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________________ जिन सूत्र भाग: 2 यह अभी घट सकता है। और अगर अभी नहीं घट सकता तो कभी नहीं घट सकता। और जब भी घटेगा, अभी घटेगा, वर्तमान के क्षण में घटेगा। इसलिए महावीर कहते हैं, जो महर्षि हैं, जो मनीषी हैं, वे बीत गए अतीत की चिंता नहीं करते। अनागत-न आए हुए भविष्य का विचार नहीं करते। वे शुद्ध वर्तमान में जीते हैं। वे वर्तमान को देखते हैं, वर्तमान का पश्ययन करते हैं, वर्तमान का दर्शन करते हैं। एक पहिया है संसार का अतीत में, एक पहिया है भविष्य में । यह संसार की गाड़ी बड़ी अदभुत है, बड़ी विचित्र है । एक पहिया है वहां, जो अब है नहीं । और एक पहिया है वहां, जो अभी हुआ नहीं। ऐसे दो शून्यों में संसार चल रहा है। और जो है, वह अभी इन दोनों के बीच है; वह मध्य में है। बुद्ध ने तो अपने मार्ग को मज्झिम निकाय कहा। सिर्फ इसीलिए कहा कि जो अतियों से बच गया और मध्य में खड़ा हो गया, वही उपलब्ध हो जाता है। दूसरा प्रश्न : कभी आप कहते हैं, गुरु साक्षात ब्रह्म है, और कभी कहते हैं, गुरु साक्षात मृत्यु है । क्या वह एक साथ, एक समय में दोनों है ? कृपा करके कहें। लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं। सुना कल महावीर का सूत्र ! - आशारहितता को जो उपलब्ध हो जाए...। तुम आते हो शायद निराशा मिटाने । तुम आते हो यहां, कि थोड़ा बल मिल जाए और संसार में जाकर फिर तुम जूझ पड़ो । | शायद अभी हार गए थे। शायद अभी जीत नहीं पाते थे। शायद अभी बलशाली लोगों से संघर्ष हो रहा था। तुम कमजोर पड़ते थे। और बल लेकर, और शक्ति लेकर, और ऊर्जा लेकर उतर जाओ जीवन के युद्ध में। लेकिन तब तुम गलत जगह आ गए। अगर तुम गुरु के पास गए तो गलत जगह गए। इसके लिए तो तुम्हें कोई झूठा गुरु चाहिए । इसलिए झूठे गुरु चलते हैं। झूठे सिक्के इसीलिए चलते हैं क्योंकि तुम जो चाहते हो, उसे वे पूरा करने का आश्वासन देते हैं। वह कभी पूरा होता है या नहीं, यह सवाल नहीं है। आश्वासन काफी है; उसमें ही तुम लुटते हो। फिर जो शेष बचता है, वह तो कुछ ऐसा है, जिसका शिष्य को पता ही नहीं था । वह तो मरने के बाद ही पता चलता है। अहंकार की मृत्यु के बाद ही आत्मा का बोध होता है। इसे ध्यान रखना, यह सदगुरु की पहचान है— जो तुमसे आशा छीन ले; जो तुमसे संकल्प छीन ले । यह सदगुरु की शायद शिष्य आता है अपने प्रयोजन । वह शायद पहचान है - जो तुम्हें मिटा दे। तुम भला किसी कारण से उसके गुरु मृत्यु है, इसीलिए गुरु ब्रह्म है । उसमें मृत्यु घट सकती है, इसीलिए महाजीवन का सूत्रपात हो सकता है। है । पुराने हिंदू शास्त्र कहते हैं, 'आचार्यो मृत्युः ।' आचार्य मृत्यु । गुरु मृत्यु है । क्या अर्थ है उनका ? क्या प्रयोजन है ? शिष्य जब गुरु के पास आता है तो जैसा है, वैसा तो उसे मरना होगा। और जैसा होना चाहिए, वैसा होना होगा। जब शिष्य गुरु के पास आता है तो बीमारियों का जोड़ है, उपाधियों का जोड़ है। गुरु की औषधि बीमारियों को तो मिटा देगी। लेकिन जैसा शिष्य आता है अहंकार से भरपूर, वह अहंकार तो सिर्फ बीमारियों का | बंडल है । जब बीमारियां हटती हैं, वह अहंकार भी मर जाता है। वह उनके बिना जी भी नहीं सकता । महाजीवन की तलाश में आता है। वह शायद सोचकर आता भी नहीं कि गुरु के पास मरना होगा, मिटना होगा। धीरे-धीरे, इंच-इंच गलना होगा, बिखरना होगा। वह तो किसी लोभ से आया था । वह तो शायद संसार की वासना को ही और थोड़ी गति मिल जाए, और थोड़ी शक्ति मिल जाए, कामना के जगत में और थोड़ा बलशाली हो जाऊं, जीवन के संघर्ष में और थोड़ा संकल्प मिल जाए इसलिए आया था। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, संकल्प-शक्ति की कमी है --विल पावर। आप कृपा करें, संकल्प शक्ति दे दें। मैं पूछता हूं, संकल्प शक्ति का करोगे क्या ? संकल्प - शक्ति का उपयोग संघर्ष में है, संसार में है; मोक्ष में तो कोई भी नहीं । अशांत होना हो तो संकल्प शक्ति की जरूरत है। शांत होना हो तो विसर्जित करो। जो थोड़ी-बहुत है, वह भी विसर्जित करो। उसे भी डाल आओ गंगा में । उससे भी छुटकारा लो । संकल्प तो बाधा बनेगा, समर्पण मार्ग है। 350 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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