SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मक्ति द्वंद्वातीत है जाना चाहती हूं। क्योंकि पहली तो बात यही मेरी समझ में नहीं छोड़कर तो देखो। तुम पाओगे, यमदूत विदा हो गए। तुम स्यों? और अब आ गई हूं तो मुझे डर लगता पाओगे, न कोई भैंसे हैं, न काली सूरतोंवाले यमदूत हैं; तुम है कि जिंदा अब मैं लौट न पाऊंगी। वह रोने लगी। उसने कहा अचानक पाओगे, परमात्मा हाथ फैलाए खड़ा है। कि मेरा बच्चा है, मेरा पति है। मुझे जाने दें। | वही परमात्मा तुम्हारी जिंदगी की अतिशय पकड़ के कारण उसे सूली दिखाई पड़ी है। लेकिन उस सूली में सिंहासन की यमदूत मालूम होता है। तुम अगर राजी हो, तुम अगर उसके थोड़ी-सी झलक भी है, इसीलिए खिंची चली आयी है—अपने साथ चल पड़ने को तत्पर हो, तुम तैयार हो, इधर मौत आयी बावजूद। उससे मैंने कहा, अब लौटना मुश्किल है। अब तो और तुम उठ खड़े हुए; और तुमने कहा, मैं तैयार हूं। कहां कठिन है। अब तो एक ही उपाय है, मरकर ही लौट। वह बहुत चलूं? किस तरफ चलूं? कौन-सी दिशा में यात्रा करनी है? मैं घबड़ा गई। क्योंकि अभी नई है और उसे मेरी भाषा से अभी तेरी प्रतीक्षा ही करता था। ठीक-ठीक पहचान नहीं। उसने कहा, मरकर लौट? क्या | तुम अचानक पाओगे, यमदूत विदा हो गए। वे यमदूत तुम्हारी मतलब आपका? मैंने कहा, नई होकर लौट। तब वह थोड़ी व्याख्या के कारण थे। तुमने एक दुश्मनी बांध रखी थी। जीवन आश्वस्त हुई। से लगाव बनाया था और मृत्यु से द्वेष किया था। तुमने द्वेष 'सूली ऊपर सेज पिया की!' गिराया मृत्यु से, जीवन से लगाव छोड़ा, तत्क्षण तुम पाओगे, जो सूली दिखाई पड़ती है; है तो सेज ही। है तो पिया का आमंत्रण अंधेरे की तरह आया था वह ज्योतिर्मय हो उठा है। तब तुम्हें ही। लेकिन जो मरने को राजी हैं, वही उसके मिलने के हकदार यमदत न दिखाई पडेंगे. शायद कष्ण की बासरी सनाई पडे. या हो पाते हैं। इसलिए सूली ऊपर सेज पिया की। | बुद्ध की परम शांत प्रतिमा का आविर्भाव हो, या महावीर का | अब डरो मत। हिम्मत करो। ऐसे भी मिटोगे। मरना तो होगा | मौन तुम्हें घेर ले, या नाचती हुई गौरांग की प्रतिमा उठे। लेकिन ही। एक ही बात सुनिश्चित है इस जगत में, वह मृत्यु। और एक बात तय है, कुछ घटेगा जो अनूठा है, अदभुत है, सब तो अनिश्चित है। हो न हो; संयोग की बात है। एक बात | आश्चर्यजनक है, अवाक कर देनेवाला है। कुछ दुखद नहीं सुनिश्चित है-मृत्यु। बड़ा अदभुत जीवन है। जीवन ऐसा | घटेगा, कुछ घटेगा जो महासुख जैसा है, स्वर्गीय है। पर देखने जिसमें सिर्फ एक बात निश्चित है, वह मरना। बाकी सब के, सोचने के, व्याख्या के ढंग बदलो। अनिश्चित है। जो होगा ही, उसे स्वेच्छा से वरण करो। बस, 'सूली ऊपर सेज पिया की, किस विध मिलना होय।' इतना ही फर्क है समाधि में और मृत्यु में। जो जबर्दस्ती मारा और जब एक दफा सूली दिखाई पड़ती है तो फिर सवाल उठता जाता है, तब मृत्यु। मृत्यु हमारी समाधि की व्याख्या है क्योंकि है, किस विध मिलना होय? क्योंकि वह सूली अटकाती मालम हम राजी न थे मरने को। उसी व्याख्या के कारण हम चूक गए | पड़ती है। सूली को कैसे पार करें? एक अभूतपूर्व घटना से। तुम बिना मरे परमात्मा में लीन होना चाहते हो। यह नहीं हो बहुत बार तुम मरे हो। लेकिन हर बार झिझकते, लड़ते, | सकता। यह तो ऐसा हुआ कि गंगा कहे, मैं बिना उतरे सागर में झगडते. संघर्ष करते, मजबरी में, विवश, असहाय मरे हो। लीन होना चाहती हैं। बंद कहे. मैं बिना उतरे सागर में. सागर इसीलिए तो हम कहते हैं, यमदूत आते हैं और खींचते हैं। कोई होना चाहती हूं। यह तो नहीं हो सकता। यह तो जीवन के गणित यमदूत नहीं आते। तुम इतने जोर से पकड़ते हो कि मौत लगती के विपरीत है। है, खींच रही है। भैंसों पर बैठकर आते हैं यमदूत। बड़ी डरावनी बूंद को खोना होगा। गंगा को उतरना होगा। सूरत! खींचते हैं, जबर्दस्ती करते हैं। सागर मिलेगा, बेशर्त मिलेगा, पूरा मिलेगा, लेकिन उतरे बिना बड़ी गलत कहानियां हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं करता। तम | कभी नहीं मिला है. कभी नहीं मिलेगा। जिंदगी को जबर्दस्ती पकड़ते हो। इसलिए जब जिंदगी हाथ से सूली को देखना बंद करो तो दूसरा सवाल उठना बंद हो छूटने लगती है, तुम्हें लगता है जबर्दस्ती हो रही है। तुम अपने से जाए-किस विधि मिलना होय? 353 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy