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________________ जिन सूत्र भाग: 2 कल मैं एक गीत पढ़ता था : जिंदगी से उन्स है, हुस्न से लगाव है धड़कनों में आज भी इश्क का अलाव है दिल अभी बुझा नहीं - इसे लोग दिल का न बुझना कहते हैं। जिंदगी से उन्स है -राग है जीवन से । हुस्न से लगाव है -सौंदर्य के लिए अभी तड़फ है, आकांक्षा है। धड़कनों में आज भी इश्क का अलाव है। और अभी भी धड़कनों में राग की, आसक्ति की आंच है। दिल अभी बुझा नहीं अगर तुम मुझसे पूछो तो इन्हीं कारणों से तुम्हारा दिल जल नहीं पा रहा है। बुझने की तो बात ही दूर है, जला ही नहीं। इन्हीं के कारण तो दिल पर राख पड़ गई है। रंग भर रहा हूं मैं खाक-ए-हयात में आज भी हूं मुनहमिक फिक्रे कायनात में गम अभी लुटा नहीं हर्फे-हक अजीज है, जुल्म नागवार है अहदे-नौ से आज भी अहद अस्तवार है मैं अभी मरा नहीं तुम जिसे जिंदगी कहते हो... तुम जब कहते हो, 'मैं अभी मरा नहीं, तो तुम बड़ी अजीब बातें कह रहे हो। अगर तुम्हारे स्वप्न में अभी भी प्राण अटके हैं तो तुम कहते हो, 'मैं अभी मरा नहीं । दिल अभी बुझा नहीं ।' अगर कामना अभी भी तुम्हें तड़फाती है और वासना के दूर के सुहावने ढोल तुम्हें अभी भी बुलाते हैं तो तुम कहते हो, दिल अभी बुझा नहीं। जहां कुछ भी नहीं है, वहां तुम चित्त से रंग भरते हो। जहां कुछ भी नहीं है, जहां कोरा पर्दा है, वहां तुम कल्पनाओं, वासनाओं, तृष्णाओं के बड़े रंगीले इंद्रधनुष बनाते हो। और कहते हो : मैं अभी मरा नहीं हर्फे-हक अजीज है, जुल्म नागवार है अहदे - नौ से आज भी अहद अस्तवार है मैं अभी मरा नहीं 352 Jain Education International 2010_03 इसी कारण तुम मुर्दा हो । तुम जिसे जीवन कहते हो, उसे समझो मृत्यु। तब मैं जिसे मृत्यु कहता हूं, तुम तत्क्षण समझ जाओगे उसका अर्थ । तुम जिसे जीवन कहते हो, यह बड़ी क्रमिक मृत्यु है। आहिस्ता-आहिस्ता आत्मघात है। यह रोज-रोज, धीमे-धीमे मरते जाना है। जिस दिन तुम यह समझोगे कि यह मृत्यु है, उस दिन पहली बार तुम्हें किसी और जीवन की पुकार सुनाई पड़ेगी – कोई और आह्वान ! उस दिन तुम धार्मिक हुए। उस दिन तुम्हारी आंखें अदृश्य की तरफ उठने लगीं। उस दिन तुम्हारे हाथ में थोड़ा-सा सही, छोटा सही, पतला सही, धागा आया, जिसके सहारे तुम सूरज तक पहुंच सकोगे। तो मैं कहता विरोध नहीं है। गुरु मृत्यु है, गुरु ब्रह्म है; इन दोनों में कोई गुरु इसीलिए ब्रह्म है क्योंकि वह मृत्यु है । गुरु सूली है क्योंकि वह सिंहासन है। एक द्वार से मिटाता है, दूसरे द्वार से बनाता है। एक हाथ से मिटाता चलता है, दूसरे से बनाता चलता है। जो मिटने को राजी हैं, उन्हें बनने का सौभाग्य मिल जाता है। जो मिटने से कतराते हैं, वे बनने से वंचित रह जाते हैं। तीसरा प्रश्न : हे भगवान! सूली ऊपर सेज पिया की किस विध मिलना होय ? For Private & Personal Use Only प्रीतम आन मिलो, नैना नीर झरे, हृदय पीर करे प्रीतम आन मिलो । सूली ऊपर सेज पिया की – सदा से ऐसा ही है। लेकिन सूली हमें दिखाई पड़ती है क्योंकि हम नासमझ हैं। क्योंकि हमने अभी पिया की भाषा नहीं समझी; अभी पिया के प्रतीक हमारे सामने खुले नहीं। अभी हमने अपनी ही भाषा से पिया को भी समझना चाहा है। इसलिए लगता है— सूली ऊपर सेज पिया की। के घबड़ाहट होती है। कौन नहीं घबड़ाएगा मरने से ? गुरु पास आकर डर लगता है, बेचैनी होती है। एक युवती परसों सांझ मेरे पास आयी। कैलिफोर्निया से यात्रा करके आयी है। और आकर बोली कि मैं तत्क्षण वापिस लौट www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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