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________________ पास आए हो, वह तुम्हारी चिंता न करे। उसके लिए तो आत्यंतिक बात ही महत्वपूर्ण है। वह तो तुम्हारे भीतर मोक्ष को लाना चाहता है। और स्वभावतः तुम कैसे मोक्ष की कामना कर सकते हो ? संसार को ही तुमने जाना है। वहां भी सफलता नहीं जानी । किसने जानी ! सिकंदर भी असफल होता है। संसार में असफलता ही हाथ लगती है। तो तुम वही सफलता पाने के लिए आ गए हो अगर, तो केवल असदगुरु से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा, जहां गंडा - ताबीज मिलता हो, मदारीगिरी से भभूत बांटी जाती हो, जहां तुम्हें इस बात का भरोसा मिलता हो कि ठीक, यहां कुछ चमत्कार हो सकता है; जहां तुम्हारा मरता -बुझता अहंकार प्रज्वलित हो उठे; जहां थोड़ा कोई तुम्हारी बुझती ज्योति को उकसा दे । मगर वह ज्योति संसार की है। वही तो नर्क की ज्योति है। वही तो अंधकार है। उसी ने तो तुम्हें पीड़ा दी है, सताया है। उसी से बिंधे तो तुम पड़े हो । वही तो तुम्हारी छाती में लगा विषाक्त तीर है | सदगुरु उसे खींचेगा। उसके खींचने में ही तुम मरोगे। | सदगुरु तो मृत्यु है तुम्हारी; जैसे तुम हो । यद्यपि उसी मृत्यु के बाद तुम्हें पहली दफा उसका दर्शन होता है, जो वस्तुतः तुम हो। धोखा मरता है, सत्य तो कभी मरता नहीं । असत्य मरता है, सत्य की तो कोई मृत्यु नहीं । आग में हम सोने को डाल देते हैं, कूड़ा-कर्कट जल जाता है, सोना कुंदन होकर बाहर आ जाता है। गुरु आग है, अग्नि है। और इसीलिए गुरु ब्रह्म है। क्योंकि वहीं से तुम मिटते हो। और जहां तुमने मिटना सीख लिया, वहीं तुमने ब्रह्म होना सीख लिया। गुरु सूली है। लेकिन उसी सूली पर लटककर तुम्हें पहली दफा पता चलता है कि जो सूली पर मर गया वह मैं नहीं था । इधर सूली लगी, उधर सिंहासन मिला। इस तरफ सूली है, उस तरफ सिंहासन है। तुम्हें सूली भर दिखाई पड़ती है। तुमने जीसस के चित्र देखे होंगे; सूली को अपने कंधे पर ढोते हुए, गोगोथा की पहाड़ी पर वे जा रहे हैं। सूली ठोंक दी गई जमीन में, उन्हें सूली पर लटका दिया गया है। लेकिन ये अधूरे चित्र हैं। ये चित्र जीसस की नजर से नहीं बनाए गए। ये जिन लोगों ने देखा होगा गोलगोथा की सड़क पर जीसस को सूली ले Jain Education International 2010_03 मुक्ति द्वंद्वातीत है जाते, उनकी स्मृतियां हैं। यह चित्रकार ने बाहर से देखकर बनाया है। जीसस से तो पूछो। जीसस सूली ढो रहे हैं ? नहीं, जीसस तो अपने सिंहासन की तैयारी कर रहे हैं। यह सूली तो सिंहासन की सीढ़ी बनेगी। इस तरफ सूली है, उस तरफ सिंहासन है। दृश्य में सूली है, अदृश्य में सिंहासन है। रूप में सूली है, अरूप में सिंहासन है। आकार में सूली है, आकार की सूली है, निराकार में सिंहासन है, निराकार का सिंहासन है। तो जिन्होंने जीसस को केवल सूली ढोते देखा वे जीसस को देख ही नहीं पाए। जिस दिन तुम्हें जीसस की सूली में सिंहासन दिखाई पड़ जाए उस दिन तुम अर्थ समझोगे । उस दिन तुम्हें पहली दफा सूली सूली न लगेगी। सूली परम कृतज्ञता का कारण बन जाएगी। गुरु के चरणों में धन्यवाद सदा के लिए रहता है क्योंकि यही है, जिसने मिटने का बोध दिया। न मिटते, न हो सकते। यही है, जिसने मिटाया। मिटाया तो बनने की शुरुआत हुई । झाड़ी धूल, तो दर्पण निखरा । लेकिन तुम जिसे जिंदगी कहते हो, गुरु उसे जिंदगी नहीं कहता । और तुम जिसे मृत्यु कहते हो, गुरु उसे मृत्यु नहीं कहता । अलग भाषाएं हैं, अलग आयाम हैं। दो लोक बड़े भिन्न-भिन्न हैं। गुरु कुछ और भाषा बोलता है। वह तुम्हारे लिए अटपटी है। मध्ययुग में भारत में उस भाषा का नाम ही अलग हो गया – सधुक्कड़ी; उलट बांसुरी । साधुओं की भाषा । उल्टी भाषा । जहां मृत्यु जीवन का पर्याय है। और जहां सूली सिंहासन का पर्याय है। तुम्हारे भाषाकोश में कुछ और लिखा है। गुरु के पास आकर तुम्हें नई भाषा सीखनी होगी। कष्टपूर्ण है। क्योंकि तुमने अपनी भाषा को खूब कंठस्थ कर लिया है। वह तुम्हारे रोएं - रोएं में समा गई है। तुम जब मुझे सुनते हो, तब तुम मुझे थोड़े ही सुनते हो। तुम तत्क्षण उसका भाषांतर करते हो। तुम उसका अनुवाद करते हो। इधर मैं कुछ कहता हूं, तुम तत्क्षण अपनी भाषा में उसका अनुवाद कर लेते हो, भाषांतर कर लेते हो । जब तुम यह छोड़ोगे, तभी तुम मेरे पास आओगे। तुम्हारी भाषा मेरे और तुम्हारे बीच बाधा है। For Private & Personal Use Only 351 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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