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मुक्ति द्वंद्वातीत है
आ जाना है, जब तुम्हें यह लगे कि हां, मुझे कुछ हो सकता है। और जाएगी। इसलिए जब चली जाए तो घबड़ा मत जाना,
इसीलिए तो लोग बुद्ध पर, महावीर पर, कृष्ण पर, क्राइस्ट पर उदास मत हो जाना। क्योंकि यह बड़ी दूर की झलक है। जैसे भरोसा नहीं करते। क्योंकि उनको लगता है, जब हमें नहीं हो आकाश में क्षणभर को बिजली कौंध गई हो और तुम्हें दूर सकता तो किसी को कैसे हुआ होगा? आखिर हम भी मनुष्य हिमालय का शिखर दिखाई पड़ गया हो। पर बिजली गई, फिर जैसे मनुष्य हैं-हड्डी, मांस, मज्जा के बने। जैसे तुम घना अंधेरा है। और ध्यान रखना, जब बिजली के बाद अंधेरा थे–महावीर हो, कि बुद्ध हो, कि कृष्ण हो, कि क्राइस्ट हो। होता है तो बिजली के पहले के अंधेरे से ज्यादा घना हो जाता है। हम भी जन्मे, तम भी जन्मे। हम भी मरण की तरफ जा रहे हैं, तो जिनके जीवन में यह सौभाग्य का क्षण आता है, उन्हें लगता तुम भी मरे। हमें भी भूख लगती है, तुम्हें भी लगती है। हमारा है, अब कुछ हो सकता है, वे बड़ी खतरे की स्थिति में भी हैं। भी शरीर जीर्ण-शीर्ण होता है, वृद्ध होता है, तुम्हारा भी हुआ। उन्हें सचेत कर देना जरूरी है। क्योंकि यह बिजली की कौंध है; हमारी भी कमर झुक गई, तुम्हारी भी झुक जाएगी, तुम्हारी भी यह खो जाएगी। यह बहुत बार पकड़ में आएगी, बहुत बार छूट झुक गई थी।
| जाएगी। और जब छूटेगी तब तुम ऐसे अतल अंधेरे में गिरोगे, तो अंतर कहां है? हमारे जैसे मनुष्य! हमें नहीं हुआ, हमें नहीं जैसे कि तुम कभी भी नहीं थे। घटा वह अघट, हमारे जीवन में नहीं उतरा आकाश। हमारा | लेकिन अगर सावधान रहे और स्मरण रखा कि ऐसा होता है, आंगन तो सिकुड़ता ही गया। आकाश के तो दर्शन ही नहीं हुए। | तो तुम उन अंधेरी रातों को भी पार कर जाओगे। और जो अभी हमारे तो झरोखे बंद ही होते गए। कभी कोई खुला प्रकाश, सूरज | बिजली की कौंध की तरह घटा है, वह एक दिन सुबह के सूरज का दर्शन न हुआ, तो तुम्हें कैसे हुआ होगा? या तो तुम धोखा दे की तरह घटेगा। पहले झलक आती है, फिर झलक साफ होती रहे हो, या तुम भ्रम में पड़े हो, या तो तुम सिर्फ बातचीत कर रहे | है; फिर झलक झलक नहीं रह जाती, तुम्हारा सुनिश्चित अनुभव हो और या फिर तुम कोई सपना देख रहे हो।
हो जाता है। फिर अनुभव नहीं रह जाता है, परमात्मा फिर ध्यान रहे, जिस दिन तुम्हें भरोसा आता है कि मुझे हो सकता अनुभव जैसा नहीं मालूम होता, तुम्हारा स्वत्व हो जाता है, है, उसी दिन पहली दफे बुद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट पौराणिक तुम्हारा स्वभाव हो जाता है। नहीं रह जाते, ऐतिहासिक हो जाते हैं। उसी क्षण सारा इतिहास मधर निर्यात और आयात, साधते हो दोनों के खेल नया हो जाता है, जैसे तुम्हारे लिए फिर से लिखा गया। पहली छनक में निकल चले थे दूर, पलक में पल-पल बढ़ता मेल दफा ऐसे व्यक्तियों पर, जिनके जीवन में परमात्मा की झलक | तुम्हारे खो जाने में दुख, तुम्हारे पा जाने में आज आयी, प्रतिबिंब उतरा, जिनमें किसी तरह परमात्मा की प्रभा | भूमि का मिल जाता है छोर, गगन का मिल जाता है राज प्रगट हुई, तुम्हें भरोसा आता है। जिस दिन तुम्हें अपने पर पर खयाल रखनाभरोसा आता है उसी दिन तुम्हें कृष्ण, महावीर, बुद्ध पर भरोसा मधुर निर्यात और आयात साधते हो दोनों के खेल। आता है।
छनक में निकल चले थे दूर, पलक में पल-पल बढ़ता मेल लोग ईश्वर पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उनका अपने पर एक क्षण तो लगता है, इतने करीब; और एक क्षण लगता है, भरोसा नहीं है। नास्तिक की असली नास्तिकता | इतने दूर। एक क्षण लगता है, हाथ की पहुंच के भीतर; और आत्म-अविश्वास है। वह कहता है, कोई ईश्वर नहीं है। | एक क्षण लगता है, असंभव! बिलकुल असंभव! ऐसा बहुत क्योंकि भीतर जब ईश्वर का पता नहीं चलता, किरण भी नहीं | बार होगा। पता चलती. झलक भी नहीं पता चलती. सपने में भी कोई तरंग तुम्हारे खो जाने में दुख, तुम्हारे पा जाने में आज नहीं लहराती तो ईश्वर हो कैसे सकता है?
भूमि का मिल जाता है छोर, गगन का मिल जाता है राज ईश्वर होता है उस क्षण, जब तुम्हारे भीतर तुम होने लगते हो। तो डरना मत। यह झलक सौभाग्य है। शुभ घड़ी है। लेकिन ध्यान रखना, यह घड़ी कई बार आएगी लेकिन जिनके जीवन में सौभाग्य आता है, उसके साथ-साथ
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