________________
गरुहेद्वार
परंपरा में अरिहंत कहा है, किसी परंपरा में तीर्थकर, किसी परंपरा रही है, जब लोग हिम्मत से घोषणा करें भगवत्ता की। में पैगंबर, किसी परंपरा में गुरु, कोई फर्क नहीं पड़ता, शब्दों का | क्योंकि जब कोई तुमसे कहता है मैं भगवान हूं...अगर वह ही फर्क है। लेकिन हम शब्दों से बंध जाते हैं। सिक्ख है, तो जो | यह कहता हो कि मैं भगवान हूं और तुम भगवान नहीं हो, तब तो उसने सुना है उससे बंध गया है। हिंदू है, तो बंध गया है; जैन | वह तुम्हारा दुश्मन है; और अगर वह इसलिए कहता हो कि मैं | है, तो बंध गया है। हम सब सने हए शब्दों से बंध जाते हैं। और भगवान है. क्योंकि तम भी भगवान हो: वह इसलिए घोषणा फिर शब्दों के कारण सत्यों को देखने में अड़चन हो जाती है। करता हो कि मैं भगवान हूं, ताकि तुम्हें भी याद आये तुम्हारे
'नानकदेव भी जाग्रतपुरुष थे, लेकिन उन्होंने कभी नहीं कहा भगवान होने की...देखो मेरी तरफ, अगर मैं भगवान हो सकता कि मैं भगवान हूं।' उन्हें अर्जुन न मिला होगा। क्योंकि मैं हूं, तो तुम क्यों नहीं हो सकते, कोई भी कारण नहीं, कोई भगवान हूं, यह कहने के लिए कोई सुननेवाला चाहिए। कोई रुकावट नहीं; ठीक तुम जैसा हूं मैं, अगर मैं भगवान हो सकता समझनेवाला चाहिए। कोई आत्यंतिक प्रेम से सुननेवाला | हूं, तो तुम क्यों नहीं हो सकते? हो सकते हो। अगर यह फूल चाहिए। अन्यथा यह बात विवाद ही पैदा करेगी, इससे कुछ हल खिला, तो तुम्हारी कली भी खिल सकती है। न होगा। मैं भगवान हूं, यह तो कहा ही जा सकता है किसी बड़े | यह घोषणा जरूरी है अब, क्योंकि द्वार फिर करीब आयेगा। गहरे श्रद्धा के क्षण में, जबकि दो व्यक्ति इतने जुड़े हों कि संदेह जैसे हर वर्ष मौसम का एक वर्तुल घूमता है-मंडलाकार; फिर का उपाय न हो। कृष्ण कह सके।
वर्षा आती, फिर सर्दी आती, फिर गर्मी आती है, फिर वर्षा आती फिर यह भी खयाल रखें कि प्रत्येक जाग्रतपुरुष अपनी भाषा है-जैसे बारह महीने में एक वर्तुल घूमता है मौसम का, ऐसे ही | चुनता है, अपना ढंग चुनता है। कोई जाग्रतपुरुष किसी और आध्यात्मिक मौसम का भी एक वर्तुल है जो घूमता है। जैसे जाग्रतपुरुष का अनुकरण नहीं करता। तालमेल बैठ जाए, | चौदह वर्ष में बच्चा जवान होने लगता, वीर्य परिपक्व होता, ठीक; अनुकरण नहीं करता। नानक ने अपने ढंग से चुना। वासना जगती; और अगर सब ठीक चलता रहे तो बयालीस नानक को अपनी शैली बनानी पड़ी। अब अगर तुम इस तरह वर्ष के करीब वासना क्षीण होने लगती, ब्रह्मचर्य की याद आने सोचते फिरे कि जो बुद्ध ने कहा है वही नानक कहें, जो नानक ने लगती; अगर सब ठीक चलता रहे, तो सत्तर वर्ष का होते-होते कहा है वही मैं कहूं, तो तुम व्यर्थ की उलझन में पड़ रहे हो। मैं | व्यक्ति पुनः फिर बच्चे की तरह सरल हो जाता है। कुछ गड़बड़ वही कहूंगा जो मैं कह सकता हूं। नानक ने मुझसे नहीं पूछा, मैं | हो जाए, तो बात अलग है। वह नियम की बात नहीं है। भटक उनसे क्यों पूछू? नानक की मौज, उन्होंने नहीं कहा कि मैं गये तो बात अलग। अन्यथा नियम से सब चलता रहे, तो ऐसा भगवान हूं। मेरी मौज, मैं कहता हूं।
होगा। एक वर्तुल है जीवन का भी। मरते-मरते फिर व्यक्ति और मैं मानता हूं कि अस्तित्व एक ऐसी घड़ी के करीब आ रहा सरल हो जाता है, जैसे छोटा बच्चा जन्म के बाद सरल होता। है, जहां यह घोषणा करनी उपयोगी है। हर पच्चीस सौ वर्ष में ठीक ऐसा ही एक बड़ा वर्तुल है, जो पच्चीस सौ वर्ष का घेरा मनुष्य की चेतना एक ऐसे द्वार के निकट आती है, जहां जागरण लेता है। हर पच्चीस सौ वर्ष में मनुष्य की चेतना ज्वार पर होती
आसान है। बुद्ध से, महावीर से पच्चीस सौ वर्ष पहले है। और जब ज्वार हो, तब बड़ी सुगमता से ऊंचाइयां छुई जा कृष्ण हुए। कृष्ण ने भगवत्ता की घोषणा की। फिर पच्चीस सौ सकती हैं। जब ज्वार न हो, तब बड़ी कठिनता से ऊंचाइयां छई साल बाद बुद्ध, महावीर हुए; जरथुस्त्र हुआ परसिया में; | जा सकती हैं। लाओत्सू, कन्फयूशियस हुए चीन में; हेराक्लाइटस, सुकरात | नानक ने अपना समय देखा, मैं अलग अपना समय देख रहा हुए यूनान में। पच्चीस सौ वर्ष के बाद फिर एक गहन विस्फोट हूं। नानक मेरे समय के लिए नहीं बोले, मैं उनके समय के लिए हुआ और सब तरफ सारे जगत में एक गुनगुनाहट गूंज गयी नहीं बोलूंगा। नानक अपने भक्तों से बोले, मैं अपने भक्तों से
अध्यात्म की। फिर पच्चीस सौ वर्ष पूरे होते हैं। इस सदी के पूरे बोल रहा हूं। नानक का अपना प्रयोजन है, मेरा अपना प्रयोजन होते-होते सारी पृथ्वी पर धर्म की अनुगूंज होगी। घड़ी करीब आ है। इसलिए व्यर्थ के प्रश्न बीच में मत उठाओ। क्या नानक ने
309
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org