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________________ थोड़े ही कहा है कि किसी के घर में आग लगाओ, कि दीया इतने लोग, कोई उसके सामने से निकल जाता है; कोई गलत, जलाओ ! तुम पर निर्भर है। नियम तोड़ देता है; कोई उसको पीछे छोड़ देता है; कोई उसके आंख भी अनाक्रामक हो सकती है—तुम अगर अनाक्रामक आगे है, वह हार्न बजाए जा रहा है और वह हटता ही नहीं है! हो और कान भी आक्रामक हो सकता है। मेरे एक मित्र हैं। वे कहते हैं कि मैंने इसीलिए खुद कार चलानी छोड़ दी, क्योंकि उसमें गाली देना बिलकुल जरूरी है। उससे बचा ही नहीं जा सकता। मछली मारने का काम भी ऐसा ही है। घंटों बैठे हैं और मछली पकड़ में नहीं आती, क्या करो ! या कभी-कभी मछली फंस भी जाती है और तुम खींच ही रहे थे कि छूट गयी। कभी तो ऐसा हो जाता है, हाथ में भी आ गयी और छलांग लगा गयी। तो मछुए भी गाली देने लगते हैं। यह फोसदिक अपने मित्र के साथ मछली मारने गया । और उस मित्र ने लौटकर अपनी पत्नी से कहा कि आज एक बड़ी हैरानी की बात देखी। जब फोसदिक ने एक बड़ी मछली पकड़ी घंटों की मेहनत के बाद, तो वह बड़ा खुश था; लेकिन जैसे ही उसने हाथ में उठायी वह छलांग लगा गयी और नाव के बाहर कूद गयी। तो मित्र ने कहा, मैं सोचता था कि अब तो इसके मुंह से कुछ अपशब्द निकलेगा, कोई गाली ! लेकिन फोसदिक बिलकुल चुप रहा, कुछ भी नहीं बोला। मित्र ने अपनी पत्नी को कहा कि इतनी अपवित्र शांति मैंने कभी नहीं देखी। अपवित्र शांति ! धर्मगुरु है, गाली दे नहीं सकता, अपशब्द बोल नहीं सकता। लेकिन शांति भी अपवित्र हो सकती है। चुप रहने में भी तीर हो सकते हैं, कांटे हो सकते हैं, जहर हो सकता है। तुम सभी जानते हो । चुप रहकर भी तुम चोट पहुंचा सकते हो। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि बोलकर इतनी गहरी चोट पहुंचायी ही नहीं जा सकती, जितनी चुप रहकर पहुंचायी जा सकती है। मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उस पर बड़ी नाराज हो रही थी । और चिल्ला रही थी कि बहुत हो गया; अब मेरे बर्दाश्त के बाहर है। अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुल्ला ने कहा हद्द हो गयी! मैं कुछ बोला ही नहीं हूं। मैं सिर्फ चुप बैठा हूं! उसने कहा वह मुझे मालूम है। लेकिन तुम इस ढंग से चप बैठे हो कि अब बर्दाश्त के बाहर है ! चुप बैठना भी बर्दाश्त के बाहर हो सकता है। ढंग पर निर्भर है। तुम्हारी खामोशी में भी हिंसा हो सकती है। तुम इसलिए चुप | बैठ सकते हो कि तुम इतनी गहन हिंसा से भरे हो कि अब तुम कुछ कहना भी नहीं चाहते। लेकिन तुम्हारी चुप्पी में भी गाली हो सकती है। गाली के लिए बोलना ही थोड़े ही जरूरी है, बिना बोले गाली हो सकती है। तुम्हारे उठने-बैठने के ढंग में गाली हो सकती है। तुम जिस ढंग से दूसरे को सुनते हो, उसमें गाली हो सकती है। तुमने देखा कभी? कोई आदमी घर आया । तुम सुनना नहीं चाहते। तुम उसके सामने बैठकर ही जम्हाई लेते हो। तुम उससे कुछ कहते नहीं। कहते तो तुम हो, बड़ी कृपा हुई, आए। कितने दिनों से आंखें तरस गयी थीं। कहते तो तुम यही हो । कहते तो तुम हो, अतिथि तो देवता है ! और जम्हाई ले रहे हो। बार-बार घड़ी देख रहे हो । अब और क्या कहना है? कुछ सिर पर हथौड़ा मारोगे तभी उसकी समझ में आएगा? कोई बोल रहा है, तुम बार-बार घड़ी देख रहे हो। तुम क्या कह रहे हो ? शायद तुम्हें भी पता न हो। तुम बिना कहे कुछ कह । तुम्हारे बोलने में, तुम्हारे सुनने में, तुम्हारे उठने-बैठने में, न बोलने में, चुप रहने में सब तरफ से हिंसा हो सकती है। सुना है, अमरीका का एक बड़ा धार्मिक उपदेशक है, | डाक्टर फोसदिक । उसके संबंध में एक मित्र किसी को कह रहा था कि हम दोनों साथ-साथ मछली मारने गये। अब कुछ मामला ऐसा है...मछली मारनेवाले या कार चलानेवाले, कुछ काम ऐसे हैं कि वह गाली देना सीख ही जाते हैं। कार चलानेवाला गाली न दे, बड़ा मुश्किल! क्रोध आ ही जाता है। Jain Education International 2010_03 यात्रा का प्रारंभ अपने ही घर से तो जरूरी नहीं है कि तुम्हारा कान मैंने कह दिया कि अनाक्रामक है, तो हो । तुम पर निर्भर है। यह तो प्रतीक था। सुनने और देखने में भेद है। कान सुनता है, ग्रहण करता है। आंख जाती है, छूती है, खोजती है। बस इतना प्रतीक था। तुम कान-जैसे बनना । तुम्हारी आंख भी कान - जैसी बन जाए। वह भी ग्राहक हो । वह इस परम सौंदर्य को, जो चारों तरफ फैला है, इसे पीए । इसे उघाड़े न, बलात्कार न करे! व्यभिचार न करे, चोट न करे ! बस इतनी बात थी। यह हो सकता है। लेकिन यह होगा तुम्हारे रूपांतरण से। For Private & Personal Use Only 29 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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