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________________ है। सभी धर्म मौलिक रूप से ध्यान पर खड़े हैं। और कोई उपाय ही नहीं। जैन धर्म उसी दिन मरने लगा, जिस दिन ध्यान से संबंध छूट गया। अब तुम साधो अणुव्रत और महाव्रत, अब तुम साधो अहिंसा, लेकिन तुम्हारी अहिंसा पाखंड होगी। क्योंकि ऊपर से आरोपित होगी। भीतर से आविर्भाव न होगा। ध्यानी अहिंसक हो जाता है । होना नहीं पड़ता । ध्यानी में महाकरुणा का जन्म होता है। अपने को जानकर दूसरे पर दया आनी शुरू होती है। क्योंकि अपने को जानकर पता चलता है कि दूसरा भी ठीक मेरे जैसा है। अपने को जानकर यह स्पष्ट अनुभव हो जाता है कि सभी सुख की तलाश कर रहे हैं, जैसे मैं कर रहा हूं। अपने को जानकर पता चलता है, जैसे दुख मुझे अप्रिय है, वैसा सभी को अप्रिय है। जिसने अपने को जान लिया, वह अगर अहिंसक न हो, असंभव ! और जिसने अपने को नहीं जाना, वह अहिंसक हो जाए, यह असंभव ! कल मैं महर्षि महेश योगी के गुरु का जीवन-चरित्र पढ़ रहा था। ब्रह्मानंद सरस्वती का। वह युवा थे । प्रकट, प्रगाढ़ खोजी थे। गुरु की तलाश में थे। किसी व्यक्ति की खबर मिली कि वह ज्ञान को उपलब्ध हो गया है, तो वह भागे हिमालय पहुंचे। वह आदमी मृगचर्म बिछाये, बिलकुल जैसा योगी होना चाहिए वैसा योगी दिखायी पड़ता था। प्रभावशाली आदमी मालूम पड़ता था। सशक्त, बलशाली! इस युवा ने— ब्रह्मानंद ने — पूछा कि महाराज! यहां कहीं आपकी झोपड़ी में थोड़ी अग्नि मिल जाएगी ? अग्नि ! हिंदू संन्यासी अग्नि नहीं रखते अपने पास । न अग्नि जलाते हैं। उन्होंने कहा, तुझे इतना भी पता नहीं है कि संन्यासी अग्नि नहीं छूते । फिर भी उस युवा ने कहा, फिर भी महाराज ! शायद कहीं छिपा रखी हो। वह जो योगी थे, बड़े आग हो गये, बड़े नाराज हो गये, चिल्लाकर बोले कि नासमझ कहीं का! तुझे इतनी भी अकल नहीं कि हम और अग्नि चुराकर | रखेंगे ! क्या समझा है तूने हमें ? तो ब्रह्मानंद ने कहा, महाराज! अगर अग्नि नहीं है, नहीं छुपायी, तो ये लपटें कहां से आ रही हैं ? लपटें तो आ गयीं । ऊपर से थोपकर कोई अभिनय कर सकता है। यह घटना मुझे प्रीतिकर लगी । अग्नि छुपाने का सूत्र भी इसमें साफ है । यह बाहर की अग्नि को छूने की बात नहीं, न बाहर की अग्नि रखने न रखने से कुछ फर्क पड़ता है, यह तो भीतर की आग संन्यासी न Jain Education International 2010_03. त्वरा से जीना ध्यान है छुए। लेकिन ध्यान की जब तक वर्षा न हो जाए, भीतर की आग बुझती नहीं । जब तक ध्यान की रसधार न बहे, तब तक भीतर कुछ अंगारे-सा जलता ही रहता है, चुभता ही रहता है। महावीर ने तो कहा कि मूल धर्म है – ध्यान | जिसने ध्यान साध लिया, सब साध लिया। तो हम समझें, यह ध्यान क्या है? पहली बात, अंतर्यात्रा है। दृष्टि को भीतर ले जाना है। बाहर भागती ऊर्जा को घर बुलाना है । जैसे सांझ पक्षी लौट आता है, नीड़ पर, ऐसे अपने नीड़ में वापस, वापस आ जाने का प्रयोग है ध्यान। जब सुविधा मिले, तब समेट लेना अपनी सारी ऊर्जा को संसार से – घड़ीभर को सही - सुबह, रात, जब सुविधा मिल जाए तब बंद कर लेना अपने को। थोड़ी देर को भूल जाना संसार को समझना कि नहीं है। समझना कि स्वप्नवत है। अपने को अलग कर लेना । अपने को तोड़ लेना बाहर से । और अपने भीतर देखने की चेष्टा करना - कौन हूं मैं? मैं कौन हूं ? यही एक प्रश्न । शब्द में नहीं, प्राण में। यही एक प्रश्न, बोल-बोल कर मंत्र की तरह दोहराना नहीं है, बोध की तरह भीतर बना रहे । एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाए भीतर अस्तित्व में - मैं कौन हूं ? – और इसी प्रश्न के साथ थोड़ी देर रहना । एकदम से उत्तर न मिल जाएगा। और एकदम से जो उत्तर मिले, समझना थोथा है। एकदम से उत्तर मिल सकता है, वह उत्तर सीखा हुआ होगा। पूछोगे, मैं कौन हूं? भीतर से उत्तर आयेगा - तुम आत्मा हो। वह तुमने शास्त्र से पढ़ा है। इतनी सस्ती आत्मा नहीं है। किसी से सुन लिया है। भीतर से आयेगा - अहं ब्रह्मास्मि । वह उपनिषद में पढ़ लिया होगा, या सुन लिया होगा । वर्षों की चेष्टा के बाद, वर्षों प्रश्न के साथ रहने के बाद-3 - और प्रश्न के साथ रहने का अर्थ ही यह है कि तुम थोथे और उत्तर स्वीकार मत करना, अन्यथा उत्तर फिर बाहर फेंक देगा । देख लेना कि ठीक है; यह कठोपनिषद से आता है, बिलकुल ठीक है; यह गीता से आता है, बिलकुल ठीक है; क्षमा कर गीता मैया! छोड़ पीछा ! कुछ मुझे भी जानने दे ! गीता बाहर है। असली गीता तो भीतर है। तुम्हारी गीता तो घटने को है, अभी घटी नहीं । अभी तुम्हारा महाभारत तो शुरू है। अभी तो तुम्हा अर्जुन थका भी नहीं। अभी तो तुम्हारा अर्जुन कंपा भी नहीं । अभी तो तुम्हारे अर्जुन ने गांडीव छोड़ा भी नहीं और कहा कि मेरे For Private & Personal Use Only 289 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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