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जिन सूत्र भाग: 2
कहा, यह नानक से पूछो कहीं मिल जाएं तो। मुझसे क्या पूछते कहां है, परमात्मा से बचने की जगह कहां है! हो? क्या मैं कहता हूं, वह मुझसे पूछो।
___ मैं तो तुमसे कहता हूं, पूजो जितने भी तुम्हें पूजना हो। तुम्हें जो 'उन्होंने यह भी कहा कि आदमी को एक परमात्मा को छोड़कर | रूप भा जाए, पूजो। तुम्हें जो नाम भा जाए, पूजो। इस अर्थ में किसी को भी नहीं मानना चाहिए।' मैं तुमसे कहता हूं, तुम | हिंदू बड़े अदभुत हैं। दुनिया का कोई धर्म हिंदुओं जैसी गहराई किसी को भी मानो, हर मानने में एक ही परमात्मा को मान सकते | को नहीं छू पाया। क्योंकि दुनिया के सभी धर्म किसी अर्थों में हो, करोगे क्या? पूजो पीपल को कि पहाड़ को, चरण उसी के | थोड़े संकीर्ण हैं। हिंदुओं के पास एक ग्रंथ है—विष्णु पाओगे। वहीं सिर झुकेगा। उसके अतिरिक्त कोई है नहीं। मैं | सहस्रनाम। उसमें परमात्मा के हजार नाम हैं। कोई भी नाम तो तुमसे कहता हूं कहीं भी चढ़ाओ पूजा के फूल, सब पूजा के छोड़ा ही नहीं। जो भी नाम हो सकते थे संभव, वह सब जोड़ फूल उसी के चरणों में गिर जाते हैं, क्योंकि उसी के चरण हैं, और दिये हैं। कोई भी नाम लो, उसी का नाम है। कोई को भी पुकारो, कुछ है ही नहीं। फूल भी उसी के हैं, चरण भी उसी के हैं, उसी को पुकार रहे हो। चुप रहो, तो उसके साथ चुप बैठे हो; चढ़ानेवाला भी उसी का है। इसलिए मैं तुम्हें संकीर्ण नहीं बोलो, तो उसके साथ बोल रहे हो। इधर तुम सोचते हो मैं तुमसे बनाता। मैं नहीं कहता कि सिर्फ एक को छोड़कर किसी को मत बोल रहा हूं, तो तुम गलती में हो। मैं उसी से बोल रहा हूं। तुमसे मानो। मैं तुमसे कहता हूं, तुम किसी को भी मानो, एक ही माना मैं नाहक सिर नहीं मारूंगा। तुम तो दीवाल जैसे हो। मैं उसी से जाएगा। अंततः तुम पाओगे वही एक पूजा गया। मंदिर में पूजो बोल रहा हूं। तुम्हें जब पुकारता हूं, तो उसी को पुकार रहा हूं। कि मस्जिद में, राम में कि कृष्ण में, बुद्ध में कि महावीर में, कहीं मुसलमान, ईसाई, यहूदी, तीनों धर्म यहूदियों की संकीर्णता से भी सिर झुकाओ, किसी के भी सामने सिर झुकाओ। पैदा हुए हैं। तीनों धर्मों का मूलस्रोत यहूदी है। और सिक्ख-धर्म
तमने नानक की कहानी सनी? गये काबा. रात सो गये तो भी आधा यहदी है। इसलिए थोडी-सी संकीर्णता है। नानक में काबा के पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके सो गये। तो न रही होगी, सिक्खों में है। मुल्ला-मौलवी नाराज हो गये होंगे, भागे हुए आये। कहा कि हिंदू कहते हैं, सभी कुछ उसका है। इसलिए तो हिंदू बड़े | कैसे नासमझ हो! और हमने तो सुना कि तुम बड़े ज्ञानी हो, | अदभुत हैं। पत्थर रख लेते हैं वृक्ष के नीचे, सिंदूर पोत देते हैं,
औलिया हो; यह कैसा ज्ञान? तुम्हें तो साधारण शिष्टाचार के | पूजा शुरू! अभी पत्थर था, अभी सिंदूर लगाया, पूजा शुरू! नियम भी मालूम नहीं। पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके सो रहे! | पत्थर को भगवान बनाने में देर नहीं लगती। अनगढ़ पत्थर पूजने परमात्मा की तरफ पैर करके सो रहे! कहानी कहती है कि नानक | लगते हैं। गढ़ो, मूर्ति बनाओ, समय जाया होता है। मिट्टी के हंसे और उन्होंने कहा ऐसा करो, तुम मेरे पैर उस तरफ कर दो गणेश बना लेते हैं। पूज भी लेते हैं, पूजने के बाद समुंदर में सिरा जहां परमात्मा न हो। कहते हैं उन्होंने पैर घुमाये सब तरफ, भी आते हैं। बड़े अदभुत लोग हैं। क्योंकि उसी का समुंदर है, लेकिन जहां भी पैर घुमाये, वहीं काबा का पत्थर हो गया। मिट्टी उसी की है; बना लिया, सिरा दिया। दुनिया में कोई जाति
ऐसा हुआ हो, जरूरी नहीं। लेकिन कहानी बड़ी अर्थपूर्ण है। अपनी मूर्तियों को सिराती नहीं। बना ली, तो फिर घबड़ाती है, मैं नहीं मानता कि ऐसा वस्तुतः हुआ है। पर इतना मैं जानता हूं कहीं मूर्ति का अपमान न हो जाए। हिंदू अदभुत हैं। नाच-गाना कि होना चाहिए ऐसा ही। क्योंकि काबा का ही पत्थर सब तरफ करके जाकर नदी में डुबा आते हैं कि अब बस विश्राम करो, अब है, सब पत्थरों में वही पत्थर है। पत्थर मात्र काबा के पत्थर हैं, | हमको भी तो चैन लेने दो। और भी तो काम हैं! फिर अगले तो कहां पैर करो! और ऐसा थोड़े ही है कि परमात्मा उत्तर में है, | साल देखेंगे। और फिर तुम सभी जगह हो। सागर तुम्हारा, दक्षिण में नहीं: परब में है, पश्चिम में नहीं; ऊपर है, नीचे नहीं। मिट्टी तुम्हारी, आकाश तुम्हारा। सब तुम्हारा है। तो ऐसा मोह परमात्मा ने तो सभी कुछ घेरा है। चलो तो उसमें, बैठो तो उसमें, क्या बांधना! सोओ तो उसमें ओढ़नी भी वही है, बिछौनी भी वही है, करोगे ध्यान रखना, परमात्मा निराकार है, इसका अर्थ यही हआ कि
क्या! खाओ तो उसे, पीओ तो उसे, श्वास लो तो उसकी, उपाय सभी आकार उसके। मुसलमानों ने बड़ी जिद्द पकड़ ली कि 310/ | Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only
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