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________________ नानक ने न कहा हो, मैं कहता हूं कि नानक भगवान थे। और नानक ने अगर न कहा होगा, तो उन लोगों के कारण न कहा होगा जिनके बीच नानक बोल रहे थे। उनकी बुद्धि इस योग्य न रही होगी कि वे समझ पाते । कृष्ण तो नहीं डरे । कृष्ण ने तो अर्जुन से कहा – सर्व धर्मान परित्यज्य..., छोड़-छाड़ सब, आ मेरी शरण, मैं परात्पर ब्रह्म तेरे सामने मौजूद हूं। कृष्ण कह सके अर्जुन से, क्योंकि भरोसा था अर्जुन समझ सकेगा । नानक को पंजाबियों से इतना भरोसा न रहा होगा कि वे समझ पायेंगे। इसलिए नहीं कहा होगा। और इसलिए भी नहीं कहा कि नानक उस विराट परंपरा से थोड़ा हटकर चल रहे थे जिस विराट परंपरा कृष्ण हैं, राम हैं, उससे थोड़ा हटकर चल रहे थे। नानक एक नया प्रयोग कर रहे थे कि हिंदू और मुसलमान के बीच किसी तरह सेतु बन जाए। एक समझौता हो जाए। एक समन्वय बन जाए। मुसलमान सख्त खिलाफ हैं किसी आदमी को भगवान कहने के। अगर नानक सीधे-सीधे हिंदू-परंपरा में जीते तो निश्चित उन्होंने घोषणा की होती कि मैं भगवान हूं। लेकिन सेतु बनाने की चेष्टा थी। जरूरी भी थी। उस समय की मांग थी। मुसलमान को भी राजी करना था। मुसलमान यह भाषा समझ ही नहीं सकता कि मैं भगवान हूं। जिसने ऐसा कहा उसने मुसलमान से दुश्मनी मोल ले ली। में पहली बात, पहले ही प्रश्न की पंक्ति में पूछनेवाला कह रहा है— नानकदेव ! देव का क्या अर्थ होता है? देव का अर्थ होता है दिव्य, डिवाइन । दिव्यता का अर्थ होता है भगवत्ता । नानकदेव कहने में ही साफ हो गया कि मनुष्य के पार, मनुष्य से | ऊपर दिव्यता को स्वीकार कर लिया है। भगवान का क्या अर्थ होता है? बड़ा सीधा-सा अर्थ होता है - भाग्यवान । कुछ और बड़ा अर्थ नहीं। कौन है भाग्यवान ? जिसने अपने भीतर की दिव्यता को पहचान लिया। कौन है भाग्यवान ? जिसकी कली खिल गयी, जो फूल हो गया। कौन है भाग्यवान ? जिसे पाने को कुछ न रहा — जो पाने योग्य था, पा लिया। जब पूरा फूल खिल जाता है, तो भगवान है। जब गंगा सागर में गिरती है, तो भगवान है। जहां भी पूर्ण की झलक आती है, वहीं भगवान है। भगवान शब्द का अर्थ ठीक से समझने की कोशिश करो। | नाक हाथ बढ़ा रहे थे मित्रता का, इसलिए नानक को ऐसी भाषा बोलनी उचित थी जो मुसलमान भी समझेगा। नहीं तो जो मंसूर के साथ किया, वही उन्होंने नानक के साथ किया होता। या उन्होंने कहा होता, नानक भी हिंदू हैं, यह सब बकवास है। हिंदू प हला प्रश्न : नानकदेव भी जाग्रतपुरुष थे। लेकिन उन्होंने कभी नहीं कहा कि मैं भगवान हूं। उन्होंने यह भी कहा कि आदमी को एक परमात्मा को छोड़कर किसी को भी नहीं मानना चाहिए। और जो व्यक्ति अध्यात्म की राह बताये, उसे गुरु कहना चाहिए। पूछा है आर. एस. गिल ने । सिक्ख ही पूछ सकता है ऐसा प्रश्न | क्योंकि प्रश्न हृदय से नहीं आया। प्रश्न थोथा है, और बुद्धि से आया। प्रश्न परंपरा से आया। मान्यता से आया। पक्षपात से आया। पर समझने जैसा है, क्योंकि ऐसे पक्षपात सभी के भीतर भरे पड़े हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 307 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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