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________________ - जिन सूत्र भाग : 2 - बाहर का बाहर पड़ा रह जाएगा। और हम भीतर तो खाली के किसलिए आए हो। तम्हें भी साफ नहीं होता. क्या घटेगा? खाली रह गए। यह जोड़ कुछ जोड़ न हुआ। यह धन अपना न | तुम्हें भी साफ नहीं होता कि तुम्हें मैं कहां ले चलूंगा? हो भी नहीं हो सका तो 'धन' कैसे हो सकेगा? मौत छीन लेगी, जो छिन | सकता साफ। क्योंकि पता तो हमें उसी का होता है. जो हो जाएगा उसे धन क्या कहना? जो छिन जाएगा वह विपत्ति हो | चुका। जो नहीं हुआ है उसका तुम्हें पता नहीं होता। सकती है, संपत्ति नहीं। सदगुरु का इतना ही अर्थ है कि जो तुम्हारा भविष्य है वह एक विकल्प है कि आदमी लौट जाए, जो कि हो नहीं सकता। उसका अतीत है। जो तुम्हें अभी होना है, उसके लिए हो चुका। झूठा विकल्प है। भ्रामक विकल्प है। रास्ता वहां से जाता नहीं, इसे समझ लेना। सदगुरु का बस इतना ही अर्थ है कि जो सिर्फ दिखाई पड़ता है। दिखाई पड़ता है क्योंकि हम वहां से तुम्हारा भविष्य है, वह उसका अतीत है। वह स्वयं तो अपने होकर आए हैं। | अतीत में नहीं जा सकता, लेकिन तुम्हें तुम्हारे भविष्य की झलक तुम्हें पता है जो बीत गया कल, उसका। जो बीत गया परसों, दे सकता है। वह उस रास्ते से गुजर चुका, जिससे तुम्हें अभी उसका। यद्यपि लौट नहीं सकते वहां। जिसका पता है वहां लौट गुजरना है। वह हो चुका फूल, तुम अभी बीज हो। बीज को पता नहीं सकते। जाना तो पड़ेगा उस कल में, जिसका अभी पता नहीं भी कैसे हो सकता है? है। जाना पड़ेगा भविष्य में, अनजान में। जो जाना-माना है | ठीक पूछा है कि 'मैं जब प्रथम-प्रथम आपको मिली थी तब अतीत, वहां लौटा नहीं जा सकता। समय को पीछे की तरफ | कुछ भी तो पता नहीं था।' लौटाया नहीं जा सकता। घड़ी के कांटे पीछे की तरफ चलाए | अगर कुछ पता होता तो पहली तो बात, मुझसे मिलना नहीं जा सकते। घड़ी के चला लो, जीवन के नहीं चलाए जा मुश्किल हो जाता। क्योंकि जिनको पता है, वे यहां आते नहीं। सकते। मगर परिचय उससे है, जो बीत गया। परिचय उससे है, जिनको पता है, उनका दंभ उन्हें यहां न आने देगा। उनका ज्ञान जो अब कभी न होगा। और उससे कोई परिचय नहीं है, जो होने | ही बाधा है। पता ही होता, तब तो ठीक था। पता भी नहीं है, जा रहा है। | सिर्फ भ्रांति है कि पता है। गीता पढ़ ली है, करान पढ़ लिया है, पशता मनुष्यता का अतीत है, परिचित है। इसलिए तो आदमी | धम्मपद पढ़ लिया है, महावीर के वचन कंठस्थ कर लिए हैं। शराब पी लेता है। इसलिए तो पद, धन की दौड़ में लग जाता | पता बिलकुल नहीं है। महावीर को पता रहा होगा, महावीर के है। भलाने के हजार उपाय खोज लेता। फिर शराब हो, कि | वचन याद कर लेने से तुम्हें पता नहीं हो जाएगा। कृष्ण को । संभोग हो, कि संगीत हो, कहीं भी भुलाने का उपाय आदमी जब मालूम रहा होगा, लेकिन गीता कंठस्थ होने से तुम्हें मालूम नहीं खोजता है कि अपने होश की छोटी-सी किरण को डुबा दूं; यह हो जाएगा। छोटा-सा दीया भी बझ जाए, गहन अंधकार हो जाए, तो कम से तम्हारा जीवंत अनुभव होगा तो ही कम द्वंद्व तो मिटे! अंधेरा ही बचे। अंधेरे का ही अद्वैत सही, इसलिए शास्त्र ज्ञान दे सकता है। और ज्ञान बाधा बन सकता लेकिन अद्वैत तो हो जाए। एक तो बचे! दो की दुविधा तो न है। बोध तो केवल शास्ता से मिलता है, शास्त्र से नहीं। शास्ता रहे। पर यह हो नहीं पाता। लाख बुझाओ इस किरण को, यह का अर्थ है, जीवित शास्त्र। जिसको हुआ है ऐसे किसी आदमी बुझेगी नहीं। | को खोज लेना। उसके माध्यम से ही शास्त्रों का अर्थ और तो दूसरा उपाय है और दूसरा ही केवल उपाय है कि पूरे | अभिप्राय तुम्हारे लिए खुलेगा। जागरूक हो जाओ। जैसे पूरी बेहोशी में एक सुख है क्योंकि | और ऐसा आदमी खोजना हो तो पहली शर्त है कि अपने ज्ञान अखंड रूप से अद्वैत है, अंधेरे का है। वैसे ही पूरे होश में | की भ्रांति छोड़ देना। गुरु से मिलना हो ही नहीं सकता, अगर महाआनंद है, महासुख है; वह भी अखंड एकता का है। कोई शिष्य को थोड़ा भी खयाल हो कि मुझे मालूम है। जितना मालूम अंधेरा न बचा। भीतर सारा अंधकार समाप्त हो गया। है उतनी ही दीवाल रहेगी। उतनी ही ओट रहेगी। शिष्य का अर्थ तो जब तुम मेरे पास आते हो तो तुम्हें भी साफ नहीं होता ही है इस बात की घोषणा, कि मुझे मालूम नहीं। इस बात की 1438 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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