस मांगने के कारण प्रार्थना तो प्रार्थना ही न रही। उपाय हुआ। प्रार्थना में आदमी अपने को देता है, मांगता नहीं। पूछा है : 'न मालूम आपने कहां से कहां चला दिया। तो जो मेरे पास आए हैं और जिनको खयाल है कि कुछ मिल क्योंकि जो वह सोचकर आयी होगी, उस तरफ तो मैं नहीं ले जाए; और जिनकी जितनी स्पष्ट धारणा है कुछ पाने की, उतनी गया। क्योंकि तम जो सोचकर आते हो, वह तो गलत ही है। ही अड़चन है। तो बार-बार उनके मन में यही अपेक्षा गूंजती 'तुम' सोचकर आते हो, तुम्हारा सोचना तुम्हारे अतीत का ही रहती है-अभी तक मिला नहीं, अभी तक मिला नहीं। और जो प्रतिफलन होता है। अन्यथा हो भी नहीं सकता। तुम जो मिल रहा है, वह उन्हें दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि उनकी आंख सोचकर आते हो, वह तुम्हारी अतीत की ही कुछ पुनरावृत्ति होता | में उनकी मांग भरी है। वे अपनी ही मांग को दोहराए चले जा रहे || है। जो तुमने जाना है, उसी को तो मांगोगे। जो तुमने पहले जाना हैं। मांग अंधा कर देती है। 1439 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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