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________________ जिन सत्र भाग: 2 पीछे तो बड़ा आसान हो जाता है। सोचते हैं, आदमी भला होगा; भरोसे-योग्य मालूम होता है; मैं एक कहानी पढ़ रहा था। न्यूयार्क के बड़े चर्च में, सबसे बड़े धार्मिक है। दुकान पर भी बैठे हो अगर गीता लेकर तो ग्राहक चर्च में, जो कि दुनिया का सबसे ज्यादा संपत्तिशाली चर्च है, तुमसे ज्यादा मोल-भाव नहीं करेगा। प्रधान पुरोहित अपने प्रवचन की तैयारी कर रहा है कि उसके एक इसीलिए तो लोग चंदन-तिलक लगाकर बैठते हैं। राम-राम शागिर्द ने दौड़कर उससे कहा कि सुनो, क्या कर रहे हो? कौन बोलते रहते हैं दुकान पर! आया है, पीछे तो देखो! देखा तो खुद जीसस! वेदी के सामने | धार्मिक आदमी को दूसरों को लूटने में सुविधा हो जाती है, खड़े हैं। प्रधान पुरोहित भी घबड़ाया। ऐसा कभी हुआ न था। आसानी हो जाती है। लाभ ही लाभ है। मेरी किताब लेकर तम जीसस को गये दो हजार साल हो गये। यह कौन सज्जन आ गये बैठोगे तो हानि ही हानि है। किसी ने देख लिया कि अरे, तो तुम हैं! बिलकुल जीसस-जैसे मालूम पड़ते हैं! बड़ा मुश्किल है, भी उलझ गये! तो तुम पर भी भरोसा गया! कहें इनसे कुछ कि न कहें! शागिर्द ने पूछा कि क्या करूं, कुछ | संन्यास, अभी मेरे साथ संन्यास, दुस्साहस है! लेकिन आज्ञा? तो बड़े पुरोहित ने कहा एक काम कर, कि वह जो दान | धन्यभागी हैं वे जो दुस्साहस कर लेते हैं! क्योंकि जो खोने को की पेटी है, उस पर बैठ जा। यह आदमी पता नहीं किस तरह का राजी नहीं, वह पा न सकेगा। जो सब खोने को राजी है, वही सबहै, कौन है! लगता जीसस-जैसा है, लेकिन पेटी न ले भागे! पाने का मालिक होता है। जो मिटने को राजी है, परमात्मा उसी दान की पेटी पर बैठ जा और व्यस्त दिखने की कोशिश कर। को भर देता है, पूरा कर देता है। तुम खाली तो होओ, तुम जगह इसकी तरफ ध्यान मत दे। | तो बनाओ-प्रभु आएगा। अगर जीसस चर्च में आज आ जाएं तो परोहित को अपनी प्रतिष्ठा, सम्मान, धन बचाने की फिकर होगी कि यह आदमी दूसरा प्रश्न: कल आपने कहा कि आंख आक्रामक होती है। कहां भीतर आ गया! लेकिन आपकी आंखों में तो मुझे प्रेम का सागर दिखायी देता है कृष्ण की तुम बड़ी पूजा करते हो; लेकिन कभी सोचा कि | और जी करता है कि उन्हें निहारता ही रहूं। कृपया बताएं कि कृष्ण तुम्हारे द्वार पर आ जाएं मोर-मुकुट बांधे, बांसुरी बजाने क्या कान की तरह आंख को भी ग्राहक बनाया जा सकता है? लगें, तो तुम पुलिस में खबर करोगे! तुम घबड़ा जाओगे! मरे हुए पैगंबरों की पूजा बड़ी आसान है, क्योंकि उसमें कुछ | मेरी आंखों में तुम्हें प्रेम का सागर दिखायी पड़ सकता है। भी तो लगता नहीं। कुछ भी लगता नहीं। कुछ दांव नहीं। कुछ | क्योंकि मैं तुम्हें नहीं देख रहा हूं, तुम्हारे भीतर जो छिपा है उसे जोखिम नहीं। लाभ ही लाभ है। जीवित पैगंबर के साथ खड़े देख रहा हूं। मैं तुम्हें देख ही नहीं रहा हूं। मैं तुम्हारी संभावना को होने में हानि ही हानि है, लाभ कहां? | देख रहा हूं। मैं बीज को नहीं देख रहा हूं-मैं उन फूलों को देख मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, अगर हम संन्यास लें तो | रहा हूं जो कभी खिलेंगे, खिल सकते हैं। मैं तुम्हारे आर-पार लाभ क्या होगा? मैं उनसे कहता हूं, कहीं और! तुम कहीं और देख रहा हूं। लेकिन यह देखना तभी संभव है जब कोई स्वयं को लेना, यहां तो हानि होगी। यहां तो जो तुम्हारे पास है वह भी खो देख लिया हो; उसके पहले संभव नहीं है। स्वयं को जानने के जाएगा। यहां तो शून्यता मिलेगी, रिक्तता मिलेगी। यहां तो जो | बाद तो सभी चीजें अनाक्रामक हो जाती हैं। स्वयं को है वह खो जाएगा। तुम भी खो जाओगे। मिटना हो तो यहां | बाद तो हिंसा बच ही नहीं सकती। स्वयं को जाननेवाला तो सब आना। लाभ की बात, तो कहीं और! कहीं, जहां जीवन खो भांति हिंसा से शून्य हो जाता है। लेकिन यह तो स्वयं को जानने चुका है। कहीं, जहां केवल लकीरें रह गयी हैं। पिटी हुई लकीरें | के बाद घटेगा। अभी तो तुम्हें चुनाव करना होगा। अभी तो तुम्हें रह गयी हैं—मुर्दा लकीरें, मुर्दा शास्त्र। वहां कोई जोखिम नहीं | अपने व्यक्तित्व में वे बातें चुननी होंगी जो कम से कम आक्रामक है, लाभ ही लाभ है। हैं। और एक-एक कदम यात्रा करनी होगी, एक-एक सीढ़ी लोग तुम्हें गीता पढ़ते देख लें तो लाभ ही लाभ है। लोग चढ़नी होगी। आंखें भी अनाक्रामक हो जाती हैं। सारा व्यक्तित्व 26 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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