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________________ जिन सत्र भाग:2 और मुसलमान के एक होने की। बुद्ध की पूजा की। इस मुल्क में भगवत्ता की तरफ ऐसा सहज जिसको समन्वय साधना हो, वह बहुत सोचकर बोलता है। भाव है कि जिन्होंने इनकार किया, उनको भी भगवान मान लिया नानक बहुत सोचकर बोले। उन्होंने कृष्ण जैसी घोषणा नहीं की। गया। यह इस मुल्क की आंतरिक दशा है। उनकी जो घोषणा है, वह मुहम्मद जैसी है। उसमें मुसलमान को तो जिन मित्र ने प्रश्न पूछा है, वह भी कहते हैं—नानकदेव! फुसलाने का आग्रह है। पंजाब है सीमा-प्रांत, वहां हिंदू और नानक कहने से काम चल जाता। देव क्यों जोड़ दिया? मुसलमान का संघर्ष हुआ। वहां हिंदू और मुसलमान के बीच | 'भगवान' शब्द का उपयोग न किया, 'देव' शब्द को उपयोग विरोध हुआ। वहीं मिलन भी होना चाहिए। वहीं हिंदू और किया। लेकिन बात तो वही हो गयी। घोषणा तो हो गयी कि मुसलमान एक-दूसरे के सामने दुश्मन की तरह खड़े हुए, वहीं | नानक आदमी पर समाप्त नहीं हैं, आदमी से ज्यादा हैं। मैत्री का बीज भी बोया जाना चाहिए। सीमांत-प्रांत यदि | और ठीक ही है, वह आदमी से बहुत ज्यादा हैं। आदमी तो हैं समन्वय के प्रांत न हों, तो युद्ध के प्रांत हो जाते हैं। तो नानक ने | ही, लेकिन धन, आदमी से बहुत ज्यादा हैं। आदमी होना तो बड़ी गहरी चेष्टा की। | जैसे उनका प्रारंभ है, अंत नहीं। वहां से शुरुआत है, वहां इसलिए सिक्ख-धर्म बिलकुल हिंदू-धर्म नहीं है। न | समाप्ति नहीं। मुसलमान-धर्म है। सिक्ख दोनों के बीच है। कुछ हिंदू है, कुछ | 'नानकदेव भी जाग्रतपुरुष थे।' निश्चित ही। इसमें कोई दो मुसलमान। दोनों है। दोनों में जो सारभूत है, उसका जोड़ है। मत नहीं है। लेकिन जागते और सोते में कुछ फर्क करोगे? इसलिए सिक्ख-धर्म की पृथक सत्ता है। | प्रकृति और परमात्मा में फर्क क्या है? जागने और सोने का। लेकिन इसे हमें समझना होगा इतिहास के संदर्भ में, नानक प्रकृति है सोया हुआ परमात्मा। परमात्मा है जागी हुई प्रकृति। क्यों न कह सके जैसा कृष्ण कह सके। बुद्ध कह सके, महावीर | फर्क क्या है ? बुद्ध में और तुममें फर्क क्या है ? बुद्ध जागे हुए, कह सके, नानक क्यों न कह सके। नानक के सामने एक नयी तुम सोये हुए। तुम सोये हुए बुद्ध हो। आंख खोल ली कि तुम परिस्थिति थी, जो न बुद्ध के सामने थी, न महावीर के, न कृष्ण | ही हो गये। आंख की ओट में ही फर्क है, बस। आंख खोली कि के। न तो बुद्ध को, न महावीर को, न कृष्ण को, किसी को भी प्रकाश ही प्रकाश है। आंख बंद की कि अंधेरा ही अंधेरा है। मुसलमान के साथ सामना न था। यह नयी परिस्थिति, और नयी एक आदमी सो.रहा है, उसी सोये आदमी के पास एक जागा भाषा खोजनी जरूरी थी। और जीवंत पुरुष सदा ही परिस्थिति के हुआ आदमी बैठा है। दोनों आदमी हैं, सही। लेकिन क्या दोनों अनुकूल, परिस्थिति के लिए उत्तर खोजते हैं। यही तो उनकी एक ही जैसे आदमी हैं? तो फिर नींद और जागरण में कुछ फर्क जीवंतता है। उन्होंने ठीक उत्तर खोजा। लेकिन पूछनेवाले को | करोगे, न करोगे? नींद और जागरण में इतना क्रांतिकारी फर्क है सोचना चाहिए नानक देव क्यों? कि अगर हम जागे हुओं को कहें कि यह बिलकुल दूसरे ही ढंग इस देश में जो पले, वे चाहे हिंदू हों, चाहे जैन हों, चाहे सिक्ख | का आदमी है, तो कुछ अतिशयोक्ति नहीं। क्योंकि सोया हुआ हों, चाहे बौद्ध हों, इस देश की हवा में, इस देश के प्राणों में एक आदमी क्या आदमी है! सोये हुए आदमी में और चट्टान में क्या संगीत है, जिससे बचकर जाना मुश्किल है। यहां तो मुसलमान | फर्क है? सोये हुए आदमी और वृक्ष में क्या फर्क है? मूछित भी जो बड़ा हुआ है, वह भी ठीक उसी अर्थ में मुसलमान नहीं रह आदमी और पत्थर में क्या फर्क है? न पत्थर जाग रहा है, न जाता जिस अर्थ में भारत के बाहर का मुसलमान मसलमान होता सोया हआ आदमी जाग रहा है। दोनों है। यहां के मुसलमान में भी हिंदू की धुन समा जाती है। महावीर | नींद में हम प्रकृति में गिर जाते हैं। जागकर हम परमात्मा में ने कहा, कोई भगवान नहीं, कोई संसार को बनानेवाला नहीं, उठने लगते हैं। और यह जागरण जिसको अभी हम जागरण लेकिन महावीर को माननेवालों ने महावीर को भगवान कहा। | कहते हैं, यह तो शुद्ध जागरण नहीं है। इसमें तो नब्बे प्रतिशत से बुद्ध ने कहा, सब मूर्तियां तोड़ डालो, सब मूर्तियां हटा दो, किसी ज्यादा नींद समाविष्ट है। जब कोई व्यक्ति सौ प्रतिशत जाग की पूजा की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन बुद्ध के माननेवालों ने | जाता है, तो उसी को किसी परंपरा में भगवान कहा है, किसी 308 Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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