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________________ है, विचार में चल रहा है, मन में चल रहा है-ऐसे गड़ा है। गाड़ी बस चलती मालूम पड़ती है। कभी छोटे-छोटे बच्चे, जो साइकिल चलाना नहीं जानते, साइकिल पर सवार हो जाते हैं— खड़ी साइकिल पर, स्टैंड पर खड़ी साइकिल पर । जोर से पैडल मारते हैं और बड़े प्रफुल्लित होते हैं क्योंकि जब चाक चलने लगता है—वह गाड़ी है। गड़ी है, मगर बच्चा बड़ा प्रसन्न हो रहा है। जितने जोर से पैडल मारता है, जितने जोर से चाक घूमता है— उसकी किलकारी सुनो ! ऐसी ही किलकारी दे रहे हैं राजनेता, धनिक, पद-प्रतिष्ठा को प्राप्त लोग। साइकिल पर चढ़े हैं। साइकिल स्टैंड पर खड़ी है । स्टैंड यानी गड़ी है। मगर चाक जोर से चल रहा है। पैडल काफी मार रहे हैं, पसीना पसीना हुए जा रहे हैं। एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी कर रहे हैं, कि किसकी गाड़ी तेज चल रही है। कौन आगे जा रहा है! किसको पीछे छोड़ दिया है ! निर्विचार का आकाश मोक्ष है। संसार के विरोध में नहीं है मोक्ष, संसार का अभाव है मोक्ष | इसे तुम जितने गहरे में बांधकर रख सको, रख लेना। इस पर गांठ बांध लेना। क्योंकि अगर यह तुम्हें खयाल न रहा तो बहुत डर है कि तुम्हारा संन्यास भी संसार का विरोध बन जाए। विरोध में उतर जाना बड़ा आसान है। मन की सारी राजनीति द्वंद्व की है। इसलिए विरोध तो बिलकुल सुगम है, सरल है, ढलान है। जैसे पहाड़ से कोई नीचे की तरफ उतर रहा है, धीमे भी चलना चाहे तो चल नहीं सकता; दौड़ना पड़ता है। ढलान है । कोई शक्ति नहीं लगती। अगर कार पहाड़ के नीचे उतार रहे हो तो पेट्रोल की भी जरूरत नहीं पड़ती। बंद कर दो इंजन, गाड़ी अपने आप ढलकती ढलकती चली आती है। मन की वृत्ति द्वंद्व की है, संघर्ष की है। पहले लड़ रहे थे धन के लिए, फिर लड़ने लगे ध्यान के लिए। मगर लड़ाई जारी रही । ये सब किलकारियां एक दिन व्यर्थ सिद्ध होती हैं, जब होश पहले लड़ते थे जीवन के लिए, फिर लड़ने लगे मोक्ष के लिए। आता है कि हम जिसको चला रहे हैं वह गड़ा है। लड़ाई जारी रही। रोग अपनी जगह रहा। नाम बदला, लेबल बदला, लेकिन भीतर की विषय-वस्तु वही की वही रही। तो इसे स्मरण रखना। कम से कम मेरे संन्यासी — ठीक से स्मरण रखना कि संसार का विरोध नहीं है संन्यास, संसार की समझ है संन्यास । और समझ के लिए भागना उचित नहीं है। क्योंकि जिससे भागोगे उसे समझोगे कैसे? जिसे समझना हो, वहीं खड़े रहना। जिसे समझना हो, उसका ठीक से अवलोकन करना । ठीक से निरीक्षण करना, ठीक से साक्षी बनना । एक-एक पर्दा उठाकर देख लेना । सब घूंघट उघाड़-उघाड़कर देख लेना । कुछ भी छुपा न रह जाए। उसी समझ में मोक्ष का आविर्भाव होगा। जैसे-जैसे प्रज्ञा बढ़ेगी, समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे तुम पाओगे, तुम मुक्त होने लगे। आखिरी बात : मोक्ष परलोक में नहीं है। वह भी द्वंद्व है - इस लोक का, उस लोक का; पृथ्वी का, आकाश का । मोक्ष परलोक में नहीं है। मोक्ष का लोकों से कोई संबंध नहीं है। मोक्ष है तुम्हारी आत्मा की दशा । मोक्ष का स्थान - समय से कोई संबंध नहीं है। मोक्ष का संबंध है, तुम्हारा अपने में लीन हो जाना। अपने में डूब जाना । अपने से भरपूर होकर अपने रस में मग्न हो जाना। संसार चलता हुआ मालूम पड़ता है और चलता नहीं। यहां कोई विकास नहीं है। गति तो बहुत है, प्रगति बिलकुल नहीं है। चलना तो बहुत है, पहुंचना बिलकुल नहीं है। यहां तो आश्चर्य है कि तुम बहुत चलकर अगर अपनी जगह पर भी खड़े रह जाओ तो भी बहुत चमत्कार है। डर तो यह है कि तुम जहां अपने को पाये थे, उससे भी पिछड़ जाओगे। दौड़-दौड़कर अपनी जगह पर भी बने रहे तो काफी है। संसार के लिए तो दो चाक चाहिए। झूठी ही सही गाड़ी, माया की ही सही, लेकिन है तो गाड़ी। दो चाक चाहिए। इसलिए जीवन में हम हर जगह जरा खोजबीन करेंगे तो हम पाएंगे, हर चाक के पीछे दूसरा चाक छिपा है। सफलता के पीछे विफलता छिपी है। सुख के पीछे दुख छिपा है। दिन के पीछे रात छिपी है। पुण्य के पीछे पाप छिपा है। हंसी के पीछे रुदन छिपा है। यहां तुम एक चीज तो पाओगे ही नहीं। यहां सब चीजें जोड़ी से हैं। संसार जोड़ी से जीता है। मोक्ष का अर्थ है, यह दो का | विभाजन गया। यह दो में खंडित होने की प्रक्रिया समाप्त हुई। यह जो लौ बायें कंपती थी, दायें कंपती थी, अब कंपती नहीं, अब मध्य में खड़ी हो गई। अब इसने कंपन छोड़ा, चिंतन छोड़ा। विचार की तरंगें अब नहीं आतीं। अब निर्विचार | Jain Education International 2010_03 मुक्ति द्वंद्वातीत हैं For Private & Personal Use Only 349 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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