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________________ जिन सूत्र भाग: 2 उतने ही खतरे भी आते हैं। जब तुम्हारे पास कुछ नहीं होता तो सावधान! क्योंकि इस पहली किरण के साथ ही जब अंधेरा खोने को भी कुछ नहीं होता। जब कुछ होता है तो खोने को भी फिर से आएगा तो बहुत गहरा होगा। तुम बहुत तड़फोगे फिर। कुछ होता है। जितना ज्यादा तुम्हारे पास होगा, उतने ही तुम तुम्हारे खो जाने में दुख, तुम्हारे पा जाने में आज खतरे में भी हो; क्योंकि उतना ही खोने को भी तुम्हारे पास है। भूमि का मिल जाता है छोर, गगन का मिल जाता है राज एक युवक छह महीने पहले आया। आने के महीनेभर बाद मधुर निर्यात और आयात, साधते हो दोनों के खेल उसने संन्यास लिया और मुझसे पूछा कि क्या मैं वापस जा छनक में निकल चले थे दूर, पलक में पल-पल बढ़ता मेल सकता हूं अपने घर? मैंने कहा, जा सकते हो। लेकिन वह गया परमात्मा ऐसी बहुत धूप-छांव तुम्हें देगा। परमात्मा बहुत बार नहीं। महीनेभर और रुका। फिर उसने पूछा कि क्या मैं जा करीब और बहुत बार दूर निकल जाएगा। यह छिया-छी का सकता हूं? मैंने कहा कि अब जाना ठीक नहीं। खेल है। ऐसे ही तुम्हें वह मजबूत करता है, बलशाली करता है। वह थोड़ा चौंका। उसने कहा कि महीनेभर पहले आपने कहा | ऐसे ही तुम्हें जीवन देता है। ऐसे ही तुम्हारी परिपक्वता आती है। कि जा सकते हो। अब आप कहते हो, जाना ठीक नहीं, मामला | ऐसे ही मिलकर-खोकर, खोकर-मिलकर, बार-बार धूप-छांव क्या है? क्योंकि मैं तो सोचता था, महीनेभर में मैं और तैयार हो | से गुजारकर तुम्हें पकाता है; परिपक्व करता है। तुम्हें प्रौढ़ता जाऊंगा तो जाने के योग्य हो जाऊंगा। | देता है। तुम्हारे जीवन में एकता आती है। मैंने कहा, महीनेभर पहले जब तुमने पूछा था, तुम्हारे पास | और एक ऐसी घड़ी आती है कि वह मिले तो ठीक, न मिले तो खोने को कुछ भी नहीं था। तो मैंने कहा, जाओ। कोई फर्क नहीं ठीक; हर हालत में तुम प्रसन्न होते हो। अंधेरी रात भी उसी की, पड़ता था। अब तुम्हारे पास कुछ खोने को है। थोड़ा-सा अंकुर जगमगाते सूरज का दिन भी उसी का। जब तुम्हें कुछ भी उसका फूटा है। अब मैं कहता हूं, मत जाओ। अभी रुको। अब तुम्हारे पता नहीं चलता, तब भी तुम जानते हो, वह है। और जब उसका पास कुछ है, जो खो सकता है अभी जाने से। अब थोड़ी देर रुक पता चलता है, तब भी तुम जानते हो, वह है। उस घड़ी जाओ। जरा इसे मजबूत होने दो। जरा इसकी जड़ें गहरी होने धूप-छांव का खेल बंद होता है। दो। अन्यथा तुम इतने दुख में पड़ जाओगे, जितने दुख में तुम अभी तो खतरा आएगा। पूर्व-सावधान कर देना उचित है। पहले भी न थे। आरजुओं में हरारत है, न उम्मीदों में जोश तम्हें पता है? एक गरीब आदमी है. गरीबी उसको भी है। सर्द अब हर गर्मिये-बाजार है तेरे बगैर फिर एक अमीर आदमी है, जिसका दिवाला निकल गया; वह जिंदगी एक मुश्तकिल आजार है तेरे बगैर भी गरीब है। दोनों के पास कुछ भी नहीं है। लेकिन जिसका सांस एक चलती हुई तलवार है तेरे बगैर दिवाला निकल गया है उसकी गरीबी का कोई अंदाज तुम गरीब अभी तो जब खोओगे तो लगेगाआदमी की गरीबी से नहीं लगा सकते। गरीब आदमी क्या खाक सांस एक चलती हुई तलवार है तेरे बगैर गरीब है! जो अमीर ही कभी नहीं रहा, उसे गरीबी का कोई पता जिंदगी एक मुश्तकिल आजार है तेरे बगैर ही नहीं हो सकता। जो अमीर रह चुका है, उसकी गरीबी की। बड़ी कठिनाई होगी, जैसी कभी न हई थी। लेकिन यह केवल पीड़ा बड़ी गहरी है। जिसने वैभव के दिन जाने, वही जानता है, सौभाग्यशालियों को होती है कठिनाई। ऐसा दुर्दिन केवल उन्हें दुर्दिन क्या है। जिसने वैभव के दिन ही नहीं जाने, वह तो दुर्दिन मिलता है, जिन्हें प्रभु की थोड़ी-सी झलक मिलनी शुरू हुई। में भी मस्त चादर ओढ़कर सोता है। कोई दुर्दिन जैसी कोई बात तुम्हारे पैर ठीक जमीन पर पड़ रहे हैं। मगर अभी भटकोगे। ही नहीं। सहज सामान्य जीवन है। इतनी जल्दी कुछ भी नहीं होता। और पाकर जब भटकोगे तो ऐसा ही आंतरिक संपदा के संबंध में भी सच है। बहुत रोओगे। उन आंसुओं में याद रखना। उन आंसुओं में जिन मित्र ने पछा है, उनके जीवन में बड़ी महत्वपूर्ण घटना भरोसे को कायम रखना। घटने के करीब आ रही है. घट रही है। पहली किरण उतरी है। अभी तो भरोसा आसान है। जब कछ ठीक हो रहा होता है तब 3601 Jalil Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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