SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भागः2 कल्पना भी नहीं कर सकते। तब तुमने एक सहारा लिया। तब कुछ ऐसा है कि हजार बुद्धिमत्ताएं इस पर निछावर की जा सकती तुमने कोई हाथ पकड़े। तब तुम्हारे जीवन में एक भरोसा आया। हैं। साधना तो तुम भी कर रहे हो, लेकिन संन्यासी ने कुछ गहन मैं एक बड़े वैज्ञानिक की जीवन-कथा पढ़ता था। में प्रतिज्ञा जगायी है। वनस्पतिशास्त्री हुआ बड़ा। वह एक पहाड़ की कंदरा में बैठे हैं तेरे दर पेकछ करके उठेंगे खिलनेवाले फूलों का अध्ययन करना चाहता था, लेकिन उन या वस्ल ही हो जाएगा या मरके उठेंगे फूलों तक पहुंचने का कोई उपाय न था। वह बड़ी गहरी उसने जीवन को दांव पर लगाने की हिम्मत की है। संन्यासी खाई-खड्डु में थे। वैसे फूल कहीं और खिलते भी न थे। कोई जुआरी है। तुम होशियार हो। तुम दुकानदार हो। उपाय न देखकर उसने अपने छोटे बेटे को रस्सी में बांधा, कमर मुझे सुनकर तुमने जो पाया है, वह कुछ भी नहीं है-उसके से रस्सी बांधी और उसे उस खड्ड में लटकाया। और उससे कहा मुकाबले जो तुम मेरे पास आकर पाओगे। जो तुमने बुद्धि से कि तू कुछ फूल उखाड़ लाना। छोटा बेटा लटका। वह बड़ी सुनकर पाया है, वह तो भोजन की मेज से गिर गये टुकड़े हैं। खुशी से लटका। उसने तो खेल समझा। और जब बाप लटका भिखमंगा ही तुमने रहना तय किया है-बात और! संन्यासी रहा हो, तो बेटे को क्या फिकिर! वह तो बड़ा आनंदित हुआ। | मेरा अतिथि है। तुम बाहर-बाहर रहोगे। नहीं कि मैंने निमंत्रण, उसने तो नीचे जाकर फूल भी इकट्ठे कर लिये; लेकिन बाप के नहीं भेजा था; तुमने निमंत्रण स्वीकार न किया। तुमने हजार हाथ-पैर कंप रहे थे। भेजा तो है बेटे को, लेकिन यह खतरनाक | बहाने उठाए। तुमने कहा आते हैं, अभी और काम हैं। काम है। लौटेगा जिंदा? उसने ऊपर से चिल्लाकर पूछा, कोई __ जीसस ने एक कहानी कही है कि एक सम्राट की बेटी का तकलीफ तो नहीं है? कोई घबड़ाहट तो तुझे नहीं हो रही है? | विवाह था और उसने एक हजार देश के प्रतिष्ठिततम लोगों को उसने कहा घबड़ाहट कैसी! जब रस्सी मेरे बाप के हाथ में है, तो निमंत्रण भेजे। लेकिन किसी ने कहा कि अभी तो फसल कटने घबड़ाहट कैसी? का समय है और मैं न आ सकूँगा, क्षमा चाहता हूं। और किसी बाप घबड़ा रहा है, डर रहा है; क्योंकि यात्रा तो जोखिम की ने कहा कि अदालत में मुकदमा है और मैं क्षमा चाहता हूं। और | है। अब इस बेटे के भीतर जो भरोसा है, वह अगर न हो, तो किसी ने कुछ और, और किसी ने कछ और...। जब उसके खतरा हो सकता है। घबड़ाहट ही खतरा पैदा कर देती है। संदेशवाहक वापिस लौटे हैं तो उन्होंने कहा कि बहुत-से अब यह बड़े मजे की बात है, बड़ा दुष्ट-चक्र है—घबड़ाहट मेहमानों ने बहुत-से बहाने बताए, वे न आ सकेंगे। के कारण तुम संन्यास नहीं लेते। डर-संसार का, समाज का, तो सम्राट ने कहा, फिर तुम रास्तों पर जाओ और जो भी आने प्रतिष्ठा का। डर के कारण तुम अकेले-अकेले चलते हो। को राजी हो, उसे बुला लाओ। अब निमंत्रण की फिकिर छोड़ो, अकेले के कारण तुम और भी डर की स्थिति पैदा कर रहे हो। क्योंकि मेरा राजमहल खाली न रहे। मेरी बेटी का विवाह है। | और कछ जीवन की सूक्ष्मतम घटनाएं हैं, हृदय के कुछ राज राजमहल में भीड़ हो। जो भी राह पर मिले। अब तुम मेरे और रहस्य, जो भरोसे से ही खुलते हैं, श्रद्धा से खुलते हैं। निमंत्रण की फिकिर मत करना। जो आने को राजी हो, उसको तो तुम साधना कर रहे हो—वह बुद्धि से है। जिसने संन्यास बुला लाना। लिया, वह हृदय में उतरा; उसने बद्धि को एक तरफ रखा। आए मेहमान। भिखमंगे भी आए। गरीब भी आए। उसने कहा अब सुनेंगे हृदय की, अब गुनेंगे प्रेम की। निश्चित | अशिक्षित भी आए। जिनको निमंत्रण न भेजा गया था, वे भी ही प्रेम अंधा है; लेकिन प्रेम के अंधेपन में ऐसी आंखें हैं कि आए। और जीसस ने कहा है, यह कहानी घटी हो या न घटी हो, सदियों तक बुद्धिमानी में जीओ तो भी उन्हें तुम पा न सकोगे। क्योंकि सम्राटों के निमंत्रण में लोग कभी इनकार नहीं करते, प्रेमी पागल है। लेकिन परमात्मा के निमंत्रण के साथ रोज ही ऐसा होता है। इसलिए जिन्होंने संन्यास नहीं लिया है, वे सोचते हैं कि निमंत्रण तो मैंने तुम्हें भेज दिया है। तुम मेरी शिकायत न कर संन्यासी पागल है। ठीक ही सोचते हैं। लेकिन यह पागलपन | सकोगे। मैंने तो बुलावा दे दिया है। अब तुमने कोई बहाना Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy