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________________ यात्रा का प्रारंभ अपने ही घर से किसी भी चीज की मालकियत मत बनाना। आए हाथ में, चली | कभी-कभी तुम चौंककर पाओगे, कौन-कौन है? जाने देना। जैसी आयी, वैसी जाने देना, बहने देना। जहां तुम जब सुरति बंधेगी, जब मेरा तुम्हारा धागा मिलेगा, तो मालिक बने, वहीं पाप शुरू हुआ। जब तक तुम मालिक नहीं | अचानक 'मैं' और 'तू' की आवाजें बंद हो जाएंगी। सुनने के हो, केवल संपदा को यहां से वहां जाने देने के माध्यम हो, किसी गहन क्षण में कभी-कभी क्षणभर को 'तारी' लग उपकरण हो, निमित्त मात्र हो-वहां तक परमात्मा तुम्हारे भीतर जाएगी। वह क्षणभर की 'तारी' समाधि के अनुभव-जैसी है। खूब खिलेगा, खूब फैलेगा। तो एक ही सूत्र याद रखने जैसा है: क्षणभर का है—आएगा, जाएगा लेकिन स्वाद दे जाएगा। कृपण मत होना। बूंद एक गिर जाएगी अमृत की। फिर तुम तड़पोगे। फिर तुम वही न हो सकोगे जो तुम थे कल तक। तम किसी को समझा भी चौथा प्रश्न : पिछले दिन आपका प्रवचन सुनते हुए आपकी न सकोगे कि क्या हो गया है। बताने का भी कोई उपाय न आवाज से हृदय और कर्ण-तंतुओं पर एक अजीब तरह का | पाओगे। बेबूझ होगी घटना। लेकिन इतनी गहन होगी कि उसे कंपन हुआ और तब से साधारण ध्वनियां भी अजीब कंपन | तुम इनकार भी न कर सकोगे। और आनंद की लहर पैदा कर रही हैं। कृपया बताएं कि क्या | । इधर मैं बोल रहा हूं, तो तुम्हें कुछ समझाने को नहीं। इस बुद्धपुरुषों के स्वर में कुछ है, जो विशेष प्रभाव पैदा करता है? खयाल में पड़ना ही मत। यहां मैं बोल रहा हूं तुम्हें कुछ समझाने साथ ही आपकी उपस्थिति में एक विशेष आनंददायक गंध को नहीं। यहां मैं बोल रहा हूं कि बोलने के माध्यम से मेरा और मिलती है; और वह कभी आश्रम में और कभी ध्यान के समय तुम्हारा तालमेल किसी क्षण बैठ जाए। कब बैठ जाए, कोई भी मिलती है। इस संदर्भ में भी बताएं कि क्या काल या जानता नहीं। कब किसका बैठ जाए, कोई जानता नहीं। कब समय-विशेष की विशेष गंध भी होती है? | किसकी घड़ी आ जाए, कोई जानता नहीं। मगर सुनते-सुनते...इसीलिए तो रोज बोले चला जाता हूं। अगर सुनोगे यदि, तो कुछ निश्चित कंपेगा हृदय में। जगह दोगे मुझे कुछ समझाना होता, तो बात खतम हो जाती। यह बात खतम भीतर आने की थोड़ी; राह में न अड़कर खड़े हो जाओगे; | होनेवाली नहीं है, क्योंकि समझाने से इसका कोई संबंध नहीं है। द्वार-दरवाजा बंद न करोगे, खोलोगे; तो हवाएं आएंगी, सूरज यह बात चलती रहेगी। क्योंकि इसका प्रयोजन कुछ और ही है। की रोशनी आएगी, भीतर कछ होगा। अगर तमने मझे जगह दी, इसका प्रयोजन रासायनिक है, बौ तो जो मेरे भीतर हुआ है, उसके कंपन तुम तक पहुंचेंगे। 'अल्केमिकल' है। इसका प्रयोजन है कि सुनते-सुनते, , यही तो सत्संग का अर्थ है। यही तो सारा प्रयोजन है कि मैं सुनते-सुनते, कभी-कभी एक क्षण को तुम अपने को भूल यहां हूं और तुम यहां हो। यही तो प्रयोजन है कि किसी भांति मेरे जाओगे। सुनने में लवलीन हो जाओगे, तल्लीन हो जाओगे, हृदय और तुम्हारे हृदय की लयबद्धता बंध जाए। किसी भांति, | तन्मय हो जाओगे; एक क्षण को तुम भूल जाओगे, वह जो जिस लय से, जिस तरंग से मैं जी रहा हूं, उस तरंग का तुम्हें भी अहंकार तुम चौबीस घंटे पकड़े रखते हो, एक क्षण को तुम्हारे थोड़ा-सा स्वाद आ जाए, अनुभव आ जाए। | हाथ से छूट जाएगा। किसी पंक्ति के काव्य में डूबकर, क्षणभर उपाय क्या है? को तुम छुटकारा पा जाओगे अपनी सहज अहंकार की व्यवस्था थोड़ी दूर मेरे साथ चलो। थोड़ी दूर मेरे साथ धड़को। थोड़ी दूर से। उसी क्षण में मिलन हो जाएगा। उसी क्षण में तीर की तरह मैं मेरे साथ श्वास लो। जब तुम मुझे गौर से सुनोगे, तो तुम तुम्हारे हृदय में चुभ जाऊंगा। एक बूंद तुम पर बरस जाएगी। पाओगे, तुम वहां सुननेवाले नहीं रहे, मैं यहां बोलनेवाला नहीं मेघ तो दूर हैं, लेकिन एक बूंद बरस जाए, तो फिर चातक रहा, दोनों की सीमा-रेखाएं कहीं घुल-मिल गयीं। कभी-कभी | प्रतीक्षा कर सकता है जन्मों-जन्मों तक। फिर कोई अड़चन नहीं तुम पाओगे, तुम यहां बोलनेवाले होकर बैठ गये, मैं वहां | है। फिर चातक जानता है कि होता है सत्य होता है प्रेम होती सुननेवाला होकर बैठ गया। है प्रार्थना; होते हैं ऐसे क्षण जिनको परमात्मा के कहने के 133 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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